– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
* कॉपी पेंसिंल से काफी लगाव रखते थे वशिष्ठ बाबू
* हमेशा कुछ गणितीय फॉर्मूले को साल्व करते रहते थे कॉपी पर
* कई प्रोफेसरों ने इनके शोध को अपने नाम से पब्लिश करा लिया थाः अयोध्या सिंह
* आर्मी से सेवा निवृत हैं वशिष्ठ बाबू के भाई अयोध्या सिंह
दुनिया में गणित के बूते अपनी पहचान कायम करने वाले महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह आज ज़िन्दगी की जंग आखिरकार हार गए। वृहस्पतिवार की सुबह इन्होंने पटना के पीएमसीएच में आखिरी सांसें ली। कभी इस गणितज्ञ ने आइंस्टीन के सिद्धांत को भी चुनौती दे दी थी।
बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में 02 अप्रैल 1942 को गणितज्ञ वशिष्ठ बाबू का जन्म हुआ था। लेकिन इधर कुछ सालों से वे अपने छोटे भाई अयोध्या सिंह, भाभी प्रभावती सिंह और उनके परिवार के साथ वर्षों से पटना के अशोक राजपथ स्थित कुल्हड़िया कॉम्प्लेक्स में रहा करते थे। रोज की तरह आज भी उनकी सुबह में ही नींद खुली, सब कुछ ठीक ही चल रहा था, लेलिन अचानक से उनके मुँह से ब्लड आ गया उनके परिजन यह देख घबरा गए और आनन-फानन में बेहतर इलाज के लिए पीएमसीएच लेकर गए जहां उन्होंने आखिरी सांसें लीं।
वैसे तो वशिष्ठ बाबू की तबीयत बहुत दिनों से नासाज चल रही थी। उनसे यहां मिलने के लिए कुछ दिन पहले ही राज्य सभा सांसद आर के सिन्हा आये हुए थे, उनसे मिलकर काफी देर तक कुशलक्षेम जाना और हर समय उनके लिए खड़े रहने की बातें भी की, इतना ही नही वशिष्ठ बाबू और आर के सिन्हा एक ही जिले के वाशिंदा भी हैं, इसलिए श्री सिन्हा का इनसे काफी अनुराह भी रहा है।
कुल्हड़िया कॉम्प्लेक्स में रहने के पीछे भी यही उद्देश्य था कि पास में पीएमसीएच के डॉक्टर की देख रेख भी इन्हें अच्छी मिल सकेगी। हलांकि इनकी देख रेख इनके परिजन या यों कहें कि इनके भाई अयोध्या सिंह और उनके पूरे परिवार के लोग बड़े सलीके से रखते थे।
पीएमसीएच में जब वशिष्ठ बाबू भर्ती थे तो इनसे मिलने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा, पूर्व सांसद पप्पू यादव सहित कई केंद्रीय मंत्री भी आये थे। वशिष्ट बाबू के निधन के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ करने की घोषणा की साथ ही उनके पार्थिव शरीर माल्यार्पण कर अंतिम दर्शन भी किया।
बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर निवासी वशिष्ठ नारायण सिंह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। ईश्वर ने उन्हें कुछ अलग तरीके के जेहन से नवाजा था। समाज के ज्यादातर लोगों के लिए गणित एक कठिन विषय मगर इनके लिए वही गणित किसी खिलौना से कम नही था। लेकिन इन्हें तो मैथ से प्यार हो गया था। वो तो चलते फिरते आंखों के सामने इनविज़बल एक बोर्ड लगाए रहते थे और उसी पर मानों सवालों को ता उम्र हल करते रहे।
महान गणितज्ञ जॉन नैश की कहानी याद आती है कि जिस प्रकार बहुत ही खूबसूरती के साथ Russell Crowe ने ‘’ए ब्यूटिफूल मांइड’’ फिल्म में पेश कर ऑस्कर जीता था। उसी तरह की दोनों के ही जीवन में बहुत सी समानताएं हैं, लेकिन बावजूद बहुत से अंतर भी हैं। इनके जीवन पर बहुत पहले से जहां मुरली मनोहर श्रीवास्तव और राजेश मिश्रा डॉक्यूमेंट्री के लिए काम कर रहे थे वहीं फ़िल्म मेकर प्रकाश झा ने फ़िल्म बनाने की घोषणा कर रखी थी। हलांकी इससे पहले महेश सूरी ने भी फ़िल्म बनाने की बात कही थी, लेकिन इस पर काम नहीं कर पाए।
डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह बचपन से ही बहुत होनहार थे । महज छठी क्लास में नेतरहाट के एक स्कूल में कदम रखने वाले इस लाल ने कदम जब रखा तो फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। नेतरहाट के ऐसे छात्रों में रहे जिसकी प्रतिभा का आज तक कोई सानी नहीं रहा और आज भी नेतरहाट के लिए किसी नजीर से कम नहीं हैं। साधारण परिवार में जन्मे इस लाल ने अपनी मेहनत और लगन के बूते हर दिन कामयाबी की नई इबारत गढ़नी शुरू कर दी थी। जहानाबाद जिले के चंदहरिया निवासी नेतरहाटियन रजनीश कुमार ने तो वशिष्ठ बाबू के इतना तक कह दिया कि नेतरहाट में न अब तक इनके जैसा कोई हुआ और न कोई आगे हो सकता है, आज भी हमारे ऑइकॉन हैं वशिष्ठ बाबू।
नेतरहाट से निकलने के बाद पटना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया, ये वही जगह जहां से उनकी किस्मत ने उड़ान भरी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रो जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी, उन्होंने कई सवाल दिए पूछे, जिसे वशिष्ठ बाबू ने सात तरीके से एक प्रश्न को हल करके कैली साहब को चौंका दिया। यही वजह रही कि वर्ष 1965 में अमेरिका लेकर चले गए और वहीं से 1969 में उन्होंने पीएचडी की। वशिष्ठ नारायण ने ‘साइकिल वेक्टर स्पेस थ्योरी पर शोध किया था। गणित से जुड़े कई लोगों से इस विषय पर बात की गई तो बहुत लोगों को तो यह पल्ले नही पड़ा, लेकिन उन लोगों के मुताबिक शोध बहुत ही शानदार था। जिसकी वजह से उन्हें कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में वशिष्ठ नारायण को बतौर बर्कले में सहायक प्रोफेसर की नौकरी मिल गई। इसके बाद उन्हें नासा में काम करने का भी मौका मिला, यहां भी वशिष्ठ नारायण की काबिलियत ने लोगों को हैरान कर दिया।
वर्ष 1973 में इनकी शादी वंदना रानी सिंह के साथ हुआ था, लेकिन शादी के कुछ दिनों के बाद ही ये मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया के शिकार हो गए। वर्ष 1974 मानसिक बीमारी की वजह से रांची के कांके के मानसिक रोग अस्पताल में ईलाज के लिए भर्ती कराया गया था। उस समय से इलाजरत वशिष्ठ नारायण सिंह वर्ष 1989 में अपने भाई के साथ इलाज के लिए जाते वक्त मध्य प्रदेश के खंडवा के गढ़वारा स्टेशन से अचानक लापता हो गए। पूरा परिवार परेशान हो उठा कई जगह ढूंढ़ा गया मगर नहीं मिले, फिर क्या 7 फरवरी 1993 को बिहार के छपरा के डोरीगंज में एक झोपड़ीनुमा होटल के बाहर होटल के जुठे प्लेट को साफ करते पाए गए थे।
एक वाक्या के बारे में बताया जाता है कि अपोलो की लॉन्चिंग के वक्त अचानक कम्यूपटर्स ने काम करना बंद कर दिया और कुछ गणितीय आवश्यकता नितांत थी, फिर क्या वशिष्ठ नारायण ने कैलकुलेशन शुरू कर दिया, जिसे बाद में जांचा गया तो सबके जोश उड़ गए। इस व्यकितत्व में एक खास बात यह रही कि सुख सुविधा के लिहाज से लोग अक्सर रुपयों की खातिर भी अपने वतन को छोड़ विदेश में बसने से परहेज नही करते, लेकिन वशिष्ठ नारायण पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे , सो पिता के कहने पर विदेश छोड़कर अपने वतन लौट आये। पिता के ही कहने पर शादी भी कर ली, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था 1973-74 में उनकी तबीयत बिगड़ी और पता चला की उन्हें सिज़ोफ्रेनिया है, फिर तो पल में ही सबकुछ बदल गया, जिस पत्नी ने अग्नि को साक्षी मानकर सात जन्म तक साथ निभाने की क़सम खाई थी, वो पल में इतना दूर हो गई कि कह डाला आप दुनिया के लिए योग्य हो सकते हैं मेरे लिए अयोग्य हैं। इस वाक्या को सुनने के बाद जैसे इनका दिमाग ही घूम गया, प्रखर वशिष्ठ एक साधारण इंसान से भी इतर हो गया। वरना कैली साहब ने अपनी बेटी से शादी का प्रस्ताव रखा था, अमेरिका बसने का ऑफर भी दिया था, लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। बस, अपने वतन तो लौट आये, रिश्तों को भी ठुकरा दिया, मगर यह किसे पता था कि कभी आइंस्टाइन को मात देने वाला गणितज्ञ अपने ही आंगन में अपनी बुद्धिमता को एक दिन खो देगा। और ऐसा ही हुआ पल में ही सबकुछ बिखर गया, रह गई तो वशिष्ठ बाबू की सिर्फ यादें और उनके द्वारा उकेरी गई कॉपियों पर कुछ गणितीय फार्मूला के बारे में वो अक्सर कहा करते थे कि मेरे जाने के बाद इन कॉपियों पर एक दिन रिसर्च होगा, शायद वो दिन आ ही गया। गणित का जादूगर आखिरकार हमसे हमेशा के लिए रूठ गया, रह गई तो बस उनकी यादें और उनके सिद्ध किये गए फॉर्मूले जो हमेशा स्वर्णाक्षरों में उन्हें अंकित कर गया।
Your email address will not be published. Required fields are marked *
2017 Powered By Professional Worldz