-आशुतोष राणा
जैसे सौंदर्य का अपना बल होता है वैसे ही जनबल हो, ज्ञानबल हो, धनबल हो या बाहुबल हो, बल का भी अपना सौंदर्य होता है, किंतु इसके बाद भी बलवान व्यक्ति की सहज प्रवृत्ति होती है कि वो सुंदरता की ओर आकर्षित होता है। तो हस्तिनापुर ने अपने बल के दम पर गांधार नरेश को विवश किया की वो अपनी रूपमती कन्या का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार से करे।
अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली को सर्वशक्तिशाली की बात माननी ही पड़ती है, सो गांधारराज विवशतापूर्वक तैयार हो गए, इस बात की जानकारी जब उनकी कन्या गांधारी को हुई तो वो विषाद से भर गयी। उसे लगा कि उसके जैसी अनुपम सुंदरी को अब अपना पूरा जीवन एक ऐसे व्यक्ति के साथ बिताना है जो उसके सौंदर्य को देख ही नही सकता। धृतराष्ट्र बलवान तो है किंतु उसे संसार का ज्ञान ही नही है, वो मात्र अपने स्वा को ही संसार मानता है, और यह सर्वमान्य सत्य की स्वकेंद्रित व्यक्ति को संसार का सौंदर्य दिखाई ही नही देता इसलिए वो स्वयं के अलावा किसी अन्य को अपने हृदय में स्थान नही देता।
रूप हो, अरूप हो या कुरूप सबके मन में यह इच्छा होती है कि वो भले ही किसी को देख ना पाए, किसी को सराह ना पाए किंतु संसार उसके अस्तित्व को देखे ही नही सराहे भी। सराहना या प्रशंसा एक ऐसी दुधारी तलवार है जो कुछ व्यक्तियों को कृतज्ञता के भाव से भरते हुए परिष्कार के लिए प्रेरित करती तो कुछ को कृतघ्न बनाते हुए संसार के लिए तिरस्कार की भावना से भर देती है।
तब गांधारी ने निर्णय लिया की वो जीवनभर अपने नेत्रों पर पट्टी बांधे रहेगी। वो किसी भी मूल्य पर अपने सुख को दुःख में नही बदलने देगी, उसने विचार किया की जब सुख के नाम पर उसे जीवनभर का दुःख दिया जा रहा है, तब अपने सुख को बचाए रखने की एक मात्र विधि है कि हम दुःख को देखें ही नहीं। किसी अपूर्ण को यदि हम पूर्ण नही कर सकते हैं तब अपनी असफलता और उससे उत्पन्न विषाद से बचने के लिए हमें स्वयं को भी अपूर्ण बना देना चाहिए, यह सुख प्राप्ति का सामान्य सिद्धांत है।
लोग अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा करते हैं किंतु गांधारी ने जीवनभर के लिए अपनी आँखों पर काली पट्टी बाँधकर प्रकाश से अंधकार की ओर यात्रा की। और जब कोई भी व्यक्ति हटपूर्वक प्रकाश से अंधकार की ओर यात्रा करता है तब सर्वनाश ही होता है, कालांतर में कोई और नही गांधारी का अपना ही परिवार एक दूसरे का शत्रु हो गया और एक दूसरे के विनाश का कारण बना।
स्मरण रखने योग्य ये है कि प्रतिशोध और विषाद की भावना से भरा हुआ कोई नेत्रवान व्यक्ति जब अपनी आँखों पर जानते बूझते हुए पट्टी बाँधता है, या बांधे रखता है, तब स्वयं वासुदेव भी उस विनाश को नही रोक सकते।
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