1400 से ज्यादा किस्म के आम दुनियाभर में होते हैं

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आम भारत के धर्म, इतिहास और साहित्य में हर जगह अपने अलग-अलग रूप में अपने रंगों और स्वाद का दर्शन कराता है। यह एक ऐसा फल है जिसको लेकर भारत में हजारों लोकगीत, वृत्तांत आदि प्रचलित हैं। इसकी महत्ता भारतीय लोककथाओं और धार्मिक कार्यकलापों में दिखती है। हवन, यज्ञ, पूजा, कथा, त्योहार व अन्य मंगल कार्यों में आम की लकड़ी, पत्ती, फूल अथवा एक न एक भाग काम आता है। भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों मे आम का वर्णन है। बुद्ध साहित्य में आम का महत्व बताया गया है। कालिदास व अन्य कवियों व साहित्यकारों ने आम, आम्रमंजरी, आम की गंध और स्वाद को बारीकी से उकेरा है तो ऐसा कौन सा सम्राट, राजा, शहंशाह और नवाब होगा जो आमों पर रीझा न हो। तुलसीदास ने रामचरित मानस में आम के बाग (अंवराई) का वर्णन किया है। आम के पेड़ों पर कोयल की कुहुक ने भारतीय समाज को हमेशा स्पंदित किया है। उर्दू-हिंदवी के कवि अमीर खुसरो ने आम पर मुकरी ही लिख दी- ‘बरस बरस वो देस में आवे, मुंह से मुंह लगा रस पियावे, वा खातिर में खर्चे दाम, ऐ सखि साजन! ना सखि आम।’

यह एक ऐसा रसदार फल है, जिस पर पूरी दुनिया का मानना है कि हां, इसकी उत्पत्ति भारत में हुई है। अनुमानित तौर पर भारत में सबसे पहले आम को लगभग 5 हजार साल पहले उगाया गया और इसकी उत्पत्ति मध्य भारत के अलावा पूर्वी भारत में मानी जाती है। भारत से ही आम का प्रसार पूरे विश्व में हुआ। चौथी-पांचवी सदी में बौद्ध धर्म प्रचारकों के साथ आम मलेशिया और पूर्वी एशिया के देशों तक पहुंचा। 10वीं सदी में यह पूर्वी अफ्रीका पहुंचा, 16वीं सदी ब्राजील, वेस्टइंडीज और मैक्सिको पहुंचा। ऐसा कहा जाता है कि मात्र 400 साल पूर्व आम अमेरिका में पहुंचा। आम भारत के अधिकतर राज्यों में उगाया जाता है और पूरे देश में खाया जाता है। आम की नई-नई किस्में उगाने के लिए लगातार प्रयोग होते रहे। विशेष बात यह रही कि यह प्रयोग आम किसानों या बागवानी करने वालों ने किए। पूरे विश्व में आम की करीब 1400 किस्में पाई जाती हैं, इनमें लगभग 1000 किस्में अकेले भारत में मिलती हैं। ऐसी जानकारी मिली है कि सालों पहले केरल क्षेत्र में आम की किस्म ‘चेवथार नीलम’ स्वाद व खुशबू मे नंबर वन थी। लेकिन आजकल स्वाद व खुशबू, रंग व मधुर आकार को लेकर ‘अल्फांज़ो’ आम सबकी पसंद बन गया है। भारत में यह आम जितना भी उगाया जाता है, लेकिन इसका 90 प्रतिशत हिस्सा विदेश में निर्यात कर दिया जाता है।

आम की किस्मों के नाम अपने वक्त की कहानी को बयान करते हैं। हर किस्म के पीछे कोई न कोई कहानी है। पहले आम के नाम सुनें- सफेदा, मालदा, चौसा, बंगनपल्ली, रूमानी (गोल गेंद जैसा), मलगौस (वजनदार), चेरुकुरसम (अल्फांज़ों जैसा), हिमसागर, गुलाबखास, मलीहाबादी, दशहरी के अलावा आम के सैंकड़ों नाम हैं। दिल्ली-एनसीआर में तो आम की कुछ किस्में ही बिकने आती हैं। आम का सच्चा स्वाद तो पूर्वी उत्तर प्रदेश और साउथ इंडिया में मिलता है। मुगलकाल में आम का स्वाद और उसकी खुशबू खूब परवान चढ़ी। बाबर ने अपनी पुस्तक ‘बाबरनामा’ में इसे भारत का सबसे शानदार फल बताया है। बादशाह अकबर, जहांगीर और शाहजहां ने इसे खूब दुलारा और आम की किस्मों को बढ़ावा दिया। आम को सबसे अच्छा उपहार माना गया। मुगलकाल और बाद में अंग्रेजी राज में आम की डोली या टोकरी बादशाहों और अंग्रेज हुक्मरानों को पहुंचाकर उनसे ‘सेटिंग’ की जाती थी।

प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में आम को बलवर्धक बताया गया है। ग्रंथ के ‘अन्नपानविधि अध्याय’ के ‘फलवर्ग’ में आम को वातनाशक बताया गया है और कहा गया है कि शरीर में मांस को भी बढ़ाता है। आहार विशेषज्ञ व योगाचार्य रमा गुप्ता का कहना है कि आम में लगभग 20 अलग-अलग विटामिन और खनिज होते हैं, इसलिए आप इसे एक सुपरफूड भी कह सकते हैं। आम के सेवन से कोलेस्ट्रॉल और मोटापा कंट्रोल में रहता है। यह पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखता है। आम की एक विशेषता यह भी है कि यह शरीर को शीतलता प्रदान करता है। इस बात का ध्यान रखें कि आम ऐसा फल है, जिसमें सबसे अधिक शुगर होती है। इसलिए ज्यादा न खाएं। इसके ज्यादा सेवन से पेट में दर्द, लूज़ मोशन हो सकता है।भारत की अन्य भाषाओं में आम के नाम इस प्रकार हैं- तमिल में मनका, मलयालम में ममपाझाम, तेलुगु में मामिडी पंडु, कन्नड़ में माविन्काई, बंगला में आम, गुजराती में केरी, मराठी में अंबा, इंग्लिश में मैंगो कहा जाता है।

संस्कृत के महान कवि कालिदास ने तीसरी-चौथी शताब्दी में ‘मेघदूत’ महाकाव्य लिखा। इसमें मेघ को संबोधित करते हुए यक्ष कहता है कि रामगिरि पर कुछ देर रुकने के बाद तुम आम्रकूट पर्वत (आमों का बड़ा वन) पर कुछ देर विश्राम करना। यह आम्रकूट पर्वत (मध्य भारत) जंगली आम के वृक्षों से ढका हुआ है। वृक्षों के पके पीले आम शोभा दे रहे हैं। देश के मशहूर शायर मिर्जा गालिब पुरानी दिल्ली की एक गली के बाहर यारों के साथ सजी महफिल में आम खा रहे हैं। वहां से एक कुम्हार गधा लेकर गुजरा। गधे ने आम के छिलकों और गुठली को सूंघा और आगे बढ़ गया। महफिल में एक यार ने कहा, देखा मिर्जा, गधे भी आम नहीं खाते हैं। मिर्जा ने उलट जवाब दिया कि गधे हैं, जो आम नहीं खाते। ये दो वृत्तांत लंबी कालावधि के हैं। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि आम हजारों सालों से भारत की शान बना हुआ है।

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