सिनेमैटोग्राफी कला-विज्ञान का मिश्रण है, हमें तकनीक को और ज्यादा अपनाने की जरूरत है: आर. रत्नावेलु

मनोरंजन


दिल्लीः  हमारे समय के ऐसे प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर, जिनकी फिल्मों ने सिने प्रेमियों के दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ी है, उनमें शुमार आर. रत्नावेलु, मनोज परमहंस और सुप्रतिम भोल ने 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, गोवा में “सिनेमैटोग्राफी में तकनीक की बारीकियां” विषय पर एक बातचीत सत्र में भाग लिया।

सिनेमैटोग्राफर बनने के लिए क्या जरूरी है, इस पर अपने दृष्टिकोण साझा करते हुए इन तीनों ने एक स्वर में कहा कि कड़ी मेहनत और समय के साथ खुद को अपडेट करना ही इस क्षेत्र में कामयाब होने की कुंजी है।

सिनेमा की दुनिया में अपनी प्रेरक यात्रा और एक सिनेमैटोग्राफर की अपनी परिभाषा के बारे में बात करते हुए आर. रत्नावेलु ने कहा कि सिनेमैटोग्राफर कहानी को निर्देशक की कल्पना अनुसार चित्रों में उतारते हैं। उन्होंने कहा, “हम तकनीशियन नहीं हैं, बल्कि ऐसे सृजनकार हैं जो फिल्मों का जादू निर्मित करने के लिए अपने कौशल का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे प्रमुख लोग जो अत्यधिक दबाव में काम करते हैं, उनके तौर पर हमारा योगदान ज्यादा मायने रखता है। हम लोग फिल्म उद्योग के गुमनाम नायक हैं, जो सेट पर सबसे पहले पहुंचते हैं और सबसे अंत में जाते हैं।”

रत्नावेलु जो कि वारनम आयिरम, एंथिरन (रोबोट) जैसी फिल्मों में अपने कैमरे से जादू पैदा करने के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने अपने क्राफ्ट को अपडेट करने की तकनीकों का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि सिनेमैटोग्राफी कला और विज्ञान का मिश्रण है, ये सिर्फ कला नहीं है। अगर कोई यहां बने रहना चाहता है तो उसे तकनीक को और ज्यादा अपनाने की जरूरत है। अपने अब तक के सफर के बारे में बताते हुए रत्नावेलु ने कहा कि गैर-सिनेमा पृष्ठभूमि से आने के बाद भी वे अपने क्षेत्र में अब तक सफल रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं 25 साल बाद भी मजबूती से बना हुआ हूं। आपको पृष्ठभूमि की आवश्यकता नहीं होती है। एक बार जब आप अपना समर्पण और ईमानदारी इस काम में डाल देते हो तो फिर आप वो पा सकते हो जो आप पाना चाहते हो। मैं लगातार खुद को अपग्रेड करता रहता हूं।”

2008 में रजनीकांत अभिनीत फिल्म रोबोट के निर्माण के दौरान डिजिटल प्रारूप को अपनाने की अवधि याद करते हुए उन्होंने कहा कि रोबोट ने वीएफएक्स की क्षमता का अधिकतम उपयोग किया। भले ही ये चुनौती बहुत बड़ी थी लेकिन मैंने इसे करने का फैसला किया और तकनीक में गहराई में उतरना शुरू किया। हमें इस दौड़ में बने रहने के लिए खुद को लगातार अपग्रेड करने की जरूरत है।”

तमिल, तेलुगू और मलयालम फिल्म उद्योगों में काम कर चुके मनोज परमहंस ने कहा, एक फिल्मकार बनना एक कभी न खत्म होने वाला सपना है जिसे निरंतर अपडेट किए जाने की जरूरत होती है। उन्होंने कहा, “हम दुनिया के सबसे अच्छे किस्सागो हैं, लेकिन तकनीकी रूप से हमें सुधार करना होगा।” कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है, इस बात पर जोर देते हुए इन प्रशंसित सिनेमैटोग्राफर ने कहा कि लोग तकनीक के साथ ही सीख सकते हैं। हर कोई फोटोग्राफर है, और मोबाइल फोन बहुत ही अच्छे हो चुके हैं। इसलिए जब हम ये काम करें तो वो दूसरों से बेहतर होना चाहिए।

निर्देशकों के विजन को साकार करने के लिए वे किस दर्द से गुजरते हैं, इससे जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक बार उन्हें कड़ाके की ठंड में लद्दाख-चीन सीमा तक 200 किमी की यात्रा करनी पड़ी, क्योंकि वो एकमात्र ऐसी जगह है जहां हमें प्राकृतिक झरने देखने को मिलते हैं। उन्होंने कहा, “ये मेरे लिए असली जादू जैसा था। सिर्फ एक शॉट के लिए हमने वो दूरी तय की। इससे जो नतीजा हमें हासिल हुआ उसके बाद तो हम अपने उस संघर्ष को भी भूल गए।”

मनोज के मुताबिक, इस काम को आसान बनाने के लिए अनरियल इंजन जैसे मुफ्त सॉफ्टवेयर मौजूद हैं जो सिनेमैटोग्राफर के लिए वाकई में कारगर होते हैं। उन्होंने कहा, “ये इतने यूज़र फ्रेंडली हैं कि हम शूटिंग के लिए जाएं उससे पहले असल दुनिया की सारी संभावित स्थितियों की तैयारी की जा सकती है।” जो युवा अपनी कला को निखारना चाहते हैं, उन्हें मनोज ने सलाह दी कि ऐसे सॉफ्टवेयर और वीडियो ट्यूटोरियल पर ज्यादा समय बिताएं।

सुप्रतिम भोल, जो अपनी फिल्म अपराजितो और अविजांत्रिक की सिनेमैटोग्राफी के लिए जाने जाते हैं, उनका कहना था कि एक सटीक शॉट पाने के लिए कुछ आशीर्वाद की जरूरत होती है। उन्होंने कहा, “भले ही हम अक्सर पूरी तैयारी के साथ होते हैं, लेकिन जब हम फिल्म देखते हैं तो उस अदृश्य आशीर्वाद की कमी के कारण फिल्म को लेकर वो जुड़ाव नहीं पैदा होता।”

कैसे उनका शिल्प उनके जीवन से प्रभावित है, ये बताते हुए सुप्रतिम ने कहा कि: “मैंने जो भी किताबें और कविताएं पढ़ी हैं, जो भी तस्वीरें क्लिक की हैं, जो पेंटिंग मैंने बनाई हैं, जो भी गाने मैंने अपने बाथरूम में गाए हैं, ये इन्हीं सब चीजों का समामेलन है जो जीवंत हो जाता है। ये आपका जीवन ही है जो सिनेमा के रूप में अभिव्यक्त होता है।”

उनकी कार्यशैली के बारे में पूछे जाने पर सुप्रतिम ने कहा कि ये महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति को स्क्रिप्ट के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए। उन्होंने कहा, “सबसे प्रमुख नियम ये होना चाहिए कि अपनी सहजवृत्ति पर भरोसा करें। अंततः हम सब इंसान हैं। आप जितना ज्यादा लोकल होंगे, उतना ही ज्यादा ग्लोबल होते चले जाएंगे।”

इस सत्र का संचालन फिल्म पत्रकार, आलोचक और पद्मश्री से सम्मानित भावना सोमाया ने किया।

इफ्फी-53 में मास्टरक्लास और इन-कन्वर्सेशन सत्र सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एसआरएफटीआई), एनएफडीसी, फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) और ईएसजी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किए जा रहे हैं। फिल्म निर्माण के हर पहलू में छात्रों और सिनेमा के प्रति उत्साही लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए इस वर्ष कुल 23 सत्रों का आयोजन किया जा रहा है, जिनमें मास्टरक्लास और इन-कन्वर्सेशन सत्र शामिल हैं।

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