पटना नगर निगम चुनावः गैरविवादित कुसुमलता वर्मा को कायस्थों का पूर्ण और अन्य जातियों का भी समर्थन

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पटनाः बिहार में नगर निकाय चुनाव भले दलगत आधार पर नहीं होते हैं, लेकिन राजनीति छोटे स्तर की हो या बड़े स्तर की हो, राजनीतिक पार्टियां तो अपने लिए जगह ढूंढ ही लेती हैं। यही वजह है कि नगर निकाय चुनाव में भी राजनीतिक पार्टियां अपने लिए कैंडिडेट चुन चुकी हैं और अपने-अपने स्तर पर प्रचार प्रसार में जुट गई हैं। ये बात अलग है कि कोई सामने खुलकर नहीं आ रहा है मगर साइलेंट वोटिंग करने के लिए लोगों को प्रेरित जरुर कर रहे हैं। पटना नगर निगम चुनाव पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। टिकना भी लाजिमी है क्योंकि यहां कायस्थों वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। ऊपर से यहां के सांसद रविशंकर प्रसाद, कुम्हरार के विधायक अरुण सिन्हा, बांकीपुर के विधायक नितिन नवीन ये तीनों कायस्थ समुदाय से आते हैं। इनकी चुप्पी यह साबित करती है कि ये किसी कायस्थ मेयर कैंडिडेट के साथ नहीं हैं क्योंकि इनको यह भय सता रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कायस्थ कैंडिडेट उनकी मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। वैसे यहां के जनप्रतिनिधि भाजपा से आते हैं।
संपर्क में जुटे कैंडिडेट
नगर निकाय चुनाव का दूसरे चरण के लिए प्रचार थमने के साथ कैंडिडेट डोर टू डोर लोगों से संपर्क करने में जुटे हुए हैं। पहली बार मेयर और उपमहापौर के लिए सीधा चुनाव। दूसरे चरण में 68 नगर निकायों के लिए मतदान। 17 नगर निगम, 2 नगर परिषद और 49 नगर पंचायतों के लिए चुनाव। दूसरे चरण के निकाय चुनाव को लेकर 28 दिसंबर को वोटिंग। सुबह सात बजे से शाम 5 बजे तक वोटिंग होगी। दूसरे चरण में 61 लाख 94 हजार 826 मतदाता करेंगे वोट। दांव पर 11 हजार 127 उम्मीदवारों की किस्मत। प्रत्येक वार्ड के लिए नियंत्रण कक्ष की स्थापना। 30 दिसंबर को होगी वोटों की गिनती।
पटना में जाति बनाम सर्वजाति मत
सीता साहू पिछले दो टर्म से मेयर हैं। इनसे लोगों की नाराजगी जगजाहिर है। माला सिन्हा की बात करें तो ये पहले से वार्ड पार्षद रही हैं तो इनका भी कमोबेश विरोध हो सकता है। रत्ना पुरकायस्थ नौकरी पेशा से ताउम्र जुड़ी रही हैं और अब मैदान में है। इनके अलावे अगर बात की जाए कुसुमलता वर्मा की तो इनके बढ़ते कद को कम नहीं आंकी जा सकती है। क्योंकि कुसुमलता के साथ कायस्थ के अलावे अन्य मतदाताओं का रुझान देखने को मिल रहा है। सूत्रों की मानें तो माला सिन्हा और कुसुमलता वर्मा को लेकर कायस्थ मतदाताओं में विचारों का मंथन जारी है, लेकिन बिना दिखावे के कुसुमलता वर्मा की रणनीति अपनी बिरादरी के साथ-साथ अन्य विरादरियों की वोटों पर भी है। कुसुमलता वर्मा एक ऐसी कैंडिडेट के रुप में ऊभरकर सामने आयी हैं जिनके साथ भूमिहार, कायस्थ, ब्राह्मण, राजपुत के अलावे बड़े पैमाने पर पिछड़ी जातियों और मुस्लिम समुदाय का भरपुर समर्थन मिल रहा है। कुसुमलता वर्मा के बारे में कहा जाता है कि इनकी साफ-सुथरी क्षवि इनके राजनीतिक करियर में सफलता की कुंजी साबित हो रहा है।
गैरविवादित चेहरे पर लगेगी मुहर
राजनीति में कब क्या होगा कहना मुश्किल है। जनता है किसके साथ कब खड़ी हो जाएगी यह तो वही जानें। स्थानीय चुनाव में अक्सर देखा जाता है कि कम दिखावे वाले कैंडिडेट के तरफ लोगों का रुझान बहुत ज्यादा होता है और वो सफलता को प्राप्त करते हैं। जिस मेयर कैंडिडेट का सभी जाति धर्म से वोट मिलेगा उसी की सफलता होगी। अब ऐसे में इंश्योरेंस बैंक के अवकाश प्राप्त प्रबंधक सुजीत वर्मा, जो की अपनी जाति के कदावर नेताओं में माने जाते हैं उनकी पत्नी कुसुमलता वर्मा को इसका बड़ा लाभ मिल सकता है। एक तरफ अफजल इमाम और सीता साहू की लड़ाई है उस बीच से कुसुमलता वर्मा की लड़ाई इससे अलग अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करा रही है और गैरविवादित पहली बार में मैंदान में उतरीं कुसुमलता वर्मा को भी राजनीतिक पंडित सीता साहू से सीधा मुकाबला मान रहे हैं। ये बात अलग है कि इलाके-इलाके पर निर्भर करेगा वोटों का वैरी करना। लेकिन इस चुनाव से यह भी साबित हो जाएगा की आगामी विधानसभा चुनाव पर उसका क्या असर पड़ने वाला है।

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