भारत के शौर्य, पराक्रमी देशभक्त योद्धा महाराणा प्रताप, जिन्होंने किसी के आगे सर नहीं झुकाया

आलेख
  • धीरज कुमार सिंह उर्फ लव सिंह

   (प्रदेश अध्यक्ष, कुंवर वाहिनी, बिहार)

                 भारत वीरों, योद्धाओं, क्रांतिकारियों की भूमि है। यहां की धरती अनेक महान योद्धाओं के जीवन, त्याग, बलिदान और बहादुरी की गाथाओं से भरा पड़ा है, उनमे से एक महान योद्धा हैं प्रमुख रूप से महाराणा प्रताप का भी नाम आता है जिनके बहादुरी के किस्से सुनकर लोग दांतों तले ऊंगली दबा लेते हैं। भारत के महान योद्धाओं ने जीवनभर अपने बहादुरी के दम पर हमेशा विरोधियों को पराजित किया है और कभी भी उनके सामने घुटने नहीं टेके। इसी परिभाषा को परिलक्षित करते हुए महाराणा प्रताप का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है जिन्होंने अपने आजीवन कभी भी धुर विरोधी बादशाह अकबर के सामने पराधीनता स्वीकार नहीं की और पूरे जीवन भर अकबर से लोहा लेते रहे। महाराणा प्रताप के जीवन इतिहास और उनसे जुडी हुई शौर्य गाथाएं जो आज भी स्वतंत्रता की राह पर चलने का मार्ग दिखाते हैं।
                                      09 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में पिता राणा उदय सिंह माता का नाम जयवंताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी, के यहां एक बच्चे का जन्म हुआ। जिसे बचपन में कीका नाम से जाना जाता है। उसी बच्चे का नाम आगे चलकर महाराणा प्रताप के रुप में प्रसिद्ध हुआ। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ था। महाराणा प्रताप ने कुल 11 शादिया की थी महाराणा प्रताप की सबसे बड़ी पत्नी का नाम अज्बदे पुनवर था तथा इनकी 17 पुत्र थे जिनमें अमर सिंह इनके ज्येष्ठ पुत्र थे।
                                      महाराणा प्रताप बचपन से ही बड़े प्रतापी वीर योद्धा थे तथा वे स्वाभिमानी और किसी के अधीन रहना स्वीकार नही करते थे। वे स्वतंत्रा प्रेमी थे जिसके कारण वे अपने जीवन में कभी भी मुगलों के आगे नहीं झुके उन्होंने कई वर्षो तक कई बार मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किये उनकी इसी दृढ वीरता के कारण बादशाह अकबर भी सपने में महाराणा प्रताप के नाम से कांपता था। महाराणा प्रताप इतने बड़े वीर थे की वे कई बार अकबर को युद्ध में पराजित भी किये थे, उनकी यही वीरता के किस्से इतिहास के पन्नो से भरे पड़े हैं, जिसके फलस्वरूप अकबर ने शांति प्रस्ताव के लिए 4 बार शांतिदूतों को महाराणा प्रताप के पास भेजा जिसके लिए महाराणा प्रताप ने पूरी तरह से हर बार अधीनता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था इन शांतिदूतों में जलाल खान, मानसिंह, भगवान दास और टोडरमल थे।
                                      महाराणा प्रताप कहते थे मैं पूरी जिन्दगी घास की रोटी और पानी पीकर जिन्दगी गुजार सकता हूं, लेकिन किसी की पराधीनता मुझे तनिक भी स्वीकार नहीं है, जिसके चलते महाराणा प्रताप पूरी जिन्दगी मुगलों से संघर्ष करते रहे। 18 जून 1576 को महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दीघाटी युद्ध हुआ, यह युद्ध इतिहास के पन्नो में महाराणा प्रताप की वीरता के लिए जाना जाता है। महज 20000 सैनिको को लेकर महाराणा प्रताप ने मुगलों के 80000 सैनिको से मुकबला किया जो की अपने आप में अद्वितीय और अनोखा है। इस युद्ध में मुगल सेना का संचालन मानसिंह और आसफ खां ने किया था जबकि मेवाड़ के सैनिको का संचालन खुद महाराणा प्रताप और हाकिम खान सूरी ने किया था। इतिहासकारों की दृष्टि से देखा जाय तो इस युद्ध का कोई नतीजा नही निकलता दिखाई पड़ता है लेकिन महाराणा प्रताप के वीरता के मुट्ठी भर सैनिक, मुगलों के विशाल सेना के छक्के छुड़ा दिए थे और फिर फिर जान बचाने के लिए मुगल सेना मैदान छोड़कर भागने भी लगी थी इस युद्ध की सबसे बड़ी यही खासियत थी की दोनों सेना की आमने सामने लड़ाई हुई थी जिसमें प्रत्यक्ष रूप से महाराणा प्रताप ने विजय पताका लहराया था। हल्दीघाटी घाटी युद्ध के पश्चात तो बादशाह अकबर को महाराणा प्रताप के पराक्रम से इतना खौफ हो गया था की उसने अपनी राजधानी आगरा से सीधा लाहौर से विस्थापित हो गया था और फिर दुबारा महाराणा प्रताप के पश्चात ही उसने अपनी राजधानी आगरा को बनाया।
                                      महाराणा प्रताप को बचपन से घुड़सवारी करना बहुत पसंद था। जिसके फलस्वरूप एक दिन इनके पिता के एक अफगानी सफ़ेद घोडा और दूसरा नीला घोडा पसंद करने को बोले लेकिन दुसरे भाई की पसंद के आगे महाराणा प्रताप को नीला घोडा मिला। जिसका नाम महाराणा प्रताप ने चेतक रखा था महाराणा प्रताप की तरह उनके घोड़े की वीरता के किस्से भी इतिहास में सुनने को मिलते है
“रण बीच चोकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था,
राणाप्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था,
जो तनिक हवा से बाग़ हिली लेकर सवार उड़ जाता था,
राणा की पुतली फिरी नहीं, तब तक चेतक मुड जाता था,”

अर्थात युद्ध के चाहे कितने भी विकट परिस्थिति में महाराणा प्रताप क्यू न फसे हो लेकिन उनका प्रिय घोडा चेतक महाराणा प्रताप के जान बचाने में हमेसा सफल रहता था उसकी फुर्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था की महाराणा प्रताप के तनिक इशारे पर चेतक हवा की चाल में उड़ने लगता था और महाराणा प्रताप का पलक झपकती भी नहीं थी, चेतक इतना तेज था की वह इशारे से सबकुछ समझ जाता था। हल्दीघाटी युद्ध के दौरान युद्ध में चेतक बुरी तरह घायल हो जाता है और भागते समय 21 फीट की चौडाई के नाले को पार करने के पश्चात चेतक कुछ दूर चलते ही गिर जाता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है चेतक की मृत्यु पर महाराणा प्रताप बहुत ही दुखी रहते थे और चेतक की मृत्यु का दुःख उन्हें साथ नही छोड़ता है।
                                      29 जनवरी 1597 को दुर्घटना में घायल होने के पश्चात महाराणा प्रताप का निधन हो गया। भले ही महाराणा प्रताप इस दुनिया को छोड़कर चले गये लेकिन उनके बहादुरी के किस्से आज भी जनमानस में अति प्रसिद्द है। एक सच्चे राजपूत के रूप में बेहद पराक्रमी देशभक्त योद्धा के रूप में हमेशा महाराणा प्रताप का नाम आज भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है महाराणा प्रताप के पराक्रम की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है। वे आज भी हमारे देश भारत के शौर्य साहस राष्ट्रभक्ति की मिशाल बन गये हैं जिनके नाम से ही हर भारतीय अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है।
अकबर  वीर योद्धा महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था, पर उनकी यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नहीं था, हालांकि अपने सिद्धांतों और मूल्यों की लड़ाई थी। एक वह था जो अपने क्रूर साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था , जब की एक तरफ यह था जो अपनी भारत मां की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहा था। महाराणा प्रताप के मृत्यु पर अकबर को बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों के प्रशंसक थे और अकबर जानता था कि महाराणा जैसा वीर कोई नहीं है इस धरती पर। यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और उनकी आंखों में भी आंसू आ गए।
महाराणा प्रताप के स्वर्गावसान के वक्त अकबर लाहौर में थे और वहीं उन्हें खबर मिली कि महाराणा प्रताप का निधन हो गया। अकबर की उस वक्त की मनोदशा पर अकबर के दरबारी दुरसा आढ़ा ने राजस्थानी छंद में जो विवरण लिखा वो कुछ इस तरह है:-
अस लेगो अणदाग पाग लेगो अणनामी
गो आडा गवड़ाय जीको बहतो घुरवामी
नवरोजे न गयो न गो आसतां नवल्ली
न गो झरोखा हेठ जेठ दुनियाण दहल्ली
गहलोत राण जीती गयो दसण मूंद रसणा डसी
निसा मूक भरिया नैण तो मृत शाह प्रतापसी

अर्थात्
हे गुहिलोत राणा प्रतापसिंह तेरी मृत्यु पर शाह यानि सम्राट ने दांतों के बीच जीभ दबाई और निश्वास के साथ आंसू टपकाए। क्योंकि तूने कभी भी अपने घोड़ों पर मुगलिया दाग नहीं लगने दिया। तूने अपनी पगड़ी को किसी के आगे झुकाया नहीं, हालांकि तू अपना आडा यानि यश या राज्य तो गंवा गये लेकिन फिर भी तू अपने राज्य के धुरे को बांए कंधे से ही चलाता रहा। तेरी रानियां कभी नवरोजों में नहीं गईं और ना ही तू खुद आसतों यानि बादशाही डेरों में गया। तू कभी शाही झरोखे के नीचे नहीं खड़ा रहा और तेरा रौब दुनिया पर गालिब रहा। इसलिए मैं कहता हूं कि तू सब तरह से जीत गया और बादशाह हार गया।

धीरज कुमार सिंह उर्फ लव सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, कुंवर वाहिनी

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