हिंदी की पहली उपन्यास ‘रेत की समाधि’ को मिला बुकर पुरस्कार

विदेश


भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास ‘रेत की समाधि’ जिसे अमेरिकन ट्रांस्लेटर डेजी रॉकवेल ने अंग्रेजी में ट्रांसलेट किया और जिसका नाम ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ रखा। इस उपन्यास टॉम्ब ऑफ सैंड को प्रसिद्ध इंटरनेशनल बुकर प्राइज मिला है। दुनिया की उन 13 किताबों में शामिल हो गई है जिन्हें इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिला है। पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी भाषा की किताब है। लंदन में गीतांजलि श्री को इस किताब के लिए पुरस्कार मिला। गीतांजलि श्री को 5 हजार पाउंड की इनामी राशि मिली जिसे वो डेजी रॉकवेल के साथ शेयर करेंगी। जजों के पैनल की अध्यक्षता करने वाले अनुवादक फ्रैंक वाईन ने बताया कि जजों ने बहुत भावुक बहस के बाद बहुमत से ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को इस खिताब के लिए चुना। उन्होंने कहा कि ये भारत और विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है, जिसकी मंत्रमुग्धता, करुणा युवा उम्र, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र को कई आयाम में ले जाती है।
इस उपन्यास में 80 साल की बुजुर्ग विधवा की कहानी है, जो 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद अपने पति को खो देती है। इसके बाद वह गहरे अवसाद में चली जाती है। काफी जद्दोजहद के बाद वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान पीछे छूटे अतीत का सामना करने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित ‘रेत समाधि’ हिंदी की पहली ऐसी किताब है जिसने न केवल अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की लॉन्गलिस्ट और शॉर्टलिस्ट में जगह बनायी बल्कि गुरुवार की रात, लंदन में हुए समारोह में ये सम्मान अपने नाम भी किया।

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