चालीस पार की डायरी
सुबह से सोच रही थी गुमसुमउंगली उठाने के पहलेतुमतुम हाँ तुम सभी सोच लेना अगर प्रेमिल भाव में हो कि कल को सभी इस दौर से गुज़र रही/ रहे होंगे बेहद प्रेम में खींची गई छवि है तुम्हारी मेरी आंखों मेंसदियों से चिर प्रतीक्षित हम औरतों का मन …स्मृतियों के पीछे भी और आगे भी […]
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