- मनोज कुमार श्रीवास्तव
भारतीय राजनीति में अपराधीकरण का स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा है।राजनीति का अपराधीकरण से पूरा देश अब असमाजिक और आपराधिक राजनीति पर गम्भीर चिंता व्यक्त कर रहा है।राजनीतिक दलों और असमाजिक तत्वों के बीच बढ़ती सांठ-गांठ है जो अपराधीकरण को जन्म दे रही है।राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र की पवित्रता के लिए अभिशाप है।
राजनीति के अपराधीकरण का अर्थ राजनीति में आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों और अपराधियों की बढ़ती भागीदारी से है।सामान्य अर्थों में यह शब्द आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का राजनेता और प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने का घोतक है।वर्ष 1993 में वोहरा समिति की रिपोर्ट और वर्ष 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय आयोग (NCRWC) की रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि भारतीय राजनीति में गम्भीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है।
वर्तमान समय में स्थिति ऐसी बन गई है कि राजनीतिक दलों के बीच इस बात की प्रतिस्पर्धा है कि किस दल में कितने उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के है क्योंकि इससे उनके चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाती है।अपराधियों का पैसा और बाहुबल राजनीतिक दलों को वोट हासिल करने में मदद करता है।चुकी भारत की चुनावी राजनीति अधिकांशतः जाति ऑफ धर्म जैसे कारणों पर निर्भर करती है।इसलिए उम्मीदवार आपराधिक आरोपों की स्थिति में भी चुनाव जीत जाते हैं।
राजनीतिक अपराधीकरण समाज में हिंसा की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है और भावी जनप्रतिनिधियों के लिए एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करता है।राजनीति के अपराधीकरण का देश की न्यायिक प्रक्रिया पर भी प्रभाव देखने को मिलता है।अपराधियों के विरुद्ध जांच प्रक्रिया धीमी हो जाती है।राजनीति के अपराधीकरण के कारण चुनावी प्रक्रिया में कालेधन का प्रयोग काफी अधिक मात्रा बढ़ जाता है।
भारत की राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा देने में नागरिक समाज का भी बराबर का योगदान रहा है।अक्सर आम आदमी अपराधियों के धन और बाहुबल से प्रभावित होकर बिना जांच किये ही उन्हें वोट दे देता है।भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अंतर्निहित देरी ने राजनीति के अपराधीकरण को प्रोत्साहित किया है।अदालतों द्वारा आपराधिक मामले को निपटने में औसतन 15 वर्ष लग जाते हैं।
चुनाव लड़नेवाले अधिकांश उम्मीदवारों को धन,निधि और दान की आवश्यकता होती है।यह ध्यान रखना उचित है कि भ्रष्टाचार सीधे तौर पर कानून की अवमानना और राजनीति के अपराधीकरण के बीच सीधा संबंध है।जब कानून की अवमानना राजनीति के अपराधीकरण के साथ जुड़ जाती है तो यह भ्रष्टाचार को जन्म देती है।राजनेता चुनावों के दौरान भ्रष्टाचार और बाहुबल को खत्म करने के वादे करते हैं परंतु शायद ही कभी पूरा करते हैं।
देश का अकुशल शासन भी राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है चुनाव की प्रक्रिया को नियंत्रित करने हेतु उचित कानूनों और नियमों का अभाव होता है।केवल “आदर्श आचार संहिता “है जिसे किसी कानून द्वारा लेकर नहीं किया जाता है।राजनीति के अपराधीकरण को समाप्त करने तथा झूठे हलफनामे दाखिल करने के लिए अयोग्य ठहराने से सम्बंधित मुद्दों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए तथा तत्काल विचार किया जाना चाहिए।आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकने के लिए पर्याप्त है इसलिए इसमें संशोधन की आवश्यकता है।
नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म(ADR) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार जहां एक ओर वर्ष 2009 में गम्भीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या 76 थी वहीं 2019 में बढ़कर 159 हो गयी।इस प्रकार 2009-2019 के बोच गम्भीर आपराधिक मामलों में बलात्कार,हत्या,हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के विरुद्ध अपराध आदि को शामिल किया जाता है।
भारतीय राजनीति में अपराधीकरण का इतिहास काफी पुराना है।अंग्रेजों ने भी सत्ता में बने रहने तथा आतंक फैलाने के लिए अपराधी तत्वों कज़ बड़े पैमाने पर प्रयोग किया।राजनीति में बाहुबल का बढ़ता दुरुपयोग न केवल निर्वाचन आयोग के लिए चिंता का कारण है बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए चिंता क् कारण है।क्योंकि परिणाम काफी भयावह सिद्ध हो रहे हैं।यह लोकतंत्र की जड़ों तक को नुकसान पहुंचाने लगे है।आम जनता नो लोकतंत्र की जननी है वह इन अपराधों के अधीन अपने इस स्वतंत्र अधिकार का प्रयोग करने लगी है।
शिक्षा के अभाव में जनता जागरूक न हो सकी और सत्ता मोह ने नैतिक स्तर में लगातार गिरावट लाने का कार्य किया।इस स्वरूप राजनीतिक दलों का एक मात्र लक्ष्य सत्ता की प्राप्ति करना बन गया है।दलों ने अपने उम्मीदवारों का चयन उनकी योग्यता व उनके दल के प्रति निष्ठा कद आधार पफ नहीं बल्कि जिग्ने की सम्भावनाओं के आधार पर देना शुरू कर दिया।चुनाव जीतने की लालसा ने सभी अपराधों को राजनीति में समर्पित कर दिया।चुनावों का अनवरत चक्र और आठो प्रहर की सत्ता राजनीति लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रशासनिक क्षमता को आघात पहुंचाते हैं और राजनीति के अपराधीकरण को प्रोत्साहित करते हैं।
हमारा राजनीतिक जगत दो मुहें जंतुओं से पट गया है और वहां धर्म,ईमान की बात गुनाह मानी जाती है।यही कारण है कि हमारे समाज मे तस्कर, लुटेरे, घूसखोर आदि प्रतिष्ठा के पात्र बन गये हैं।शासकों की समस्त नीतियां घूम-फिर कर भ्रष्ट करो ऑफ राज करो के प्रति उन्मुख हो गयी है।आर्थिक जगत पर निगाह डालने का प्रयास करना तो प्रतीत होता है कि हम पुनः औपनिवेशिक युग में नई रहे हैं ऑफ विदेशी ताकतों की गिरफ्त में हैं।देश की युवा प्रतिभाओं की अनेक खोजें उचित एवं पर्याप्त प्रोत्साहन तथा संरक्षण के अभाव में कहीं गुमनामी के अंधेरे में खो चुकी है।