– मनोज कुमार श्रीवास्तव
आज दुनिया की तमाम भाषाएँ लगभग 20 लिपियों में लिखी जाती है। भारत में में भी करीब 13 लिपियों का प्रयोग किया जाता है। देश में 22 भाषाओं को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है।जब एक ही देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली भाषाएं जैसे-मराठी,नेपाली,डोगरी,संथाली,मणिपुरी, संस्कृत आदि संवैधानिक मान्यता प्राप्त कर सकती है तो फिर भोजपुरी भाषा को क्यों नहीं मान्यता प्राप्त हुई।आखिर क्यों, यह एक विचारणीय प्रश्न पैदा होता है।
सरकार भोजपुरी के साथ सौतेलापन व्यवहार कर रही है। इस भाषा का एक बड़ा सामाजिक आधार है और इसे बोलनेवाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है।इस दृष्टिकोण से भी इसे संवैधानिक मान्यता मिलनी चाहिए।भोजपुरी भाषा पूर्व से ही कैथी,महाजनी और देवनागरी लिपि में लिखी जाती रही है।इसका उल्लेख डॉ0 भोलानाथ तिवारी ने अपनी पुस्तक,”हिंदी भाषा का इतिहास”में किया है।
जब भी भोजपुरी के लिए संवैधानिक मान्यता की मांग की जाती है तो भोजपुरी का विरोध करनेवाले लोग केंद्र सरकार को यह समझाने का कुत्सित प्रयास करते हैं कि देवनागरी हिंदी की अपनी लिपि है और भोजपुरी की अपनी कोई लिपि नहीं होने के कारण यह देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।इसलिए इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सकता केवल राजनीतिक व जहां से भोजपुरी और अवधी को स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता देने का मतलब है हिंदी को कमजोर करना।
हिंदी भाषा ऐसी भाषा है जिसमें भोजपुरी और अवधी जैसी लोकभाषायी उसमें समाहित है।वैसे स्थापित लिपि और व्याकरण के बिना किसी भी भाषा को मान्यता देना गलत होगा।भोजपुरी को भाषा का दर्जा दिलानेवाले लोगों के आंदोलनों के कोई स्पष्ट आधार नहीं मिलता है।वे केवल देवनागरी में लिखी तख्ती दिखाते हैं, हिंदी से अलग करो।वर्षों से चली आ रही आंदोलन करने वाले जब इतने चिंतित हैं तो इसकी मूल लिपि कैथी को ही विकसित और स्थापित कर देते।वास्तव में वे राजनीतिक लोग हैं जो इसी के नाम पर वर्षो से अपनी दुकान चला रहे हैं।भारत में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा हिन्दी का इतिहास बहुत पुराना नहीं है।
आधुनिक हिंदी का जनक कहे जाने वाले 1850-55 के भारतेंदु हरिश्चंद्र को माना जाता है जो बहुत कम समय में यह हिंदी आशातीत सफलता प्राप्त की है।जिन भाषाओं पर हिंदी खड़ी है उनको बोलियों का दर्जा दिया गया है।हालांकि की देशों में इन बोलियों को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है जबकि हिंदी को नहीं।कुछ दशक पहले तक हिंदी किसी की मातृभाषा नहीं थी।लोग पढ़ते-लिखते गए और अपनी मातृभाषा से कटते गये।नि:सन्देह भोजपुरी कई लोग बोलते हैं लेकिन इसका इतिहास कितना पुराना है यह शोध का विषय बनता है।
भोजपुरी क्षेत्र में कितने महान साहित्यकारों ने जन्म लिया जैसे-कबीर,भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद पर इनमें से किसी ने भी भोजपुरी में रचना नहीं की।भोजपुरी की आवाज उठानेवाले लोगों को इस पर गहरी चिंतन करनी चाहिए।हिंदी तो देवनागरी लिपि में 19 वीं सदी के मध्य से लिखी जाने लगी जबकि भोजपुरी ब्रजभाषा, अवधी आदि भाषाएँ जिसे पहले के कवि भाखा(बोली) बोलते थे।बहुत पहले से देवनागरी लिपि लिखी जाती थी। यह जानना जरूरी है कि देवनागरी एक अक्षरात्मक लिपि है जिसका प्रयोग भारतीय आर्य भाषा के लिए होता है और हिंदी तो भारतीय आर्य भाषा परिवार की भाषा है हीं नहीं।पहले विदेशी मुसलमान भारत के मुसलमानों को हिंदी कहते थे और आगे चलकर उन्हीं के नाम पर भाषा का नाम हिंदी पड़ा(सन्दर्भ-हिंदी भाषा का उदय और विकास)।हिंदी के अलावा जिन भाषाओं में सबसे अधिक फिल्में बनती हैं उनमें भोजपुरी सबसे ऊपर है।
इतना हीं नहीं आज भोजपुरी गानों में जितनी द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग होता है उतना शायद किसी अन्य भाषा में नहीं होता है।इसमें होनेवाली अश्लीलता को भी दूर करना होगा।हिंदी शहरी भाषा बन गई और बोलियों पर देहाती भाषा का ठप्पा लग गया।इस बार होने वाली आईपीएल की कमेंट्री 13 भाषाओं में प्रसारित हो रही है।सबसे बड़ी बात यह है कि उन 13 भाषाओं में भोजपुरी भी शामिल है।भोजपुरी को जो दर्ज सरकार नहीं कर पा रही है उसे आईपीएल ने यह दर्जा दे दी है।