- समता कुमार (सुनील)
“मुस्लिम वक्फ बोर्ड Vs जिंदल ग्रुप and others केस” बीते शुक्रवार को जिस दिन देश भर में मुस्लिमों द्वारा अलविदा नमाज पढ़ी जा रही थी तब देश की सुप्रीम कोर्ट एक ऐसे अहम मामले में फैसला सुना रहा था,कि आगामी समय में देश की दशा और दिशा बदल सकता है।वो केस था “मुस्लिम वक्फ बोर्ड बनाम जिंदल ग्रुप केस” ये केस कुछ इस तरह का था कि राजस्थान सरकार ने 2010 में जिंदल ग्रुप ऑफ कम्पनीज को एक जमीन माइनिंग के लिए अलॉट की।
उस जमीन के एक भाग पर एक छोटा सा चबूतरा और उससे लगा एक दीवार बना हुआ था। इसी ग्राउंड पर वक्फ बोर्ड ने इस जमीन पर दावा किया परंतु सुप्रीम कोर्ट ने उसके इस दावे की हवा निकाल कर एक माईल स्टोन जजमेंट दे दिया। लेकिन, इस घटना को ठीक से समझने के लिए पहले हमें नियम कानून को ठीक से जानने की आवश्यकता है।
असल में नियम यह है कि जब कोई जमीन / प्रोपर्टी किसी से खरीदी या बेची जाती है तो उस जमीन का सर्वे होता है जो कि कोई सरकारी अमीन या तहसीलदार करते हैं। उसके बाद उस जमीन के बारे में आपत्ति मांगी जाती है। अगर कहीं से कोई आपत्ति नहीं आई तो फिर उस जमीन का नए मालिक के नाम पर दाखिल खारिज कर दिया जाता है। इस वक्फ के मामले में भी कुछ ऐसा ही है.वक्फ Act 1965 और 1995 के अनुसार अगर वक्फ बोर्ड किसी जमीन पर अपना दावा करता है तो वक्फ के सर्वेयर उस जमीन पर जाकर उसका सर्वे करते हैं और अगर उन्हें ऐसा लगा ( if they feel) कि ये वक्फ बोर्ड की जमीन है तो वे उसे अपने रिकॉर्ड में चढ़ा लेते हैं।
लेकिन, अगर किसी को वक्फ बोर्ड के इस कृत्य पर आपत्ति हो तो वो “वक्फ ट्रिब्यूनल” में उसकी शिकायत कर सकता है। और, वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला उसके लिए बाध्यकारी होगा क्योंकि इसे कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है।
(ये नियम काँन्ग्रेस सरकार का बनाया हुआ है) खैर तो राजस्थान के जमीन के मामले में भी ऐसा ही हुआ। उस जमीन पर मौजूद चबूतरे और दीवार की वजह से वक्फ बोर्ड के सर्वेयर 1965 में उस जमीन पर गए और उस जमीन को वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर उसे वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में चढ़ा लिया।
कालांतर में 1995 में नया Act आने के बाद वक्फ बोर्ड के सर्वेयर ने फिर उसे वक्फ की संपत्ति घोषित करते हुए उसे अपने रिकॉर्ड में चढ़ा लिया। इसीलिए जब 2010 में राजस्थान सरकार ने इस जमीन को माइनिंग हेतु जिंदल ग्रुप को दिया तो वहां के लोकल अंजुमन कमिटी ने इस पर आपत्ति की और इसे वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताते हुए वक्फ बोर्ड को चिट्ठी लिख दी।
इसके बाद वक्फ बोर्ड इसे अपनी संपत्ति बताते हुए सरकार के निर्णय पर आपत्ति जताई और वहाँ बाउंड्री देना शुरू कर दिया।इस पर मामला राजस्थान हाईकोर्ट चला गया जहाँ फिर वक्फ बोर्ड ने आपत्ति जताई कि 1965 और 1995 की वक्फ एक्ट के तहत ये संपत्ति हमारी है और ये हमारे रिकॉर्ड में भी चढ़ा हुआ है।
इसीलिए सरकार इसे किसी को नहीं दे सकती है और न ही कोर्ट इस केस को सुन सकती है क्योंकि अगर कोई डिस्प्यूट है भी तो उसे हमारा “वक्फ ट्रिब्यूनल” सुनेगा न कि कोर्ट। इस पर राजस्थान हाईकोर्ट ने आर्टिकल 226 का हवाला देते हुए वक्फ बोर्ड को क्लियर किया कि वो किसी भी ट्रिब्यूनल या लोअर कोर्ट से ऊपर है और आर्टिकल 226 के तहत वो इस केस को सुन सकता है। हाईकोर्ट ने इस मामले में लेकर एक स्पेशलाइज्ड कमेटी बिठा दी।2012 में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी एवं उसके बाद कोर्ट ने आदेश दे दिया कि ये वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं है और इसे माइनिंग के लिए दिया जा सकता है। इस फैसले से वक्फ बोर्ड नाखुश होकर सुप्रीम कोर्ट चला गया।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला फंस गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि आपने क्या सर्वे किया है अथवा आपके रिकॉर्ड में क्या चढ़ा है ? वो सब जाने दो। हम तो कानून जानते हैं और कानून के अनुसार (वक्फ एक्ट 1995 की धारा 3 R के अनुसार) कोई भी प्रोपर्टी वक्फ की प्रॉपर्टी तभी हो सकती है अगर वो निम्न शर्तों को पूरा करता है —-
1. वो जिसकी प्रोपर्टी है अगर वो इसे वक्फ के तौर पर अर्थात इस्लामिक पूजा प्रार्थना के लिए सार्वजनिक तौर पर इस्तेमाल करता हो/ करता था।
2. वो संपत्ति वक्फ के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए दान की गई हो।
3. राज्य सरकार उस जमीन को किसी रिलिजियस काम के लिए ग्रांट की हो।
4.अथवा, उस जमीन के मजहबी उपयोग के लिए जमीन के मालिक ने डीड बना कर दी हो।
सुप्रीम ने आगे कहा कि वक्फ एक्ट 1995 के अनुसार उपरोक्त शर्तों को पूरा करने वाली प्रोपर्टी ही वक्फ की प्रॉपर्टी मानी जायेगी। इसके अलावा कोई भी संपत्ति वक्फ की संपत्ति नहीं है।
इस अनुसार जिस प्रॉपर्टी पर आप दावा कर रहे हो उस प्रॉपर्टी को न तो आपको किसी ने दान में दी है, न ही उसकी कोई डीड है और न ही वो आपने खरीदी है। इसीलिए वो संपत्ति आपकी नहीं है और उसे माइनिंग के लिए दिया जाना बिल्कुल कानून सम्मत है।अब सवाल है कि ये तो महज एक फैसला है और इसमें माइल स्टोन जैसा क्या है ? तो इसके लिए हम थोड़ा इतिहास में जाते हैं कि असल में हुआ क्या है ?
जब 1945 के आसपास लगभग ये तय हो चुका था कि भारत अब आजाद हो जाएगा और भारत का विभाजन भी लगभग तय ही था, तो भारत के वैसे मुस्लिम जो पाकिस्तान जाने का मन बना चुके थे, (जिसमें से बहुत सारे नबाब और छोटे-छोटे रियासतों के राजा, जमींदार वगैरह थे) ने आनन फानन में अपनी जमीनों पर वक्फ बना दिया और भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए।जिसके बाद देश में तुष्टिकरण में आकंठ डूबी सरकार के आ जाने के बाद वो संपत्ति/जमीन वक्फ बोर्ड के पास चली गई। ऐसी लगभग 6-8 लाख स्क्वायर किलोमीटर जमीन होने का अंदेशा है। इसके अलावा कालांतर में रेलवे एवं नगर निगम की खाली जमीन, सार्वजनिक मैदानों, किसी निजी व्यक्ति के खाली प्लाटों आदि पर यहाँ के मुसलमानों अथवा शरारती तत्वों ने मिट्टी के कुछ एक ढेर जमा कर दिए और ये दावा कर दिया कि यहाँ हमारी मस्जिद/ ईदगाह / कब्रिस्तान है,
इसीलिए ये वक्फ की संपत्ति है।
चूंकि 2014 से पहले लगभग हर जगह इनकी तुष्टिकरण वाली सरकारें थी। उन्होंने इनके दावे को आंख बंद कर मान लिया और उन संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में जाने दिया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट आदेश पारित कर दिया है कि 1947 से पहले ट्रांसफर किये गए किसी भी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का अधिकार नहीं होगा क्योंकि उसके कागज मान्य नहीं होंगे। इसके अलावा 1947 के बाद भी जिन संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड अपना अधिकार जताता है, उसके कागज उसे दिखाने होंगे कि वे संपत्ति उसके पास आयी कहाँ से ?
वक्फ बोर्ड के पास संपत्ति आने के वही शर्त हैं जो ऊपर उल्लेखित किया गया है।अगर वक्फ बोर्ड अपने किसी संपत्ति का प्रॉपर कागज नहीं दिखा पाता है तो सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार के फैसले के आलोक में वो जमीन/ संपत्ति अपने मूल मालिक को वापस दे दी जाएगी। अगर जमीन/ संपत्ति का मूल मालिक बंटवारे के बाद देश छोड़कर जा चुका है अथवा 1962, 1965 & 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का साथ देने के आरोप के कारण भाग गया है। उस स्थिति में वो संपत्ति”शत्रु संपत्ति अधिनियम 2017″ के तहत सरकार की हो जाएगी।
अब इसमें हमें और आपको सिर्फ करना ये है कि अगर आपके आसपास कोई ऐसी संपत्ति/जमीन है, जो कि आपके अनुसार वक्फ बोर्ड का नहीं होना चाहिए तो आप इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हवाला देते हुए संबंधित सरकार अथवा कोर्ट को सूचित कर सकते हैं और सरकार एवं कोर्ट उस जमीन को वक्फ बोर्ड के अतिक्रमण से मुक्त करवाने के लिए बाध्य होगी क्योंकि ये सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। हाँ ! अगर आपकी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं है तो भी आप इस आलेख की जानकारी हर किसी को दे ताकि अगर किसी के जानकारी में ऐसा हो तो वो इस संबंध में उचित कदम उठा सके। ध्यान रहे कि 1947 में बंटवारे के समय पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) को मिलाकर उन्हें लगभग 10 लाख 32 हजार स्क्वायर किलोमीटर जमीन दी गई थी और एक अनुमान के मुताबिक कम से कम इतनी ही जमीन/संपत्ति आज भारत में वक्फ बोर्ड के कब्जे में रिकॉर्ड के रुप में है।