देश की आबादी में 80 से 82 फीसदी हिंदू हैं, लेकिन भाजपा को भी केवल 40 फीसदी के आसपास वोट मिलते हैं। ये कहना है चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का। पार्टी ध्रुवीकरण के दम पर चुनाव जीत जाती है, पूरी तरह से गलत है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के एक कार्यक्रम में देश की राजनीति में कथित तौर पर बढ़ते ध्रुवीकरण के मसले पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में प्रशांत किशोर ने कहा, “इस ध्रुवीकरण की बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। 15 साल पहले कैसे ध्रुवीकरण करते थे वह अब बदल गया है। हमने चुनावी आंकड़ों का अध्ययन किया है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि जिस चुनाव को सबसे अधिक ध्रुवीकरण वाला बताया जाता है उसमें भी कोई पार्टी किसी एक समुदाय के 50-55 फीसदी वोटरों को मोबलाइज नहीं कर पाती है।”
उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि आप हिंदू समुदाय के ध्रुवीकरण की कोशिश करते हैं। यह समुदाय देश में बहुसंख्यक है, अगर हिंदू समुदाय में ध्रुवीकरण का स्तर 50 फीसदी तक हो जाता है यानी ये 50 फीसदी किसी एक पार्टी को इसलिए वोट करते हैं क्योंकि वे उस पार्टी से प्रभावित हैं। यहां ध्यान देने वाली चीज यह है कि ध्रुवीकरण से प्रभावित हर एक हिंदू के साथ एक दूसरा हिंदू खड़ा है जो इससे प्रभावित नहीं है।
प्रशांत किशोर ने कहा कि यह मान लेना कि हिंदू-मुस्लिम का ध्रुवीकरण निर्णायक होता है। इस कारण कोई चुनाव जीत या हार सकता है। भारत में भाजपा को 38 फीसदी वोट मिले हैं। हाल में संपन्न उत्तर प्रदेश चुनाव का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस प्रदेश में भाजपा को 40 फीसदी वोट मिले हैं। जबकि राज्य में हिंदू आबादी 80-82 फीसदी है। इसका मतलब है कि आधे से कम हिंदुओं ने भाजपा को वोट किया। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कोई पार्टी केवल ध्रुवीकरण के आधार पर चुनाव जीतती या हारती है।