(४ जुलाई जयन्ती)
– समता कुमार (सुनील)
तकरीबन 94 साल के एक बूढ़े व्यक्ति को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया। बूढ़े के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था।
बूढ़े ने मकान मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी बूढ़े आदमी पर दया आयी और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया।
बूढ़ा अपना सामान अंदर ले गया। रास्ते से गुजर रहे एक नवयुवक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।”
फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं। पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को गौर से देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है ?
पत्रकार ने कहा- “नहीं।”
अगले दिन अखबार के पहले पृष्ठ पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था- ”भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं।”
खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे विषम परिस्थितिवश उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था।
समाचार पत्र ने आगे टिप्पणी की थी कि आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं….??
दरअसल गुलजारीलाल नंदा को स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को भी शालीनता का आदर्श प्रस्तुत करते हुए यह पेंशन भी यह कहकर अस्वीकार कर दिया था कि उन्होंने “स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते” के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी थी। बाद में उनके कई निकटस्थ दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत भी तो नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।
अगले दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के एक बहुत बड़े बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक घबराया और दंग रह गया! तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार श्री गुलजारीलाल नंदा, भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे।
मकान मालिक अपने द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों में झुक गया।
अधिकारियों और वीआईपीयों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। लेकिन श्री गुलजारीलाल नंदा ने यह कहते हुए कि इस बुढ़ापे में अब ऐसी सुविधाओं का क्या काम ? उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
गुलजारीलाल नंदा क जन्म १२४ वर्ष पूर्व ४ जुलाई १८९८ ई. को सियालकोट (पंजाब) में हुआ था,जो अब पाकिस्तान में है। वे दो प्रधानमंत्री क्रमशः जवाहरलाल नेहरु व लाल बहादुर शास्त्री जी मृत्युपरांत दो बार भारत के प्रधानमंत्री के रुप में देश का कुशल संचालन किये।
१९२१ ई. में असहयोग आंदोलन में उस समय भाग लिया, जब वे मुम्बई के नेशनल काॅलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रुप में अपनी सेवा अध्यापन कार्य के रुप में प्रारंभ की थी। १९२२ से १९४६ तक अहमदाबाद टेक्सटाइल उद्योग में लेबर एसोसिएशन के सचिव रहते हुए वे श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहकर उनका निदान करने का प्रयास करते रहे। १९३२ में सत्याग्रह आंदोलन तथा १९४२-१९४४ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
वे बाॅम्बे की विधान सभा के १९३७-१९३९ तथा १९४७-१९५० तक विधायक भी रहे। इस दौरान इन्होंने श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्य भार भी मुम्बई सरकार में रहते हुए संभाला। “इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस” की स्थापना का श्रेय भी श्री नन्दा जी को ही जाता है। वे १९५०-१९५१, १९५२-१९५३ और १९६०-१९६३ तक भारत सरकार के योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे।
अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी ही बन कर रहे। 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व एच डी देवगौड़ा के मिलेजुले प्रयासो से उन्हें “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।
जरा उनके जीवन की तुलना आज के समाज या जनसेवा के ढोंग रचने वाले कालनेमि के शक्ल में वर्तमानकाल के किसी मंत्री तो क्या किसी स्थानीय निकाय या पंचायती शासन के मामूली वार्ड पार्षद या उसके परिवार से ही कर लें तो बहुत ही शर्मनाक एवं घृणास्पद भाव मन में उत्पन्न होने के साथ-साथ एक असह्य पीड़ा भी उत्पन्न होती है।
सामाजिक जीवन के आदर्श मूल्यों के सजीव प्रतीक रहे श्री नन्दा जी को उनकी १२४वीं जयन्ती पर सादर नमन् !!