-मनोज कुमार श्रीवास्तव
आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की स्मृति में उनके जन्मदिवस को “अधिवक्ता दिवस”के रूप में प्रत्येक वर्ष 03 दिसम्बर को मनाया जाता है।उनका जन्म 03 दिसम्बर 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में पिता महादेव सहाय एवं माता कमलेश्वरी देवी के आंगन में हुआ था ।और 12 वर्ष की उम्र में इनकी शादी राजवंशी देवी के साथ हो गईं थी।शिक्षा की दृष्टि से देखा जाये तो ये सभी क्लास में प्रथम श्रेणी से उतीर्ण होते थे।
साल 1921 में प्रिन्स ऑफ वेल के विरोध में पहली बार जेल गए थे।समाज सेवा तथा देश की सेवा के लिए प्रेरणा उन्हें डॉन सोसायटी से मिली।यह संस्था उस समय के विद्यार्थियों को उनके जीवन के चरित्र निर्माण करने में सहायता एवं समाज सेवा के लिए प्रेरित करता था।उन्हें किताब पढ़ने का शौक बचपन से ही था।राजेन्द्र प्रसाद महात्मा गांधी के समर्पण, साहस और दृढ़ विश्वास से बहुत प्रभावित हुए और 1921 में विश्वविद्यालय के सीनेटर के रूप में पद को छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
वे एक विद्वान अधिवक्ता थे।भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।वे स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति हुए।12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात साल 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की।पूरे देश मे अत्यंत लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था।उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत सरकार द्वारा 1962 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया था।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति और खुद एक बहुत ही प्रतिष्ठित वकील डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की जयंती को चिन्हित करने के लिए 03 दिसम्बर को वकील समुदाय द्वारा भारत में अधिवक्ता दिवस मनाया जाता है।अपने चट्टान सदृश्य आदर्शों एवं श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों के लिए डॉ0 प्रसाद सदैव प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।राजनीति के पदार्पण के पहले वकालत एक तरह की परम्परा रही है।मौजूदा मोदी सरकार में 18 कैबिनेट मंत्री वकील है।लगभग इतने ही वकील भारत के पहला मंत्रिमंडल में रहे हैं।
अधिवक्ता की गरिमा वर्तमान भारत में ज्यों की त्यों बनी हुई है।अनेक पेशों का आज आधुनिक बाजारवादी युग में प्रवेश हुआ है पर वकालत की चमक पर कोई पालिस अब तक भरी नहीं हुई है।पूरे देश में बड़ी संख्या में लोग अधिवक्ता के लिए रजिस्टर हो रहे हैं।वकीलों के भीतर मतभिन्नता है परन्तु इतनी विविध मतभिन्नता के उपरांत भी वकीलों की एकता में कोई कमी नहीं है।अधिवक्ता एकता समाज में प्रसिद्ध है, वकील न्याय के साथ अपनी एकता के लिए भी जाने जाते हैं।वकीलों जैसी एकता पाने हेतु अन्य पेशे वकीलों को आदर्श की तरह प्रस्तुत करते हैं।बार एसोसिएशन से वकीलों में एकजुटता बनी हुई है।ऑल इंडिया बार एसोसिएशन पूरे देश में वकीलों के हितों की रक्षा के लिए कार्य कर रही है।
समाज में अनेक पेशे दुराचार में ग्रस्त हैं परंतु दुराचार का लांछन वकीलों पर मढ़ दिया जाता है।वकीलों ने हर युग में मानवता के हितार्थ कार्य किये हैं।स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज के इस युग में भी समतावादी सिद्धान्त और मानवतावादी विचारों के लिए वकील।प्रयासरत है।वकीलों को अपनी गरिमा और सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए अधिक परिश्रम करने चाहिए जिससे किसी तरह यह विलक्षण और पवित्र पेशा दूषित और कलंकित नहीं हो।
भारत की सभी न्याय व्यवस्था अधिवक्ता के काम पर टिकी है।सभी न्याय व्यवस्था का भार इन्हीं काले कोट के कंधों पर है।अगर अधिवक्ता न हो तो भारत की जनता की न्याय मिलना असम्भव है क्योंकि वकील हीं न्यायालय के अधिकारीहैं।इन सब बाजारवादी विचारों के पूर्व वकील आज भी मानवता विचारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत हैं।जहां कहीं मानवीय मूल्यों का अतिक्रमण होता है वहां अधिवक्ता की उपलब्धता प्रतीत हो जाती है।
डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद 1948 से 1950 तक गणतंत्र के संविधान का मसौदा तैयार करनेवाली संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किये।भारत के पहले राष्ट्रपति और एक महान क्रांतिकारी देशभक्त डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद अपने गुणों और कोमलता से गौरव प्राप्त करने में सक्षम हुए।इन्होने अपने साधारण जीवन को देश का सबसे श्रेष्ठ जीवन बना दिया पर इन्होंने अपना तर्ज नहीं बदला जो इनकी सबसे बड़ी विशेषता थी।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका पदार्पण वकील के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करते ही हो गया था।स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों से अधिक योगदान किसी और पेशे के नहीं रहा।स्वतंत्रता संग्राम में वकीलों ने जमकर लोहा लिया।महात्मा गांधी से लेकर डॉ0 बी आर अम्बेडकर तक लोग वकालत पेशे से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले रहे हैं।इन सब भारत की महान विभूतियों के प्रारंभिक पेशे वकालत रहे बाद में ये लोग राष्ट्रपति, मंत्री हुए।वकालत दुनिया में अत्यंत सम्मानीय और गरिमामय पेशा है।भारत में भी वकालत गरिमामय और सरकार के पेशे के तौर पर हर दौर में बना रहा है।
(लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता और स्तंभकार हैं)