जातिगत जनगणना समाज को बांटने की साजिश !

आलेख

-मनोज कुमार श्रीवास्तव
सभी वर्गों के लिए समान कानून,समान सुविधा और बिना भेदभाव का समुचित विकास की आवश्यकता है।जातिगत जनगणना से जनता में फूट डालकर ,जातिवाद फैलाकर केवल नफरत ही पैदा होगी इससे विकास की कल्पना नहीं कि जा सकती।जातिगत जनगणना से देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।यहां कल तक आरक्षण अभिशाप था और आज वही आरक्षण कुछ लोगों के लिए वरदान हो गया है। जातिगत जनगणना एक घृणित सामाजिक-राजनीतिक षडयंत्र है।जातिगत जनगणना एक देशद्रोही कदम है।जिससे देश और समाज को बांटकर सत्ता की राजनीति की जाती है।
जातिगत जनगणना कराने वालों का तर्क है कि ओबीसी कोटे के लिए आरक्षित 10% नौकरी में से ज्यादा यादवों के हिस्से में चली गई है जबकि दलितों को मिलने वाली सुविधाएं भी आमतौर पर पासवानों के खाते में चली गई है।इन सभी विसंगतियों को जातिगत जनगणना दूर करेगी।अर्थात समाज में जिसकी जितनी भागीदारी, सत्ता में उसकी उतनी भागीदारी होनी चाहिए।एक साजिश के तहत आजादी के बाद से सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से बहुजन समाज को पिछड़ा बनाये रखा गया।
“पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स” के नितिन कुमार जो 2012 में भारतीय समाज के जातिय समीकरण और पूंजी के बंटवारे पर एक शोध किया था जो दुनिया भर में धन के असमान वितरण और समाज पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का एक हिस्सा था।इस शोध के अनुसार भारत में शिखर के 10%अमीर लोग देश की लगभग 68% सम्पति अपने अधीन कर लिया है।इन अमीरों में कथित अगड़ी जाति के लोगों की संख्या अधिक थी जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या नाममात्र है।
जाति पर आधारित जनगणना जो बिहार सरकार करा रही है उसको चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने जा रही है।इस याचिका में कहा गया है कि जनगणना केन्द्र सरकार का अधिकार है, राज्य सरकार की नहीं।जातिगत जनगणना सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील विषय है।बिहार सरकार की इस कवायद पर अनेकों तरह के सवाल उठ रहे हैं।
बिहार सरकार को घेरते हुए बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की याद दिलाते हुए कह रहे हैं कि भारत को राष्ट्रों के समूह में गौरव का स्थान प्राप्त करना है तो सबसे पहले जातियों के बंधन से आजाद होना होगा।सरदार बल्लभभाई पटेल के वक्तव्य को याद दिलाते हैं,जिसमें कहा गया है था कि जातिगत जनगणना से देश का सामाजिक ताना- बाना बिगड़ जाएगा।वहीं कुछ लोगों का तर्क है कि जातिगत जनगणना से जातियों की संख्या मालूम हो जाने पर उनके लिए योजनाओं का निर्धारण करने आसान हो सकेगा।
तमाम तर्कों एवं विवादों से यह बात सामने निकल कर आ रही है कि बिहार में अभी जातिगत जनगणना की जरूरत हैं क्या है, शायद इसकी अभी उतनी जरूरत नहीं है।जातिगत जनगणना सिर्फ कुछ लोग अपनी धूमिल हो रही राजनीति को चमकाने के लिए एक साजिश रची जा रही है।जबकि सुप्रीम कोर्ट की याचिका में कहा गया है कि जनगणना राज्य सरकार का काम नही है बल्कि केंद्र सरकार का काम है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *