आनन्द मोहन की रिहाई का विरोध कर रही BJP के खिलाफ चली आंधी तो उड़ जाएगी कई लोकसभा की सीटें

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भाजपा नेताओ के साथ मीडिया भी नही कर रही सच का विश्लेषण, साल 2012 में बना कानून साल 2007 की सजा पर कैसे होगा लागू

आनन्द मोहन सिर्फ बिहार में ही BJP को अर्श से फर्श पर पहुंचाने में कामयाब नही होंगे बल्कि यूपी,झारखण्ड,राजस्थान,पश्चिम बंगाल ,मध्य प्रदेश,दिल्ली,उत्तराखण्ड,छतीशगढ़ जैसे कई राज्यों में आंधी तूफान खड़ी करके भाजपा को अपने आंधी तूफान में उड़ा सकते हैं।

सुरेन्द्र सागर
बिहार पीपुल्स पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और बिहार के शिवहर से दो दो बार सांसद रहे आनन्द मोहन की साढ़े पंद्रह साल से अधिक की सजा काट लेने के बाद राज्य सरकार द्वारा की गई रिहाई का विरोध कर रहे देश के प्रतिष्ठित न्यूज चैनलों और देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश से लेकर देश के बड़े नेताओं की विश्वसनीयता आज खतरे में पड़ती हुई दिखाई दे रही है।
यह विश्वसनीयता इसलिए खतरे में पड़ती जा रही है क्योंकि आनन्द मोहन की डीएम जी कृष्णय्या हत्याकांड में संलिप्त होने या नही होने की सच्चाई जानते हुए भी गला फाड़ फाड़ के भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी,प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी समेत देश के गृह मंत्री अमित शाह तक जिस तरीके से आनन्द मोहन को डीएम का हत्यारा बताने में जुटे हुए हैं उससे बिहार समेत देश भर के राजपूत समाज सहित अगड़ी जातियों और आनन्द मोहन के समर्थकों में जबरदस्त आक्रोश उमड़ पड़ा है।
डीएम जी कृष्णय्या की हत्या में भले ही निचली अदालत से लेकर ऊपरी अदालत तक आनन्द मोहन को दोषी करार देते हुए सजा सुनिश्चित की गई वह अलग बात है लेकिन इस हत्याकांड में आनन्द मोहन की सजा के पीछे प्रस्तुत किये गए साक्ष्य और गवाह बिल्कुल सच्चाई से अलग थे।पुलिस की गवाही कराई गई और साक्ष्य प्रस्तुत किये गए।पुलिस तो वही कहेगी जो उसके अधिकारी उसे समझा कर भेजेंगे।प्रत्यक्षदर्शी गैर सरकारी लोगो की गवाही नही होने का साफ मतलब है कि सरकार प्रायोजित साक्ष्य के आधार पर आनन्द मोहन को सजा कराई गई और आनन्द मोहन ने न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुए साढ़े पंद्रह साल जेल में बिता दिए।
अब जबकि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दिए गए सभी राज्यों में कानून की एकरूपता के निर्देश के आलोक में अपने राज्य में अलग तरह के बनाये कानून को बदला और आनन्द मोहन की जेल से रिहाई की तो देश भर में मीडिया ट्रायल शुरू कराया गया।इस मीडिया ट्रायल के पीछे खड़े लोगों के चेहरे बेनकाब हो चुके हैं क्योंकि पर्दे के पीछे से जी कृष्णय्या की पत्नी और बेटी को आगे लाकर आनन्द मोहन की रिहाई का विरोध करवाने,मीडिया ट्रायल करवाने वाले लोग जब अपने मिशन को कमजोर होते देखा तो अब स्वयं मोर्चा संभाल लिया है।सुशील कुमार मोदी से लेकर पार्टी में पीएम मोदी के बाद दो नम्बर के नेता अमित शाह ने भी आनन्द मोहन की रिहाई विरोध कर दिया है।
पूर्व सांसद आनन्द मोहन की रिहाई का विरोध कर देश भर की जनता को गुमराह करने वाले देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के नेताओं और प्रतिष्ठित न्यूज चैनल के पत्रकारों,ऐंकरो और विश्लेषकों को इस बात पर चिंतन करने की आवश्यकता है कि जिस कानून को बदल कर आनन्द मोहन की रिहाई का विरोध किया जा रहा है वह कानून आनन्द मोहन पर लागू ही नही होता है।
बिहार सरकार ने लोकसेवक की हत्या में परिहार का लाभ नही देने का कानून साल 2012 में बनाया किन्तु आनन्द मोहन की सजा साल 2007 में हुई। साल 2007 में हुई सजा पर साल 2012 का कानून कैसे लागू किया जा सकता है।सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश चंद्रचूड़ सिंह और अन्य की बेंच ने अपने एक अहम फैसले में इस बात का आदेश भी दिया है कि सजायाफ्ता कैदी को छोड़ते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि सजा के वक्त नीति क्या थी?
जब साल 2007 में आनन्द मोहन को सजा हुई तो आज साल 2012 के कानून को उनपर थोपने के लिए हो हंगामा क्यों मचाया जा रहा है।यह तो यही साबित करता है कि देश का नेतृत्व करने की सोंच रखने वाले नेताओ और प्रतिष्ठित न्यूज चैनल बिना जानकारी इकट्ठा किये,बिना सोंचे और समझे अंधेरे में तीर चलाकर देश की जनता को गुमराह करने में जुटे हैं।
आनन्द मोहन की रिहाई का विरोध करने वालों को डीएम हत्याकांड की एफआईआर और ट्रायल के दौरान पक्ष विपक्ष के रखे गए पक्ष,साक्ष्य और गवाही का एक बार जरूर अवलोकन करना चाहिए।
पांच दिसंबर 1994 को डीएम जी कृष्णय्या की भीड़ द्वारा की गई हत्या के मात्र साढ़े बारह मिनट बाद आनन्द मोहन की गिरफ्तारी की गई थी।डीएम की हत्या मुजफ्फरपुर के निकट हुई थी और आनन्द मोहन की गिरफ्तारी हाजीपुर के निकट हुई थी।
यह कैसे संभव है कि उस समय की टूटी फूटी सड़को से डीएम की हत्या करके कोई साढ़े बारह मिनट में करीब 60 किलोमीटर दूर भाग सकता है।
आनन्द मोहन की गिरफ्तारी वायरलेस संदेश पर हुई।जहां डीएम की हत्या हुई और जहां आनन्द मोहन की गिरफ्तारी हुई उस बीच पांच-पांच थाने थे तब वायरलेस संदेश पर पांच-पांच थानों की पुलिस से बच के आनन्द मोहन साढ़े बारह मिनट में 60 किलोमीटर आगे कैसे निकल गए ?
मुजफ्फरपुर के खाबड़ा गांव के निकट जहां डीएम की हत्या हुई वहां एक दिन पूर्व मारे गए छोटन शुक्ला की शव यात्रा में हजारों की आक्रोशित भीड़ आगे बढ़ रही थी।विधि व्यवस्था को लेकर कई दंडाधिकारी और भारी संख्या में पुलिस के अधिकारी और जवान शव यात्रा में साथ चल रहे थे फिर डीएम की हत्या कैसे हो गई।डीएम की गाड़ी पर भीड़ द्वारा हमला हुआ तो ड्यूटी पर तैनात दंडाधिकारी और पुलिस अधिकारी क्या कर रहे थे।डीएम की हत्या कर दी गई और पुलिस द्वारा फायरिंग की बात तो छोड़िए एक लाठी तक नही चलाई गई।
यह तो यही साबित करता है कि पुलिस और प्रशासन ने आक्रोशित भीड़ को डीएम की हत्या के लिए आजाद छोड़ दिया।
अगर आनन्द मोहन डीएम की हत्या के लिए आदेश दे रहे थे तो पुलिस प्रशासन ने उनकी ऑन स्पॉट गिरफ्तारी क्यों नही की।
एक पुलिस अधिकारी ने ट्रायल के दौरान अपनी गवाही में कहा कि छोटन शुक्ला की शव यात्रा में आगे आगे सैकड़ो गाड़ियों का काफिला चल रहा था,सैकड़ो गाड़ियों के काफिले के पीछे पांच हजार लोगों की आक्रोशित भीड़ बढ़ रही थी।सुरक्षा को लेकर सबसे पीछे पीछे वे चल रहे थे और उन्होंने देखा और सुना कि आनन्द मोहन ने कहा कि भुटकुन देखते क्या हो डीएम को गोली मार दो और छोटन शुक्ला के भाई भुटकुन शुक्ला ने डीएम को गोली मार दी।
अब इससे बड़ा झूठ क्या हो सकता है कि जिसके आगे पांच हजार की आक्रोशित भीड़ चल रही हो, पांच हजार लोगों के आक्रोशित भीड़ के आगे भी और सैकड़ो गाड़ियों का काफिला चल रहा हो वह पुलिस अधिकारी इस काफिले और भीड़ में सबसे पीछे चल रहा हो और वह देख लेता है,सुन भी लेता है कि भीड़ के सबसे आगे हाजीपुर की तरफ से मुजफ्फरपुर के रास्ते गोपालगंज जा रहे डीएम की गाड़ी में सवार जी कृष्णय्या को आनन्द मोहन मारने का आदेश दे रहे हैं।
कोर्ट के सामने गलत साक्ष्य प्रस्तुत करने और झूठी गवाही देने का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है।
कोर्ट में ट्रायल के दौरान डीएम की हत्या के समय उनके साथ मौजूद सबसे अहम गवाह डीएम के ड्राइवर और बॉडीगार्ड ने अपनी गवाही में कहा कि डीएम की हत्या के समय आनन्द मोहन नही थे।फिर भी आनन्द मोहन को सजा हुई और उन्होंने भारतीय न्याय व्यवस्था का सम्मान करते हुए साढ़े पंद्रह साल से अधिक की सजा काट ली।अब जबकि उन्हें राज्य सरकार ने कानून के तहत रिहाई कर दी है तो हो हंगामे शुरू करा दिए गए हैं।
आनन्द मोहन के महागठबंधन में रहने का डर ही भाजपा को सत्ता रहा है।आनन्द मोहन बिहार की दो दर्जन से अधिक लोकसभा सीटों पर भाजपा को धूल चटा सकते हैं और उनके बिहार दौरे के बाद भाजपा का राजनैतिक परिदृश्य बदल सकता है।इसी बात को लेकर भाजपा बौखला गई है और आनन्द मोहन पर साजिशों के वे सारे हथियार चलाये जा रहे हैं जिससे आनन्द मोहन को बिहार में जनता के बीच जाने से रोका जा सके।लेकिन ऐसा होगा नही क्योंकि बिहार में आनन्द मोहन के पक्ष में जबरदस्त करंट चल रहा है और इस करंट को भाजपा जितना रोकने की कोशिश करेगी करंट उतना ही तेज झटके के साथ अपना असर दिखायेगा।
आनन्द मोहन की जेल से रिहाई को लेकर भाजपा का बिहार और केंद्रीय नेतृत्व इसलिए भी बेचैन हो उठा है कि भाजपा के नेता इस बात को समझ रहे हैं कि आनन्द मोहन सिर्फ बिहार में ही भाजपा को अर्श से फर्श पर पहुंचाने में कामयाब नही होंगे बल्कि यूपी,झारखण्ड,राजस्थान,पश्चिम बंगाल ,मध्य प्रदेश,दिल्ली,उत्तराखण्ड,छतीशगढ़ जैसे कई राज्यों में आंधी तूफान खड़ी करके भाजपा को अपने आंधी तूफान में उड़ा सकते हैं।
बस इसी बात को लेकर भाजपा आनन्द मोहन को बिहार और देश की जनता के बीच जाने से रोकने के लिए साजिशों की बुनियाद खड़ी करने में जुट गई है।इधर आनन्द मोहन की रिहाई का विरोध कर रही भाजपा जितनी आक्रामक होती जा रही है, राजपूत समाज,सवर्ण और आनन्द मोहन के समर्थक उतनी ही तेजी से भाजपा से दूर होते जा रहा हैं।

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