- मनोज कुमार श्रीवास्तव
नौकरशाह अपनी प्रवृत्ति से बाज आये और मंत्री,नेता अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठे तभी लोक सेवाओं में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकती है।अन्यथा कानून कितना भी आकर्षक,प्रभावशाली और सख्त बन जाये,यदि उसके अमल में ईमानदारी और तार्किकता न हो तो वो बेअसर ही रहेगा।एक बार बन जाने के बाद कानून को आगे चलकर अपनी-अपनी सुविधा से तोड़ने-मरोड़ने के कुअभ्यासों से बचने की जरूरत है।
सूचना का अधिकार कानून के साथ हो रहे खिलवाड़ से सभी वाकिफ हैं।जवाबदेही वाले कानून की यह गति न हो,यह सुनिश्चित करने के लिए कार्यकर्ताओं को लगातार सक्रिय रहना होगा और सरकरों को ईमानदार। थोड़ी सी भी ढिलाई से इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में बिखराव आ सकता है।बुनियादी शर्त यही है कि मंत्री और अधिकारी सेवाओं में ढिलाई की सेवाओं से डरे नहीं बल्कि ईमानदारी से अपनी गलतियां स्वीकारें और समय रहते दूर करें।
सामाजिक जवाबदेही कानून से अन्य जनसुलभ कानूनों का रास्ता साफ होगा।सूचना का अधिकार कानून,सामाजिक जवाबदेही कानून,भ्रष्टाचार निवारण कानून ये सब लोकपाल की शाखाओं की तरह हैं है।भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाकर ही बीजेपी 2014 में सत्ता में आयी थी।आज विडम्बना देखिए कि नोटबन्दी के बाद कि आर्थिक दुष्वारियों,बैंकों की विफलताओं,विवाद,बैंकों के भगोड़े,जांच एजेंसियों की आंतरिक उठापटक से लेकर रफ़ायल जैसे सौदों तक सरकार का जवाब देना भारी पड़ रहा है।
यदि लोकपालों और लोकायुक्तों के साथ-साथ सामाजिक जवाबदेही कानून आ जाये और सुनवाई के अधिकार मिल जाता है तो सरकार सही मायनों में जनकेन्द्रित और जनसुलभ कहलाएगी।अन्यथा लोकतंत्र,पांच साल की चुनावी रस्म अदायगी के बाद सत्ता की छीनाझपटी,बेरुखी और भ्रष्टाचार की अड्डा बनकर रह जायेगी।देश के आरटीआई आंदोलन के प्रणेताओं में अरुणा राय,मानवाधिकार कार्यकर्ता निखिल डे और मजदूर किसान संगठन के साथ बैठक कर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि उनकी सरकार सुनवाई के अधिकार देगी और ऐसा करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य होगा।सूचना के अधिकार का सूत्रपात भी राजस्थान में हुआ था।भैरो सिंह शेखावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने तब यह काम किया था।
मुख्यमंत्री गहलोत का कहना है कि राज्य में गारंटीड डिलीवरी ऑफ पब्लिक सर्विसेज एक्ट पहले से लागू है।नए कानून को मिलाकर उसे ही मजबूत और व्यापक प्रभाव वाले कानून की नींव रखी जायेगी और इस प्रस्तावित बिल का नाम होगा,”राजस्थान भागीदारी,जवाबदेही और सामाजिक अंकेक्षण बिल”।अरुणा राय और उनकी टीम इस बिल से सम्बंधित एक ड्राफ्ट तैयार कर राज्य सरकार को दे दिया है।इसके तहत एक लोकस शिकायत निवारण आयोग और उसके साथ शिकायत निवारण अधिकारी या प्राधिकरण भी बनाया जाएगा।शिकायतकर्ताओं की समस्याओं के निराकरण के अलावा ये प्राधिकरण अपवादों को छोड़कर 25 हजार तक का मुआवजा भी दे सकता है।
राजस्थान सरकार जवाबदेही कानून लाने की घोषणा की थी जिसमें सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जनभागीदारी का मुद्दा फिर से गरमा गया है।इस कानून के लागू हो जाने के बाद देश के अन्य राज्यों पर भी इसका दबाव बढ़ जाएगा।इस कानून से शिकायतकर्ताओं को यह पता होगा कि किस सरकारी विभाग का कौन सा अधिकारी उसका काम करने के लिए जिम्मेदार है और काम न होने की सूरत में उस अधिकारी की जवाबदेही बनती है।अभी तक यही होता है कि कम समय पर न होने पर पूरा विभाग एक-दूसरे को बचाने में लग जाता है और किसी एक का जवाबदेही तय नहीं हो पाती है और न कोई दण्डित हो पाता ।अब कसूरवार बच नहीं पाएंगे।
सरकार सूचना के अधिकार से डरती है क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनकी योजनाओं का सच सामने आ जायेगा,उनकी गलतियां आ जाएंगी तो बदनामी होगी।सूचना के अधिकार से लेकर “गारंटीड डिलीवरी ऑफ पब्लिक सर्विस एक्ट” लागू होने के बावजूद लोगों को न सही सूचना मिल पा रही है और न उनके काम समय पर हो पा रहे हैं।लोगों को दलालों की मदद लेनी लड़ रही है जब यह हाल राजस्थान का है जहां ये दोनों कानून लागू हैं तो जाहिर है कि पूरे देश में हालात और बुरे होंगे।