बिहार की शिक्षा व्यवस्था चौपट होने से दो पीढ़ी पीछे

आलेख

-मनोज कुमार श्रीवास्तव
पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने नीतीश कुमार पर शिक्षा को लेकर कड़ा प्रहार करते हुए कहा है कि बिहार की शिक्षा इतनी बर्बाद हो चुकी है कि अब राज्य को योग्य शिक्षक नहीं मिल रहे हैं।यह सम्भवतः पहला राज्य है जहां शिक्षकों का पुराना कैडर समाप्त कर दिया गया।बिहार में 17 साल से नीतीश कुमार हैं।शिक्षा विभाग 2021 तक जदयू कोटे के मंत्रियों के पास ही रह और बिहार सामुहिक नकल,पेपर लीक से लेकर शिक्षकों पर अत्याचार की खबरों से बदनाम होता रहा है।
राज्य में सिपाही-दरोगा भर्ती से लेकर सेना और रेलवे की नौकरी के लिए लाखों लोग आवेदन करते हैं लेकिन यहां के स्कूलों में कोई शिक्षक नहीं बनना चाहता।स्कूली शिक्षा को चौपट कर नीतीश कुमार ने राज्य के कई पीढ़ियों को जॉब मार्केट से बाहर कर दिया।बिहार की शिक्षा व्यवस्था दिन प्रतिदिन चरमराती जा रही है।हालात ऐसी है कि तीन साल की डिग्री ग्रेज्युएशन वाली डिग्री भी छात्र को कई सालों में मुश्किल से मिल पा रही है।डिग्री तो छोड़िए यहां परीक्षाओं के बाद पता चलता है कि पेपर पहले से ही लीक हो गए।इससे भी दुर्भाग्य है कि मामले में मुख्यमंत्री से जब सवाल किया जाता है तो वे बिल्कुल ही अंजान बन जाते हैं।
जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने कहा है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है।जहां बिल्डिंग है वहां शिक्षक नहीं,जहां शिक्षक हैं वहां बिल्डिंग नहीं है और जहां दोनों है वहां शिक्षा नहीं है।नीतीश कुमार जैसे पढ़े-लिखे व्यक्ति 17 साल से बिहार में शासन कर रहे हैं, इनका शासन काल काले अध्याय के समान है।यहां की दो पीढियां अब नहीं सुधरेगी, वे पढ़े लिखे लोगों की बराबरी नहीं कर सकते।
हाल ऐसी है कि कोई भी सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं और न पढ़ना चाहते हैं।क्योंकि सरकारी स्कूलों से अच्छी तरह से वाकिफ हैं।निजी स्कूलों के तो क्या कहने हैं ।इन्हें तो बस पैसे चूसने के अलावे और कुछ नहीं आता।फीस से लेकर किताब कॉपी तक हर जगह पैसा ऐंठते हैं।जिसका सीधा असर गरीब मां-बाप पर पड़ता है और ऐसे में बच्चों की पढ़ाई बीच में हीं छूट जाती है।
आज बिहार में शिक्षा के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में कुछ समस्याएं हैं।इनमें नामांकन का कम दर,शिक्षा तक असमान पहुंच और बुनियादी ढांचे की खराब गुणवत्ता और प्रासंगिकता की कमी है।बिहार में शिक्षा के लिए धन की कमी है।एक महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के बावजूद सरकार राज्य में शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए शायद ही पर्याप्त बजट आवंटित करती है।निवेश की इस कमी के कारण कई स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी हो गई है।
वर्तमान समय की बात करें तो बिहार में शिक्षा जगत कई सारे समस्याओं से घिरी है।यहां मांग और आपूर्ति यानि Demand and Supply का तालमेल कुछ अच्छा नहीं है।तेजी से बढ़ती जनसंख्या और इतने सारे सुविधाओं के बावजूद उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए छात्रों का दूसरे राज्यों में जाना ये सब शिक्षा के गम्भीर समस्या में से है।पाठ्यक्रमों में व्यवहारिकता की कमी ,स्कूल स्तर के आंकड़ों की अविश्वसनीयता।आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS)के लिए किए गए प्रावधानों को लागू न किया जाना।शिक्षा के अधिकार अधिनियम(RTE) को जमीनी स्तर पर लागू न किया जाना इत्यादि।
नीतीश सरकार के सुशासन पर सवाल उठाते हुए कुछ छात्रों ने कहा है कि “हमलोग मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं।बिहार में शिक्षा व्यवस्था कहां जा रही है किसी को पता नहीं है।बिहार में शराब मुद्दा है लेकिन शिक्षा नहीं।बेटियों के विकास को लेकर बिहार सरकार न जाने क्या-क्या बयानबाजी करती है लेकिन जब जमीनी हकीकत देखा जाए तो यहां की लड़कियां न सिर्फ समाज और रिश्तेदारों से अपने हक के लिए लड़ रही है बल्कि सरकार से भी चीख-चीख कर मांग कर रही है।
यहां तक कि एक छात्रा ने अपने दर्द को बयां करते हुए कहा कि सरकार गन्दी राजनीति करने बन्द करें।जब आप डिग्री नहीं दे रहे हैं तो नौकरी कैसे देंगे।अपनी डिग्री के लिए हम घूम रहे हैं।हमें राजभवन और सरकार के बीच पिसा जा रहा है।ये जातीय जनगणना कर लिए और कह रहे हैं कि पिछड़े वर्गों के लिए स्कीम बनाना है।असल में इन्हें कोई स्कीम नहीं बनाना है इन्हें बस अपना वोट बैंक भरना है वे कुर्सी बचाओ अभियान चला रहे हैं।सरकार को तो सिर्फ अपने वोट से मतलब है।
हाल हीं में शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में होने वाले अवकाश तालिका में कटौती करते हुए उसे आधा कर दिया गया था विरोध बढ़ने पर सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया।इसको लेकर के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक की कड़ी आलोचना भी हुई थी।जिस दिन यहां के अधिकारी, पदाधिकारी एवं सरकारी शिक्षक सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने लगेंगे निश्चित रूप से शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विकास होगा क्यों की उन्हें समझ में आएगा और दर्द भी महसूस होगा।नहीं तो बस सरकारी स्कूलों को केवल गरीबों के लिए मानते हैं।
नीतीश कुमार ने 2006 में शुरू की गई शिक्षक भर्ती प्रणाली को खत्म कर दिया है।बिहार STET पास करके नियुक्ति पत्र की राह देखने वालों को अब BPSC की परीक्षा देनी होगी।

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