नरेंद्र पाठक
निदेशक
जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान
पटना
पटना: जातीय जनगणना और जातीय सर्वेक्षण के आधार पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा सभी जातियों के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक अवस्था को देखते हुए आरक्षण की सीमा को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार से जो मांग की है, वह अत्यंत समयानुकूल है और बिहार के सभी वर्गों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आधार की वृद्धि में बल प्रदान करेगा।
हमारी मान्यता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दूरदृष्टि और संकल्पों के आगे बिहार का अंधेरा दूर हुआ है और भविष्य की राह प्रशस्त हुई है। इस दृष्टि से भी जातीय सर्वेक्षण के आधार पर विभिन्न जातियों के आर्थिक संवृद्धि के लिए सत्ता में बराबरी के आधार पर भागीदारी के लिए आरक्षण की सीमा पिछड़ी जातियों और अति पिछड़ी जातियों के लिए 65 फीसदी बढ़ाये जाने की मांग के प्रति किसी भी बिहारी नागरिक का समर्थन होगा। जिस प्रकार 15 फीसदी अगड़ी जातियों के लिए, 10 फीसदी का आरक्षण बिहार सरकार ने मान्य किया है उनके आर्थिक संवर्द्धन के लिए ठीक उसी तरह से पिछड़ी, अति पिछड़ी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए भी उसी आलोक में बढ़ायी जानी चाहिए, जो कुल आरक्षण का दायरा 75 फीसदी होगी।
साथ ही, मुख्यमंत्री जी के द्वारा सभी वर्गों के 94 लाख निर्धन परिवारों को 2-2 लाख रुपये देने और घरविहीन लोगों को 60 हजार के बदले 1 लाख रुपया जमीन खरीदने की राशि निर्धारित की है। यह नीतीश कुमार के आत्मबल का प्रतीक है, जो उनके दूरदृष्टि का परिचायक है।
हमें भरोसा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में बिहार नई ऊंचाई को छूएगा। इसलिए हम उनकी एक-एक बात का, जो आज बिहार विधान सभा में उन्होंने व्यक्त की, उसका स्वागत एवं समर्थन करते हैं।
नीतीश कुमार जी 1989 में नौवीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए, केंद्रीय मंत्रिमंडल में कृषि राज्य मंत्री बने। उस समय का एक वाकया ज्ञानी जैल सिंह जी ने मुझे बताया था तब कर्पूरी ठाकुर के बहाने पिछड़ी जातियों की राजनीतिक गोलबंदी पर शोध कर रहा था, उसी क्रम में उनसे मिलने गया था तब वे राष्ट्रपति पद से अवकाश प्राप्त कर चुके थे। उन्होंने मुझे बताया था कि बिहार की सामाजिक और राजनीतिक संरचना में वैचारिकी की बहुत गहरी पैठ है और इसकी एक झलक तुम्हारे राज्य से आने वाले एक सांसद नीतीश कुमार में मैंने देखी है। उन्होंने कहा कि सारी औपचारिकताओं को छोड़ते हुए उनसे मिलने की इच्छा मैं प्रकट किया और वे स्वयं मुझसे मिलने आ गए। ज्ञानी जी ने बताया कि मेरे राजनीतिक जीवन में पहली बार किसी सांसद ने जातीय जनगणना की बात प्रधानमंत्री के समक्ष उठाया है। तब वी पी सिंह प्रधानमंत्री थे। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार से बात करते हुए मुझे यह ज्ञात हुआ कि वे कर्पूरी जी के परम्परा के राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। यही कारण है कि उनका मानस इतना वैचारिक रूप से इतना उर्वरा है। आज बिहार विधान सभा में जब मुख्यमंत्रीजी बोल रहे थे तो मुझे ज्ञानी जी की बात का स्मरण हो आया। वे जिन बातों का उल्लेख कर रहे थे और सदन में प्रतिपक्ष से भी जिस तरह से अपील कर रहे थे उन ऐतिहासिक क्षणों में सामाजिक विमर्श की उनके कौशल और प्रतिबद्धता का प्रस्फुटन हो रहा था। राजनीति के व्यापक फलक पर समन्वय और वैचैरिकी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता साकार हो रही थी और यह स्पष्ट हो रहा था कि वे अपनी सोच और संकल्प में तालमेल बिठाकर अपने काम से लोकतंत्र को अधिक जनतांत्रिक बनाकर सामाजिक न्याय की प्रासंगिकता को सिद्ध करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हर मज़हब और जाति समूहों के साथ साथ शासन प्रणाली सहित पूरी राजनितिक और सामाजिक व्यवस्था में अवसर की समानता की परिस्थितियों को स्थापित कर देना चाहते हैं।
सभी समुदायों को व्यवस्था में बराबरी का हक़ देकर आरक्षण फार्मूले को 75 फीसदी तक ले जाने की संकल्पना में भी समन्वय और विनम्रता प्रस्फुटित हो रही थी। राजनीति के इसी चरित्र को डॉ राममनोहर लोहिया और जननायक कर्पूरी ठाकुर स्थापित करना चाहते थे।