मनोज कुमार श्रीवास्तव
आज देश के सभी नागरिकों को उचित, निष्पक्ष और सुलभ न्याय प्रक्रिया तक पहुंचाने को सुनिश्चित करने के लिए “राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस “प्रतिवर्ष 9 नवम्बर को मनाया जाता है।इसको मनाने का मुख्य उद्देश्य समाज के वंचित वर्ग के लोगों को नि:शुल्क न्याय प्राप्ति के लिए सहायता एवं समर्थन जुटाना होता है।राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण “सबको सुलभ व सस्ता न्याय “की अवधारणा पर कार्य कर रहा है।जो न्यायालय में नहीं आता है उसकी मदद करनी है,उसको भी न्याय दिलाना है और इस कार्य में हम सभी को प्राधिकरण को सहयोग करना चाहिए।न्याय किसी को तभी मिल सकता है जब लोगों को यह पता होगा कि उसके अधिकारों का हनन हो रहा है।
कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 11 अक्टूबर 1987 को लागू किया गया था जबकि अधिनियम 9 नवम्बर 1995 को प्रभावी हुआ था।इस दिन की शुरुआत भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1995 में समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को सहायता और सहायता प्रदान करने के लिए की गई थी।यह एक कमजोर और गरीब लोगों के समूह को सहायता देने के लिए एक जनादेश के साथ स्थापित किया गया था।जो महिलाओं, विकलांग व्यक्तियों, बच्चों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मानव तस्करी, पीड़ितों के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं के शिकार भी हो सकते हैं।
नालसा द्वारा कई प्रकार की कानूनी सेवाओं को नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है जिससे समाज के हासिए पर रह रहे लोगों को दीवानी, फौजदारी,राजस्व या अन्य मामलों में मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध हो सके या वे अपने मामलों की सुनवाई के लिए वकील की सेवाएं ले सके।नालसा द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाली सेवाएं निम्नवत है-वकील द्वारा कानूनी कार्यवाही में सहयोग, विवादों की कार्यवाही,अपील का ज्ञापन, कानूनी कार्यवाही में दस्तावेजों की छपाई और अनुवाद, वैधानिक दस्तावेज तैयार करना, किसी भी अदालत या प्राधिकरण या ट्रिब्यूनल के समक्ष किसी भी मामले या अन्य कानूनी कार्यवाही के संचालन में अपनी द्वारा उपलब्ध कराई गई सेवा को उपलब्ध करवाना,किसी कानूनी मामले पर सलाह देना।
राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI) रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति वकील का अनुपात दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बेहतर है।यहां लगभग 1.8 मिलियन वकील उपलब्ध हैं।इसके अनुसार भारत में लगभग 736 लोगों पर एक वकील उपलब्ध है।देश के वकीलों के पैनल में 61,593 पैनल ऐसे हैं जो सिर्फ कानूनी अनुवाद में सहायता करते हैं एवं इनका अनुपात 18,609 लोग पर एक वकील है।अर्थात प्रति एक लाख आबादी पर 5 कानूनी सहायता उपलब्ध कराने वाले वकील मौजूद हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, अनुच्छेद 38 (1)के अनुसार राज्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सहित सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा देगा,39(a) के अनुसार राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने का प्रयास करे कि एक ऐसी न्याय प्रणाली का कार्यन्वयन ही जिससे सबको समान एवं उचित न्याय मिल सके इसके साथ ही विशेष प्रयोजन करे जिससे सभी नागरिकों को न्याय प्राप्त करने का अवसर उपलब्ध हो।
अमेरिका के अटॉर्नी जनरल रॉबर्ट कैनेडी ने अपने भाषण में उल्लेख किया था कि “गरीब व्यक्ति कानून और न्याय को एक दुश्मन की तरह दिखता है क्योंकि यह उनसे हमेशा कुछ न कुछ लेकर हीं जातेहैं। ” सामान्यतः गरीब लोगों में यह भय व्यापत होता है कि कोर्ट कचहरी से दूर रहना चाहिए क्योंकि खर्चीली एवं असाध्य प्रक्रिया उनको और गरीब बना देती है।लोगों में नि:शुल्क विधिक सेवाओं को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहाँ सेवाएं पर्याप्त नहीं होती है एवं गुणवत्ता का अभाव होता है।नि:शुल्क विधिक सेवा का लाभ पुलिस जांच के दौरान उपलब्ध नहीं होता जहां पर सबसे अधिक कानूनी सहायता की जरूरत होती है।
इस सेवा में अनुभवी वकील या सीनियर लॉयर नहीं जुड़ते जिसके कारण प्रायः ऐसे मामले उन वकीलों को सौंप दिये जाते हैं जिनके पास न्यायिक मामलों का ज्यादा अनुभव नहीं होता।कि बार तोनि:शुल्क विधिक सेवाओं से जुड़े वकील अपने मुवक्किल से पैसों की मांग करते हैं जिसके भ्रष्टाचार समेत योजनाओं के कार्यन्वयन पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।इससे से जुड़े अधिकतर वकील अपने पक्ष का समुचित तरीके से प्रतिनिधित्व नहीं करते जिससे सार्वजनिक धन के दुरुपयोग सहित इस योजना की सफलता के प्रयास धूमिल हो जाते हैं।मौद्रिक दृष्टिकोण से वकील हमेशा नि:शुल्क विधिक सेवाओं से जुड़ने में रुचि नहीं दिखाते क्योंकि इसके द्वारा प्राप्त फीस निनी सेवाओं की तुलना में कम होता है।
भारत का मुख्य न्यायाधीश नालसा के मुख्य संरक्षक एवं सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीश कार्यकारी अध्यक्ष होते हैं।लोक अदालत द्वारा किये गए निर्णय को एक नगर न्यायालय का निर्णय मन जाता है और यह सभी पक्षों के लिए अंतिम और बाध्यकारी होता है।इसके निर्णय के खिलाफ किसी भी न्यायालय के समक्ष कोई अपील नहीं होती।
सभी तबकों तक न्याय पहुंचाने के लिए प्रचलित व्यवस्था में कुछ परिवर्तन लाने होंगे जैसे-प्रत्येक विधि कालेज,विधि विश्वविद्यालय को संसद आदर्श ग्राम योजना की तर्ज पर कुछ चयनित क्षेत्रों को गोद लेना चाहिए एवं विधि सेवाये उपलब्ध कराने का प्रयास करना होगा,विधिक सेवा से जुड़े एनजीओ को प्रोत्साहन करना होगा,निशुल्क सेवा उपलब्ध कराने वाले वकीलों का एक अलग कैडर होना चाहिए जिन्हें प्रशिक्षण प्रोत्साहन के साथ उचित सैलरी मिले, मदयस्थता,विधिक परामर्श केंद्र, ग्राम पंचायत को बढ़ावा देना होगा,लोगों की जागरूकता को बढ़ाना होगा,विधिक सेवा उपलब्ध कराने वाली सभी निजी एजेंसियों को नि:शुल्क विधिक सेवाओं के मामलों से जोड़ना होगा।