रविरंजन आनंद सिंह
लोकलोकतंत्र के मंदिर में बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री जी का सेक्स एजुकेशन वात्सायन के कामसूत्र से आगे निकला। मौका था जब नीतीश जी बिहार विधानसभा में जनसंख्या नियंत्रण के उपाय बता रहे थे। उपाय भी बहुत ही सरल भाषा में बता रहे थे। जिसका लाभ समाज के अंतिम पायदान तक पहुंच सके। माननीय ने घुसाने- निकालने वाली एक नई थ्योरी का ईजाद किया है जिसकी समझ एलिट क्लास से लेकर लेबर क्लास तक हो… क्योंकि सेक्स एजुकेशन और वात्सायन का कामसूत्र थोड़ा भारी-भरकम शब्द हैं। जिसे आज भी ग्रामीण परिवेश के लोग जल्दी नहीं पकड़ पाएंगे कि यह शब्द किस ग्रह से आया हैं। मैं तो खुद स्नातक में कामसूत्र शब्द सुना था, वहीं पीजी में सेक्स एजुकेशन जैसा भारी- भरकम शब्द पहली बार माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि में पढ़ाई के दौरान सुना था। खैर जो भी हो…… माननीय पूरी सहजता के साथ परम आनंद में घुसाने-निकालने की थ्योरी पर व्याख्यान देते हुए कह रहे थे कि पहले अमृतवा …..उसी में रह जाता था, तो इसलिए जनसंख्या बढ़ रहा था। अब लड़कवा और लडकियां दोनों जागरूक हुए है । अब घुसा के निकाल कर अमृतवा को बाहर फेक दो अपने -आप जनसंख्या नियंत्रण में हो जाएगा । जैसे किसी साधक को साधना के दौरान जब ईश्वर से साक्षात्कार होता हैं तो उसे परम आंनद की प्राप्ति होती है। उसी तरह माननीय….. जब अपने कंठ से घुसाने-निकालने की थ्योरी की व्याख्या आम जनमानस के लिए मर्यादा की सीमा को लांघकर कर रहे थे , तो उन्हें वैसा अनुभूति हो रहा था कि चरम सुख के अंतिम सीमा पर है, लेकिन विपक्षियों ने चरम सुख की प्राप्ति से पहले उन्हें स्खलित करवा दिया। वहीं सदन में सत्तारूढ़ दल की महिला सदस्या भी पूरी तरह से मुख्यमंत्री जी की जनसंख्या नियंत्रण वाली विश्लेषण सुन कर अपने सर को शर्म से झुका लिया था। खैर ये विरोध भी कैसे कर सकती थी क्योंकि बिहार व सत्तासीन पार्टी के राजा का व्याख्यान जो सेक्स एजुकेशन पर बहुत ही आनंदित मुद्रा में चल रहा था। हालांकि विपक्षी दल की एक महिला सदस्या ने तो माननीय के चरम सुख वाले व्याख्यान के विरोध में आंसू तक निकाल दिए। भले ही आंसू क्यों न ग्लिसरीन लगा कर निकाला गया हो….. खैर माननीय…. अपने इस जनसंख्या नियंत्रण वाली थ्योरी पर दिए गए व्याख्यान के लिए माफी मांगे या शर्मिदा हो…… अपनी चार दशक की एक स्वच्छ चरित्र वाली राजनीतिक यात्रा पर विराम देकर शक की गुंजाईश पैदा कर दी। खैर जो भी हो राजा का भी मन होता है कब तक जनता की सेवा में अपनी इच्छाओं को दमन करते रहें, कभी न कभी तो भावनाएं उद्वेलित होनी ही थी…. भले ही बहाना जनसंख्या नियंत्रण वाली थ्योरी हो…. लेकिन कंठ से जो शब्दों के बौछार निकल रहे थे वह चरम सुख की प्राप्ति की ओर ले जा रहा था। भले दुनिया जो कहें इस बुढ़ापे में…. जनसंख्या नियंत्रण वाली थ्योरी ने जवानी के दिन का एहसास तो माननीय को करा ही दिया।