एक साल की यात्रा में मात्र एक किताब पढ़ी…आठ माह बाद अखबार लेना किया शुरू…..

आलेख

रविरंजन आनंद

भागलपुर जो बिहार का एक प्राचीन शहर है, जिसे पुराणों और महाभारत में इसे अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है। यह बिहार के मैदानी क्षेत्र का आखिरी सिरा और झारंखड और बिहार के कैमूर पहाड़ी का मिलन स्थल है। यह शहर सिल्क के व्यापार के लिए विश्वविख्यात रहा है, तसर सिल्क का उत्पादन अभी भी यहां के कई परिवारों के रोजी-रोटी का श्रोत है। वर्तमान समय में इस शहर की पहचान हिन्दु-मुसलमान दंगों की वजह से हो गयी है, हालांकि धीरे-धीरे इसकी पहचान फाइलों और अखबारी कागजों में स्मार्ट सिटी के तौर पर होने पर होने लगी है। अब स्मार्ट सिटी का स्वरूप फाइलों और अखबारी कागजों से गंगा किनारे बसे इस पौराणिक शहर की धरा पर कब उतरेगी यह कहना अभी थोड़ी जल्दीबाजी हो जायेगी। खैर जो भी हो…..इस शहर में मेरे प्रवास के एक साल होने के खरीब है इसलिए मैं थोड़ी-बहुत इस शहर को इसके ऐतिहासिक-सांस्कृतिक और भौगलिक परिचय से बांधने का प्रयास कर रहा था।
शहर की यात्रा की शुरूआत…….
खैर अब अपनी आगे की यात्रा शुरू करते है……जब मैं इस शहर में 21 नवंबर 2023 को पहले दिन गरीब रथ से स्टेशन पर उतरा तो मुझे स्टेशन के सामने भीड़ से पटा अंबडेकर चौक जहां मस्जिद से नमाज की अजान….अल्लाहू अकबर ….वहीं स्टेशन के बांए तरफ मंदिर से हनुमान चालीसा की चौपाई…..जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर….कानों में मधुर आवाज में पहुंच रहे थे। स्टेशन परिसर से बाहर निकलते ही संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर की प्रतिमा का दर्शन हुआ ,जिस पर धूल की परते बैठी हुई थी। यह देख-सुन कर मुझे एहसास हुआ कि मैं गंगा-जमुनी तहजीब वाले शहर भागलपुर पहुंच गया हूं। मेरी इस यात्रा के एक साल होने में शेष कुछ ही दिन रह गये है। फिर भी मुझे पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि मैं इस शहर का नहीं हो सकूंगा ! जैसे लगता है कि यह शहर मुझे काटने दौड़ रहा हूं ?
भोजपुरी की मिल जाती है कभी-कभार मिठास
…..मूल रूप से यहां अंगिका मैथिली साथ में हिंदी भाषा बोली जाती है। ऑफिस में दो-तीन लोग भोजपुरी भाषी है जिनसे कभी-कभार अपनी मातृ भाषा में बात हो जाती है। वहीं शहर में शायद ही कभी भोजपुरी भाषा सुनने को मिलती होगी…….?…लेकिन शादी-विवाह के मौसम में पवन सिंह के गाने लाल घाघरा….गांव-टोला-कस्बा….हिलईलु….गली-गली….कईले बा….कमाल ताहर लाल घाघरा….सुनकर भोजपूरी की मिठास अपने अंदर ही अंदर गुनगुनाने लगती है।
इस अंजान शहर ने मुझे शिथिल बना दिया……
फाइलों और अखबारी कागजों की घोषणाओं में बेतरकीब बसे इस शहर में मुझे कार्य करते हुए करीब एक साल होने को है। पता नहीं इस शहर में आकर मैं इतना शिथिल सा क्यों हो गया हूं ? आठ से दस घंटे मात्रा सुधारने और कॉपी-पेस्ट करने के बाद जो समय मिलता है उसमें कुछ पढ़ने-लिखने की जिज्ञासा होती है ……लेकिन नहीं हो पाता है । जबकि प्रत्येक माह कुछ नोबेल और साहित्यक किताबें खरीदने की मेरी आदत में शुमार था। इस एक साल की अपनी यात्रा में मात्र चार-पांच किताब ही खरीद पाया हूं। ……एक नास्तिक का भविष्यलोक…… मैंने गांधी वध क्यों किया….एक देश बारह दुनिया…..सलीब-व-हरम और पांचवी किताब मक्सिम गोर्की की लिखी हुई मां । जिसमें मैंने ओमप्रकाश कश्यप की लिखी हुई… एक नास्तिक का भविष्यलोक को पूरी पढ़ी है, लेकिन अन्य किताबें मां , मैंने गांधी वध क्यों किया ? इन दोनों किताबों को आधा-अधूरा पढ़ा हूं। मैं पिछले एक साल में चार-पांच किताबें भी पूरी तरह नहीं पढ़ सका। पता नहीं इस शहर में आकर बर्बाद हो रहा हूं या आबाद हो रहा हूं ? जैसे लगता है कि मेरी चेतना ही मृत्युशाया पर चली गयी है। किताबें खरीदने की आदत मेरी दिल्ली से ही लगी हुई थी, लेकिन अब किताब खरीदने में भी शिथिलता दिखने लगी है। किताब पढ़ने के साथ-साथ एक आदत शुरू से ही था अलग-अलग न्यूज बेवसाइट पर खबरें नहीं स्टोरी पढ़ना, आज वो भी नहीं है। हद तो तब हो गयी जब इस शहर में आने के आठ माह बाद मैंने अखबार लेना शुरू किया । पता नहीं इस मैं इतना निक्कमा और शिथिल कैसे हो गया ? या तो शहर मुझे अपना नहीं बना पा रहा है या मैं इस शहर का नहीं हो पा रहा हूं।
कहीं रोजमर्रा की खबरों में सिमट न जाऊं
अंदर ही अंदर डर सताने लगा है कि जीवन कहीं मात्राओं और रोजमर्रा की खबरों के बीच सिमट कर न रह जाएं। उन कहानियों तक पहुंचने का सपना अधूरा ही रह जायेगा, जहां समाज का अंतिम व्यक्ति हर नई सुबह देखने के लिए रात के अंधरे में संघर्ष करता है। हो सकता है मेरी यही बैचनी मुझे इस शहर से जल्द ही दूर करने की कोई षडयंत्र कर रच रही होगी। आगे ईश्वर ने मेरे लिए इस धरा पर क्या तय कर रखा है…. यह तो बस आगे आने वाला समय ही बा सकता है ?

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