ट्रांसजेंडर को अपमान,अन्याय का सामना करना पड़ता है, जिससे वे सामाजिक,आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ जाते हैं: मनोज कुमार श्रीवास्तव

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  • ट्रांसजेंडरों के लिए कानूनी जागरूकता शिविर का आयोजन

डुमरांव (बक्सर) : ट्रांसजेंडर शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जिनकी एक लैंगिक पहचान उस लिंग से अलग होती है जो उन्हें उनके जन्म के समय दी गई होती है। भारतीय पुरातनता से हिजड़ा लोगों को को ट्रांसजेंडर की समकालीन पश्चिमी द्विआधारी धारणाओं की तुलना में तीसरे लिंग की श्रेणियों के करीब माना जाता है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष आनन्द नन्दन सिंह जिला विधिक सेवा प्राधिकार बक्सर एवं अवर न्यायाधीश सह सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकार देवेश कुमार के निर्देशन में पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव एवं पीएलवी अनिशा भारती द्वारा ट्रांसजेंडर के एकीकरण के बारे में विधिक जागरूकता शिविर का आयोजन डुमराँव में किया गया।
पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव ने लोगो को बताया कि अधिकांश ट्रांसजेंडर लोगों को उनके परिवार और समाज द्वारा त्याग दिया जाता है। उन्हें अपमान और अन्याय का सामना करना पड़ता है, जिससे वे समुदाय में सामाजिक,आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े रह जाते हैं। 2011 कि जनगणना के अनुसार भारत मे ट्रांसजेंडरों की संख्या लगभग 4.88 लाख है और साक्षरता दर 56.07 %है। किसी भी व्यक्ति या किसी व्यवसाय को ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए जिसमें सेवा से इनकार या अन्यायपूर्ण व्यवहार शामिल है जैसे शिक्षा, पेशा, स्वास्थ्य देखभाल आदि।भारत में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 में भारतीय कानून में ट्रांसजेंडर को “तीसरा लिंग” घोषित किया।


न्यायमूर्ति के.एस.राधाकृष्णन ने अपने फैसले में कहा कि,”शायद ही कभी हमारे समाज को उस आघात, पीड़ा और दर्द का अहसास होता है जिससे ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य गुजरते हैं और न हीं लोग ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों की जन्मजात भावनाओं की सराहना करते हैं, विशेष रूप से जिनके मन और शरीर ने उनके जैविक लिंग को अपनाने से इनकार कर दिया।”
पैनल अधिवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने आगे कहा कि 15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पास हुआ नालसा जजमेंट ट्रांसजेंडर समुदाय की दशा और दिशा सुधारने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला माना जाता है।इस फैसले में पहली बार “तीसरे जेंडर”के तौर पर पहचान मिली।यह फैसला ट्रांसजेंडर समुदायों को संविधान के मूल अधिकार देता है।इस कानून के मुताबिक जबरन किसी ट्रांसजेंडर को बंधुआ मजदूर बनाना, सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल करने से रोकना,घर से या गांव से निकालना, शारीरिक हिंसा,यौन हिंसा या यौन शोषण, मौखिक, मानसिक या आर्थिक तौर पर परेशान करना ,अपशब्द कहना अपराध की श्रेणी में रखा गया है।ट्रांसजेंडरों के खिलाफ ये सारे अपराध करने वाले को 6 महीने से 2 साल तक कि सजा हो सकती है साथ हीं जुर्माना भी लग सकता है।ट्रांसजेंडर अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है।
ट्रांसजेंडरों के साथ स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों द्वारा भेदभाव किया जाता है।जिससे उनकी देखभाल तक पहुंच सीमित हो जाती है।उन्हें लिंग आधारित हिंसा की घटनाओं का सामना करना पड़ता है।जिससे उनके कैरियर की संभावनाएं और समाज में एकीकरण और रोजगार खतरे में पड़ जाता है।माता-पिता अपने बच्चों को ट्रांसजेंडर के रूप में पालने के लिए सहमत नहीं होते हैं।यहां तक कि कोई सहायता प्रदान किये बिना छोटी उम्र में ही त्याग देते हैं।

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