बिहार के सियासत मे पटना से दिल्ली तक मची खलबली

आलेख

बिहार के सियासत में पिछले कुछ महीनों से अचानक तमाम मुख्य राजनीतिक दलों की और उन दलों के नेताओं की चिंता बढ़ी हुई है, और इस चिंता का विस्तार उन नेताओं तक ही सीमित नहीं है, उस चिंता का विस्तार बड़े नेताओं से लेकर उनके छोटे नेताओं तक हो रहा है, उन दलों के जिला स्तरीय नेताओ का लगातार अपने शीर्ष स्तरीय नेताओं को फोन जा रहा है ,की माननीय नेताजी अगले साल हमारा चुनाव है और हमारे जिला ,प्रखंड और ग्राम स्तरीय नेताओ का प्रवाह दल से बाहर हो रहा है और यदि इस प्रवाह को शीघ्र रोका नही गया तो हमलोग भी उस प्रवाह का मजबूरीवश हिस्सा बन जायेंगे क्योंकि चुनाव नजदीक है और मेरा चुनाव लडना तय है और यदि इसी तरह से हमारे लोग जाते रहेंगे तो निश्चित ही इससे हमारा चुनाव प्रभावित होगा और हमारा चुनाव प्रभावित हुआ तो आप भी उससे अछूते नहीं होंगे ।

सवाल यह है आखिर जो राजनीतिक दल बिहार की सत्ता के गलियारों में किसी न किसी दरवाजे से सत्ता में लगातार 30 से 35 वर्षों से बैठने का अनुभव रखे हो या रखते है या जो राजनीतिक दल मजबूत संख्या में विपक्ष की भूमिका प्राप्त करने का वर्षों से अनुभव रखे हो या रखते है, वैसी शक्तियों के समक्ष मात्र 1-2 वर्ष के अंदर-अंदर किस व्यक्ति या शख़्सियत ने विशाल पर्वत रूपी वैसी चिंता को आज उन शक्तियों के समक्ष लाकर खरा कर दिया है ..?

यकीनन, उस शख़्सियत को आज बिहार के अधिकांश लोग बखूबी बहुत अच्छी तरह से जान और पहचान रहे है और निश्चित ही एक आशा की किरण के रूप में स्वीकार भी कर रहे है ,शायद यही कारण है की आज इतने कम समय में आम जनता ,छात्र, नवजवान ,महिला और बुजुर्ग आदि के दिलों में जगह बनाने में उस शख्सियत ने सफलता प्राप्त की है।

•आखिर वो शख़्सियत कौन है ?
•उसके पास बिहार को सुधारने के लिए क्या नीति है ?
•बिहार को सुधारने या बिहार के सर्वांगीण विकास हेतु क्या विजन लेकर वो चल रहे है ?
इन सभी सवालों के जवाब उसी शख़्सियत के द्वारा खुलें मंच पर बिहार के गांव गांव में जाकर लोगो को बताया जा रहा है और तमाम राजनीतिक दलों का पोल भी खोला जा रहा है यही कारण है पटना से दिल्ली तक चिंता बनी हुई है ,और उन लोगो की जैसे जैसे चिंता बढ़ रही है वैसे वैसे आम जन में उस शख्सियत के प्रति लोगो का विश्वास भी बढ़ रहा है ।
ये तो एक चर्चा हो गई ।
दूसरी चर्चा या प्रयास उन राजनीतिक दलों की ओर से भी हो रही है जिसको काउंटर के रूप में माना जा सकता है और वो प्रयास क्या है उसकी भी चर्चा आवश्यक है चुकीं सामान्यतः जब चिंता होती है तो उसके उपाय की खोज भी शुरू हो जाती है (यह बिलकुल स्वाभाविक प्रक्रिया है ) इसलिए , उन राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा उस शख़्सियत के विषय में कुछ और तुच्छ बातें भी कही जा रही है की .. “अरे वो नेता थोरी है वो तो बिजनेस मैन है” कुछ तथाकथित नेताजी कह रहे है की “ये तो एक बड़े राजनीतिक दल का B टीम है” और कुछ छिटपुटिया नेता यह भी कह रहे है की “अरे वो तो पैसा खर्च कर के अपने अभियान का प्रचार करा रहे है” इनमे से कुछ, वही तथाकथित नेता है, जो एक राजनीतिक वर्ग का हिस्सा रहे है या है जो पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में उस शख़्सियत की भविष्यवाणी का प्रचार युद्धस्तर पर कर रहे थे और इनके मात्र एक बयान को अपने फेसबुक स्टोरी पर वायरल कर रहे थे और आज उसी शख्शियत के चलने मात्र से चिंता में आ गए है और उस चिंता को कम करने के लिए उनके विरुद्ध मुखर है , वही लोग कुछ खास वर्ग को पुनः अपने शोषण का शिकार बनाने की मंशा से अपने बयानों में एक वाक्य और जोड़ते दिखते है की “अरे ये वही व्यक्ति है जो 2014 में एक राज्य के मुख्यमंत्री को पूरे देश का पीएम बनाने में मदद किया था ये उसी पीएम और उसके ही दल का आदमी है” लेकिन जब वे ये कथन व्यक्त करते है या वैसी बातों पर प्रकाश डालते है तो उस बात पर पर्दा चाह कर भी नहीं डाल पाते की जिस शख्शियत ने जिस दल और जिस दल के नेताजी को देश की कमान दिलाने में मदद की उसी शख्शियत ने एक नही 10 राज्यों में उसी एक दल को पछाड़ने में या बुरी तरह हराने में भी मदद की थी ! खैर , सबकी अपनी अपनी राजनीतिक बुद्धि और उनके हर एक पहलुओं पर विचार करने की क्षमता होती है जो व्यक्तिगत मामलों के अंतर्गत ही रहने दिया जाना बेहतर होता है।
कुछ राजनीतिक दल या उनके नेता बड़ी बुलंदी से ये भी कह रहे है की “अरे धन बल के आधार पर खुद को बिहार में स्थापित करने का प्रयास उस शख़्सियत द्वारा किया जा रहा है”, और “उनके अभियान से जुड़े सभी लोग पैसा पर काम कर रहे है और गांव गांव या शहरों में प्रचार कर रहे है और जो लोग भी उनसे जुड़े हुए है सब आर्थिक लाभ के साथ उनके अभियान का प्रचार कर रहे है”, , अगर इन नेताओं की बात मान लें , यदि वास्तव में ऐसा है तो व्यवहारिक स्तर पर देखा जाए तो ये एक अद्भुत कार्यक्रम प्रतीत होता है , चुकी यह बहुत ही लाजमी और स्वाभाविक सवाल बन सकता है की आज बिहार क्या पूरे देश में जितनी भी राजनीतिक दलें है जिनके कार्यकर्ता दिन रात एक कर के अपने खर्च पर अपने परिवार के खर्चों को कम कर के अपनी राजनीतिक दल के लिए काम करते है या करते आ रहे है , मेरे समझ से कइयों के तो जीवन भी इसी में कट गए होंगे , पर उस सेवा के दौरान कितना खर्च या उस ईमानदार सेवा के फलस्वरूप कितना आर्थिक मेंहनताजा या राजनीतिक लाभ उन जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को प्राप्त होता है या हुआ होगा या हो रहा है ?
यदि उस शख़्सियत के द्वारा वास्तव में ऐसी व्यवस्था बनाई गई है की उस अभियान से जुड़कर जो लोग भी एक कार्यकर्ता या वॉलंटियर के रूप में मेहनत कर रहे है और उन्हें उनकी मेहनत के अनुरूप फल भी दिया जा रहा है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी मजबूती आ रही है ,और सही लोग, सही सोच और सामूहिक प्रयास के मंत्र से प्रेरित भाव के अनुरूप उनके राजनीतिक व्यतित्व का भी विकास किया जा रहा है , तो यह वास्तव में एक अद्भुत पहल है जिसका स्वागत होना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण की वे ,एक ऐसे अभियान से जुड़ने का अवसर पा रहे है जिसका मुख्य आधार “सही लोग,सही सोच और सामूहिक प्रयास” या “जनता का राज” आदि मंत्रों संबंधित है और उसी भाव से जमीनी स्तर पर वह काम भी कर रहा है, जिसका लक्ष्य आंदोलन करना या धरना देना या उपवास करना नही अपितु लोगो को या आम जनता को लोकतंत्र की ताकत से रूबरू कराने का अभियान है , वोट देने का आधार क्या होगा या किस काम के लिए वोट देना सही होगा या व्यवस्था में परिवर्तन नहीं आमूलचूल परिवर्तन कैसे संभव होगा इस बात को बताने मात्र का अभियान है । इस प्रयास या व्यवस्था के बारे में विस्तार से लिखना आवश्यक इसलिए सही नही मानता हूं क्योंकि उस अभियान के प्रति लोगो का जिस तरह से तेज रुझान और उसके प्रति एक नई उम्मीद और विश्वास बना है या बन रहा है यह उस अभियान के सफलता या स्वीकार्यता का अपने आप में एक बड़ा प्रमाण है ।
राजनीतिक पहलुओ पर चर्चा हो और समाज के तथाकथित बुद्धिजीवियों को उस चर्चा से अलग रखा जाए यह उनके साथ बेइमानी होगी !
समाज में कुछ ऐसे खास बुद्धिजीवी वर्ग भी है ,जिनका उस शख्सियत को लेकर यह मानना है कि बिहार में वोट जातिवाद पर होता है,बिहार को जीतना इतना आसान नहीं है । उन लोगो से सवाल है की,अगर सही में बिहार के लोग जात के आधार पर वोट देते ,तो बिहार से पिछले 3 लोकसभा चुनावों में भाजपा को कितना प्रतिशत वोट और सीटें मिलती रही है ? और सबसे मजे की बात तो यह है की इस सवाल का सबसे पहले जवाब उन्ही बुद्धिजीवियों द्वारा दिया जाता है की अरे, भाजपा को वोट मोदी जी के नाम पर मिलता है , तो क्या एक सवाल ये नही बन सकता की अगर बिहार के लोग जातिवाद है तो मोदी जी के समाज के लोग कितना प्रतिशत बिहार में रहते है ? जो उन्हे भर भर के वोट बिहार से जा रहा है ?
और अगर बिहार में जातिवाद होता तो 2005 से अबतक नीतीश कुमार सीएम की कुर्सी पर बैठे हुए है, कितना % लोग उनके समाज का बिहार में रहता है ?
यदि शांत मन से और पूरी गंभीरता से इन सभी बयानवीरों विशेषकर राजनीतिज्ञों के बयान जो उस चिंता से उत्पन्न जवाबी कार्यवाही के रूप में सामने आ रही है , पर गौर करें और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की प्रकाष्ठा जिसमे समाजहित और राज्यहित से ऊंचा स्वाहितों का स्थान बना हुआ है या उनका राजनैतिक इतिहास आदि पर गहरा मूल्यांकन करें तो यह स्पष्ट होता है ,और सिख भी देता है की किसी भी राज्य या सत्ता की कमान किसी राजनीतिक रूप से योग्य हाथों में ही देनी चाहिए ताकि भविष्य में उनके अयोग्यता का प्रमाण बार बार प्राप्त करके अफसोस न होना परे।
इनलोगों ने स्वास्थ ,शिक्षा और रोजगार के नाम पर वर्षों से वोट तो लिया लेकिन कोई आमूलचूल बदलाव आजतक नही दिखा , और केवल लोगो को जातिवाद का रंग देने का और उसमे बाटने का असफल प्रयास ,समाजवाद का झूठा खेल ,राष्ट्रवाद के नाम पर इमोशनल ब्लैकमेलिंग करके ,अपनी गद्दी ये लोग बचाते रहे..,
और आज एक ऐसे शख्शियत ने जो अपनी मेहनत और ईमानदारी से प्रतिष्ठा, सफलता और नाम पूरे भारत और शायद दुनिया में बनाने के बाद ,अपनी जन्मभूमि (बिहार) की मिट्टी का कर्ज उतारने हेतु संकल्पित होकर बिहार में पदयात्रा कर रहा है और गांव गांव घूम रहा है ,लोगो से मिल रहा है और सबसे विशेष बात तो यह है की खुद के लिए वोट भी नही मांग रहा है बस इतना कह रहा है अगले बार अपने बच्चों का चेहरा देखकर वोट दीजिएगा ताकि बाद में अपने बच्चो को अशिक्षित और लाचार देखने पर मजबूर न होना परे।

यह सर्वदित है , बिहार क्या पूरे देश में विकास के नाम पर सत्ता बचाने मात्र की राजनीत होती रही है ,नेता या दल अक्सर जीत के चले जाते है लेकिन बदले में अक्सर जनता और उनके ही कार्यकर्ता ठगा हुआ महसूस करते है , ऐसे परिस्थिति में अचानक से बिहार की राजनीत में एक तूफान के रूप में उस शख़्सियत की एंट्री निश्चित ही एक नई उम्मीद की किरण बनी हुई है .. और उम्मीद की किरण हो भी क्यों न हो, जब लोग कहते है – लालूराज अच्छा था, कोई कहता है – मोदीराज अच्छा है , कोई कहता है – नीतीशराज , कोई कहता है – मोदी+नीतीश राज और कुछ कहते है न तेजस्वीराज.., लेकिन वो कहता है “जानता का राज” होना चाहिए , तो ऐसे में उम्मीद की किरण क्यों न हो?

•वर्षों से नेता कहते रहे की हम बेरोजगारी दूर कर देंगे लेकिन कैसे दूर करेंगे के सवाल पर उनके पास उत्तर नही होता लेकिन यात्रा पर चलने वाला शख्शियत का दावा है की अगर बिहार के लोगो को बैंकों के द्वारा रोजगार – स्वरोजगार हेतु ऋण उपलब्ध करा दिया तो वो नौकरी मांगने वाला नही देने वाला बन सकेगा इतनी काबिलियत बिहारियों में है या प्रत्येक प्रखंडों में उस क्षेत्र या उस क्षेत्र में होने वाले कृषि व्यवस्था के अनुकूल यदि कोई उद्योग धंधा लगा दी जाए तो 10 से 15 हजार का रोजगार उन लोगो को उनके अपने गांव में ही मिलने लगेंगे जिससे उन्हें दूसरे राज्यों में मजदूर बनने पर मजबूर नही होना परेगा और बिहार के मानव संसाधन का बड़े स्तर पर पलायन रुकेगा, तो ऐसे में उम्मीद की किरण क्यों न हो?

•वर्षों से नेता कहते रहे है की हम शिक्षा व्यवस्था ठिक कर देंगे लेकिन कैसे करेंगे के सवाल पर उनके पास उत्तर नही होता लेकिन यात्रा पर चल रहा एक व्यक्ति का मानना है की हर बदलाव या विकास शिक्षा के बिना अधूरा है इसलिए पहली प्राथमिकता शिक्षा को मिलनी चाहिए , और उनका दावा भी है की अगर बिहार के हर प्रखंडों में 5 जगह चुनकर,5 अच्छे अच्छे विश्वस्तरीय विद्यालय बना दिए जाए और उस प्रखंड के ही हर बच्चे को 15 मिनट में बस के माध्यम से विद्यालय तक पहुंचा दिया जाए ,जिसका फायदा यह होगा कि जो 20 विद्यालय उस प्रखंड में जो पहले से चल रहे है जिसमे कोई नही जाता है , उन 20 विद्यालयों की जगह अगर 5 विश्वस्तरीय विद्यालय बना दिए जाए(यानी हर साल 1 प्रखंड में 1 विश्वस्तरीय विद्यालय यानी 5 सालों में उन्ही प्रखंडों में 5 वैसे विद्यालय बिहार के सभी प्रखंडों में बनाया जा सकता, यह होगा तब जब हर प्रति वर्ष बिहार के कुल शिक्षा बजट का एक तिहाई हिस्सा शिक्षा इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च किया जाए ) और बच्चों को आसानी से उस विद्यालय तक पहुंचने की सुविधा दे दी जाए तो यह संभव है की 5 साल के अंदर बिहार की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव देखने को मिलेगा,कितने भी कमजोर विद्यार्थी हो जब वह विश्वस्तीय विद्यालय में पढ़ेंगे तो उसके व्यक्तित्व में निश्चित ही निखार आएगा , तो ऐसे में उम्मीद की किरण क्यों न हों ?

लेकिन एक कॉमन सवाल लोगो के मन में जरुर आ रहा है की उस शख्सियत के द्वारा इतने बड़े अभियान को पूरे बिहार में चलाया जा रहा है “पैसा कहा से आ रहा है” यही सिर्फ एक सवाल उस शख्सियत को और उसके इस पूरे अभियान को परिभाषित करने के लिए पर्याप्त है ।
सामान्यतः जो लोग राजनीत में कितनी भी ऊंचाई पर चले जाते है उनका मन समाज या अपने लोगो के प्रति बहुत संकुचित होता जाता है ,वो सिर्फ एक मात्र कार्यक्रम में लगे होते है की बस जितना जल्दी संभव हो अपना और परिवार या आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित कर लें , न जाने अब कब अवसर मिलें ।

लेकिन आज जिस शख्सियत की चर्चा हो रही ही, व्यक्तिगत तौर पर मैं मानता हूं की वो व्यक्ति जो कुछ भी अपने जीवन में हासिल किया है वो अपने काबिलियत और मेहनत के बल पर किया है और सबसे महत्वपूर्ण बात की देश या कई राज्यों की सियासत में जिस ऊंचाई पर बैठने का मौका उसे मिल चुका है अगर औरों जैसी नियत या सोच उस व्यक्ति में भी होती तो उन जगहों से लाभ उठाना उसके लिए एक कदम आगे बढ़ाने या पीछे हटाने जैसा था ।

लेकिन इन सभी चीजों से हटके उसने बिहार में नई राजनीतिक व्यवस्था बनाने पर पूरा ध्यान केंद्रित किया और खुद को ,अपने समय को और अपने संसाधनों को सिर्फ बिहार को बदलने हेतु दांव पर लगा दिया है बिना परिणाम की चिंता किए बगैर, और जिन लोग का उसने मदद किया उन सभी से बिहार में नई व्यवस्था बनाने के लिए ,बिहार को सुधारने के लिए आर्थिक सहायता ले रहे है यानी बिहारियों के लिए आर्थिक सहायता ले रहे है न की पैसा लेकर अपना घर भर रहे है , ऐसे में क्या उस शख्सियत के पवित्र भाव का या उसके ईमानदार प्रयास का प्रमाण इससे अधिक कुछ हो सकता है क्या ?
एक किताब में महात्मा गांधी को पढ़ रहा था जिसमें उन्होंने एक राजनीतिक संदर्भ में ही कहा की व्यक्ति को सदैव पवित्र कार्य ही करने चाहिए और उस पवित्र कार्य को पूरा करने के लिए जिस मार्ग को चुन रहे हो वह मार्ग भी पवित्र ही होने चाहिए।
राजनीत निश्चय ही संभावनाओं का खेल है परंतु एक सही सोच से भरी दिशा और ईमानदार प्रयास हर असंभव घटना को संभव बनाने की क्षमता रखती है।

✍️ – हिमांशु प्रवीर

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