पटना: यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता है कि भारत तिब्बत मैत्री संघ बिहार और जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना के संयुक्त तत्वावधान में तिब्बत मुक्ति साधना और भारत चीन संबंध के ऊपर में 16-17 नवंबर 2024 को सेमिनार का पहला दिन का शुभारंभ हुआ। तिब्बत का प्रश्न अत्यंत संवेदनशील है।
तिब्बत की स्थिति से समूचे एशिया के लोगों, विशेष कर हम भारतीयों में चिंता व्याप्त हो गई है पहले हमने तिब्बत पर चीन की कारवाई को हमला बताया जल्द ही हमने उस दुर्भाग्यपूर्ण जमीन पर चीन का हक स्वीकार कर लिया। तिब्बत कभी भी चीन का हिस्सा नहीं रहा। तिब्बती लोग चीनी नस्ल के नहीं है जब चीनी साम्यवादियों ने तिब्बत पर कब्जा किया था तो उन्होंने वादा किया था कि दलाई लामा को विशिष्ट स्थिति और उनके सरकार की स्वायत्त बनाई रखी जाएगी। जो लोग साम्यवादी चीन की प्रकृति से अवगत है वह अच्छी तरह समझते थे कि चीन के साम्राज्य के अंतर्गत स्वायत्तता की बात करना बिल्कुल पाखंड है। वर्तमान घटनाओं से यह बात साबित हो रहा है कि लोगों की समझ कितनी सही थी।
अब सवाल है कि हम भारत तिब्बत मैत्री संघ के लोग तिब्बतियों की मदद के लिए क्या कर सकते हैं? किसी को उम्मीद नहीं है कि तिब्बत के लिए भारत चीन से लडाई करें लेकिन हर आजादी पसंद करने वाले व्यक्ति को चोर को चोर कहने के लिए तैयार रहना चाहिए। आक्रमण की गंभीर कारवाई को नजरअंदाज कर हम शांति नहीं ला सकते, हमको कम से कम खुलकर यह बात कहनी चाहिए कि तिब्बत आक्रमण का शिकार हुआ है और एक ताकतवर देश चीन ने एक कमजोर देश की स्वतंत्रता छीन ली है। इस समय तिब्बत में एक नए साम्राज्यवाद की सक्रियता देख रहे हैं, जो पुराने साम्राज्यवाद से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि यह एक तथाकथित क्रांतिकारी विचारधारा के बैनर तले आगे बढ़ रहा है। चीन सहित किसी देश को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी अन्य देश पर प्रगति थोप हर देश को चाहे वह छोटा हो या बाद यह अधिकार है कि वह जीने का खुद तरीका चुने। हम लोग सिर्फ इतना कर सकते हैं कि उसके इस अधिकार के साथ बिना किसी शंका के साथ खडे हो।
चीन के साथ मित्रता का बंधन के साथ हमारा जुडाव सही है और मैं उनलोगों में से हूं जो यह चाहते हैं कक यह बंधन मजबूत और सुरक्षित हो लेककन मित्रता का मतलब यह नहीं होता है कि अपराध करने के लिए उकसाया जाए वास्तव में सही ममत्रता का मायने होता है कि जब मित्र गलत रास्ते पर जाए तो उसको दृढ़तापूर्वक इस बारे में बताना चार्हए।
हम जानते हैं कि भारत महाशक्ति के राजनीति में विश्वास नहीं करता है पर उसके अंदर इतना साहस होना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में सच के साथ खडा हो। हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है। चीन के लोगों को हमसे मित्रता की उतनी ही जरूरत है जितनी की हमें। लेकिन यदि इस मित्रता की कीमत छल और कपट हो तो हमारे अंदर यह साहस होना चाहिए कि वैसी मित्रता को ठुकरा सके।
संस्थान के निदेशक डॉ. नरेन्द्र पाठक द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। विषय प्रवेश पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान ने किया। उद्घाटन सत्र में प्रो. आनन्द कुमार, प्रेसिडेंट इंडिया-तिब्बत फ्रेंडशिप सोसाईटी एवं सेवानिवृत प्रोफेसर, जे.एन.यू., नई दिल्ली; डॉ. रामचन्द्र पूर्वे, पूर्व शिक्षा मंत्री, बिहार सरकार; श्री पेमा भूटिया, पूर्व काउंसलर, सिक्किम; श्री हरेन्द्र कुमार, अध्यक्ष, भारत-तिब्बत मैत्री संघ, बिहार ने अपनी बात रखी।
तकनीकी सत्र में प्रो. आनन्द कुमार; डॉ. नवल किशोर चौधरी; प्रो. अरुण कुमार सिंह, डिप्टी सी.ए.जी.; प्रो. अरुण कुमार सिंह एवं श्री विकास नारायण उपाध्याय ने संबोधित किया एवं उपस्थित जनों के प्रश्नों का उत्तर दिया।
तीसरे सत्र में प्रो. रामवचन राय, उपसभापति, बिहार विधान परिषद; श्री हितेन पटेल, श्री विश्वजी, श्रीमती तासी जेकी, प्रमोद कुमार शर्मा, उपाध्यक्ष, भारत-तिब्बत मैत्री संघ, बिहार; डॉ. रघुनंदन शर्मा, पूर्व प्राचार्य, पटना विश्वविद्यालय; ज्योत्सना राय ने सत्र को संबोधित किया।