कायस्थों के लिए चुनौती बनी पटना नगर निगम मेयर की सीट, सभी जातियों के समर्थन से ही मेयर की कुर्सी पर होगा कब्जा

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अपने-अपने तरीके से साधने में जुटे मेयर उम्मीदवार

ठेकेदार बनाम समझदार कौन दिलाएगा मेयर की जीत?

पटनाः   राजधानी पटना की मेयर सीट यानि हॉट सीट शुरु से रही है। मगर इस बार डायरेक्ट चुनाव होने से इस सीट की लड़ाई कुछ ज्यादा ही रोचक हो गई है। होना भी लाजिमी है, अब जो भी चुने जायेंगे उनको किसी भी प्रकार के निर्णय या काम कराने में बहुत कम मश्कत करनी पड़ेगी। इस बार मेयर पद के लिए 33 महिला उम्मीदवार मैदान में हैं। अगले कुछ ही दिनों में चुनाव का माहौल और परवान पर है। लोकसभा व विधानसभा चुनाव की तरह मेयर चुनाव होने की वजह से जातिय समीकरण को अपने-अपने तरीके से सभी राजनीतिक गोटी सेंकने में लगे हैं। जिस भी उम्मीदवार ने ताल ठोंकी है उन सभी को सीता साहू से दो-दो हाथ करनी पड़ेगी। लेकिन एक तथ्य यह भी उभरकर सामने आ रहा है कि जातिय समीकरण निर्णायक साबित हो सकता है। इसी संभावना को सामने रखकर मेयर उम्मीदवार अलग-अलग बैठक कर अपनी सियासत चमकाने को लेकर जाति को साधने की कोशिश में जमे हुए हैं। इसमें वैश्य, यादव, कायस्थ और मुसलमान वोटरों पर सबसे अधिक नजर सबकी टिकी हुई है। लगभग 17.29 लाख वोट पटना नगर निगम में है, जिसमें 9.12 लाख पुरुष व 8.16 लाख महिलाएं शामिल हैं। अनुमान व वार्ड स्तर पर होने वाले दावों के अनुसार कायस्थ वोट 2 से 2.5 लाख, वैश्य तीन से 3.5 लाख, यादव लगभग दो लाख, मुसलमान करीब 1.75 लाख, महतो एक लाख और चंद्रवंशी एक लाख वोटर हैं। बाकि संख्या अन्य जातियों के वोटरों की है। पटना मेयर पद के लिए उम्मीदवारों को पहली चुनौती स्वजाति उम्मीदवारों से ही हर कदम पर होगी। अगर हम बात करें पूर्व मेयर सीता साहू की तो वह वैश्य जाति से आती है। उनके अलावा रीता रस्तोगी व सरिता नोपानी वैश्य जाति से ही आती हैं। वहीं यादव में रजनी देवी यादव, पिंकी यादव व सुचित्रा सिंह की स्वजातीय लड़ाई लड़नी होगी। विनीता सिंह उर्फ विनीता बिट्टू सिंह राजपूत, जबकि पुष्पलता सिन्हा कुर्मी जाति से हैं।

 

पूर्व मेयर अफजल इमाम की पत्नी महजबीं के सामने मोसर्रत परवीन मैदान में हैं। वहीं कायस्थ उम्मीदवारों की बात करें तो मेयर कुसुमलता वर्मा, माला सिन्हा, विनीता कुमारी श्रीवास्तव, रत्ना पुरकायस्थ मैदान में है, लेकिन अगर हम बात करें कायस्थ उम्मीदवार की तो इसमें जितने भी चित्रगुप्त समाज के लोग हैं वो खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। हालांकि कई लोग इसमें अपने चेहरे को चमकाने में लगे हैं वहीं चित्रगुप्त समाज से आने वाली कुसुमलता वर्मा किसी भी दिखावे से दूर अपना प्रचार-प्रसार में लगी हुई हैं। वहीं माला सिन्हा के लिए कुछ संगठन खुलकर आए हैं। वैसे में कायस्थ सीटों की बात करें तो कुसुमलता वर्मा बनाम माला सिन्हा की लड़ाई को प्रबल माना जा सकता है। एक तरफ जहां माला सिन्हा मैदान में डटी हुई हैं वहीं कुसुमलता वर्मा के लिए कई उम्मीदवारों ने भी अपना मौन समर्थन देने की प्रक्रिया शुरु कर दी है। ये बात और है कि कोई किसी से बोलने को तैयार नहीं है लेकिन कुसुमलता वर्मा के पति अवकाश प्राप्त इंश्योरेंस अधिकारी सुजीत वर्मा की राजनीतिक पैठ बेहतर मानी जाती है साथ ही इनके बारे में ये भी कहा जा सकता है कि चित्रगुप्त समाज के लगभग संगठनों में अच्छे सरोकार का भी इन्हें फायदा बेहतर मिलता दिख रहा है। स्थानीय चुनाव का मतलब ही होता है कि कोई खुलकर सामने आना नहीं चाहता है लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि कायस्थ समाज के लिए भी दोनों हाथ में लड्डू है, परंतु सोच समझकर वोटिंग नहीं किए तो वोट बंट जाएंगे और फिर से विरोधी अपना सिक्का जमाने में कामयाब हो सकते हैं। इसलिए सबसे बड़ी चुनौती कायस्थ समुदाय के लिए है, क्योंकि भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद, विधायक नितिन नवीन, विधायक अरुण सिन्हा के अलावे पूर्व सांसद आर के सिन्हा का आखिर मौन समर्थन उम्मीदवारों को अगर एकजुटता के साथ मिलती है तो निश्चित तौर पर एकबार फिर से पटना का मेयर कायस्थ समुदाय से आ सकता है।

 

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