– मनोज कुमार श्रीवास्तव
ब्रिटिश भारत में पहली जनसंख्या जनगणना 1872 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मेयो के अधीन हुई थी और अंतिम 1931 में हुई थी। 1872-1931 के बीच प्रत्येक जनगणना ने जाति आधारित आंकड़े एकत्रित किये।भारत की जनगणना 2011 तक 15 बार की जा चुकी है।हालांकि भारत की पहली सम्पूर्ण जातीय जनगणना 1881 में हुई थी।1941 में जाति आधारित आंकड़े एकत्रित किये गए किन्तु उनका प्रकाशन नहीं किया गया। औपनिवेशिक काल में जाति जनगणना में दलित,आदिवासी, ओबीसी एवं ऊंची जातियां सम्मिलित थी।जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों का प्रयोग तब भारत को विभाजित करने एवं विजित करने के लिए किया जाता था।यह 20 वीं शताब्दी के ब्राह्मण विरोधी आंदोलनों का भी स्त्रोत था।
1951-2011 के बीच आजादी के बाद के समय में प्रत्येक 10 साल पर होने वाली जनगणना में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति पर आंकड़ा सम्मिलित थे लेकिन जाति से सम्बंधित कोई आंकड़ा एकत्र नहीं किया गया था।इसलिए 1931 के बाद से जाति आधारित जनगणना के अभाव में भारत में ओबीसी जनसंख्या का कोई सही अनुमान नहीं है।जबकि मंडल आयोग का अनुमान है की भारत की जनसंख्या 52 % ओबीसी वर्ग से आता है।
1931 के बाद से भारत में सामाजिक-आर्थिक स्थितिओं में व्यापक परिवर्तन आया है।इसलिए भारत की वर्तमान जातिगत वास्तविकताओं को जानने के लिए भारत में एक नई जाती आधारित जनगणना की मांग की जा रही है।स्वतंत्रता के बाद 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण विकास मंत्रालय एवं शहरी क्षेत्रों में आवास तथा शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय द्वारा आयोजित की गई थी। जातिगत आंकड़ों को छोड़कर आर्थिक एवं जाति जनगणना (SECC)आंकड़े को 2016 में दोनों मंत्रालयों द्वारा अंतिम रूप दिया गया एवं प्रकाशित किया गया।
जातिगत आंकड़े सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को सौंप दिया गया था।मंत्रालय ने आंकड़ों के श्रेणीकरण एवं वर्गीकरण हेतु नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगारिया के अधीन एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया।जिसमें केवल ग्रामीण एवं शहरी परिवारों में व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति का विवरण किया गया था।जाति के आंकड़े अभी तक जारी नहीं किये गए हैं।
बिहार में जाति,राजनीति और आरक्षण एक दूसरे की पूरक है।नेता जातिवाद के आधार पर हीं चुनाव लड़ते और जीतते भी हैं।जनता का विकास भी जातिवाद पर हीं होता है।सभी राजनीतिक दल केवल अपने जाति के लोगों का ही विकास करती है।शिक्षा और सरकारी नौकरी में भी आरक्षण जातिवाद के आधार पर ही मिलता है।चुनाव में टिकट भी जाति आधार पर ही मिलता है।यह बातें केवल राज्यों में हीं नहीं लागू होती है बल्कि केंद्र सरकार की कैबिनेट तक में जातियों के आधार पर ही नेताओं की सीटें प्राप्त होती है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनसंख्या नियंत्रण कानून को गैर जरूरी बताकर बिहार में जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं।जबकि केंद्र सरकार बिहार में जातिगत जनगणना कराने से साफ इंकार कर दिया है।देश में हर 10 साल में जनगणना की जाति है और इस जनगणना में धार्मिक, शैक्षणिक, आर्थिक,आयु,लिंग आदि का उल्लेख किया जाता है।इसके अलावा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का आंकड़ा भी शामिल होता है।इसमें नेता सबसे ज्यादा मांग ओबीसी जातियों की जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं।
भले हीं जातिगत जनगणना को कांग्रेस पार्टी समर्थन कर रही है लेकिन एक समय था कि यह इसके समर्थन में नहीं थी।जबकि दूसरी राजनीतिक पार्टियां जैसे लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद पवार के दबाव में आकर जाति जनगणना करवाई गई थी।इस जनगणना के सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना नाम दिया गया था।इस जनगणना के आंकड़ों को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया।इस जनगणना पर उस समय 4 हजार करोड़ से अधिक का खर्च आया था।
बिहार सरकार राज्य में जातिय जनगणना करने का फैसला लिया है।कई सालों बाद ऐसा होगा कि जाति के आधार पर जनसंख्या की गणना की जाएगी। बिहार सरकार अपने खर्चे पर जनगणना करवाएगी।क्योंकि देश में कई सालों से कभी भी जाति के आधार पर जनसंख्या जनगणना नहीं की गई है।इसकी मांग काफी लंबे समय से हो रही थी।जातिय जनगणना को लेकर सभी पार्टियों की बैठक बुलाई गई थी जिसमें सर्वसम्मति के बाद नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना को मंजूरी दी है।
जातिगत जनगणना की मांग पर मुख्यमंत्री का कहना है कि इसमें यह पता चलेगा कि कौन सी जाति अभी भी पिछड़ेपन का शिकार हैं ताकि उन जातियों को उनकी संख्या के हिसाब से आरक्षण का लाभ देकर स्थिति को मजबूत किया जा सके।बिहार में जातिगत जनगणना होने के बाद ओबीसी की संख्या मौजूदा आकलन की तुलना में बढ़ या घट सकती है।यदि ऐसा होता है तो यह एक गम्भीर राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।इसके अलावां अन्य पिछड़ी जाति द्वारा आरक्षण की मांग खड़ी हो सकती है।केंद्र सरकार को इसका भय बना हुआ है क्योंकि 2024 में लोकसभा चुनाव है और भाजपा किसी भी हालत में नही चाहती कि चुनाव में जाति का मुद्दा खड़ा हो।