दिल्लीः गुजरात के कच्छ के भुज में 16 राज्यों के पशुपालक युवाओं की आकांक्षाओं, चुनौतियों और सरकार के साथ नीतिगत विचार-विमर्श की आवश्यकता पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। गौरतलब है कि सहजीवन – पशुचारण केंद्र व्यापक पशुधन उत्पादन प्रणाली के लिए इस क्षेत्र में कई मध्यवर्तनों का संचालन करने में अग्रणी है।
केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने व्यापक पशुधन उत्पादन प्रणाली के हित में आवश्यक बातचीत और निम्नलिखित पहलों की शुरुआत की है:
1. राष्ट्रीय पशुधन जनगणना के भाग के रूप में पशुपालक जनगणना को शामिल करना;
2. केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक पशुपालक सेल का निर्माण;
3. राष्ट्रीय पशुधन मिशन में व्यापक पशुधन उत्पादन प्रणाली से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों को शामिल करने के लिए प्रारंभिक पर्यवेक्षण।
यह उम्मीद की जा रही है कि निर्मित वातावरण में ध्वनि-विज्ञान और थर्मल इन्सुलेशन के लिए स्वदेशी ऊन तथा गैर-गोजातीय दूध के लिए संस्थागत मध्यवर्तन सहित तापमान के लिए संवेदनशील और खराब होने वाली वस्तुओं के भंडारण एवं परिवहन में ऊन के उपयोग का उल्लेख भविष्य की पहलों में किया जाएगा। स्वदेशी ऊन पर राष्ट्रीय मिशन, गैर-गोजातीय दूध (बकरी, भेड़, गधा और याक) के विपणन के लिए संस्थागत प्लेटफार्मों का निर्माण, पशुपालक आबादी को पहचान प्रदान करना और पशुपालक डेयरी परिदृश्य के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनस।
कॉन्क्लेव में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधिकारियों का व्यापक प्रतिनिधित्व देखा गया; डॉ. अभजीत मित्रा – पशुपालन आयुक्त, डॉ. सुजीत दत्ता – संयुक्त आयुक्त, डॉ. देबलिना दत्ता – सहायक आयुक्त और श्री सुमेद नागरे – सांख्यिकी सलाहकार, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय। पशुपालक समुदाय को मुख्यधारा में लाने की कोशिशों और आजीविका में संभावित सहयोग पर समग्र परिप्रेक्ष्य का अवलोकन करने के लिए इस सम्मेलन में डॉ. ए साहू – निदेशक, राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र, डॉ विनोद कदम – केंद्रीय भेड़ ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, डॉ. खेम चंद – प्रधान वैज्ञानिक, राष्ट्रीय कृषि नीति एवं अनुसंधान संस्थान और श्री जी. एस. भट्टी – कार्यकारी निदेशक, केंद्रीय ऊन विकास बोर्ड भी शामिल हुए।
भारत में पशुपालकों की संख्या का अनुमान व्यापक रूप से अलग होता है। पशुधन पर आधिकारिक आंकड़े वर्तमान में उपयोग की जाने वाली प्रबंधन प्रणाली को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। यह माना जाता है कि व्यापक पशुधन उत्पादन प्रणाली अपने पशुधन का रख-रखाव करने के लिए सामान्य-पूल संसाधनों पर निर्भर करती है। पशुचारण प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला मौजूद है जो मोबाइल से लेकर ट्रांसह्यूमन और गतिहीन तक है। मोबाइल श्रृंखला में आने वाली प्रजातियों में ऊंट, मवेशी, बतख, गधे, बकरी, सूअर, भेड़ और याक आदि शामिल हैं।
कई पशुपालक पारंपरिक जातियों से संबंधित हैं, लेकिन अन्य समूह, जिन्हें “गैर-पारंपरिक पशुपालक” के रूप में जाना जाता है, भी मोबाइल श्रृंखला से जुड़े हुए हैं। व्यापक पशुधन प्रणालियां भारत में दूध और मांस के एक बड़े हिस्से का उत्पादन करती हैं। जानवरों के गोबर की खाद भी फसल उत्पादक किसानों के लिए उर्वरक का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और खाद कई पशुपालकों की आय का मुख्य स्रोत है।