डिजिटल मीडिया से वासना का जहर

आलेख

–      मनोज कुमार श्रीवास्तव

 डिजिटल मीडिया का समाज और संस्कृति पर काफी व्यापक और जटिल प्रभाव पड़ा है।इंटरनेट और व्यकिगत कम्प्यूटिंग के साथ डिजिटल मीडिया ने प्रकाशन,पत्रकारिता, जनसम्पर्क, मनोरंजन, शिक्षा, वाणिज्य और राजनीति में विघटनकारी नवाचार किया है।डिजिटल मीडिया अक्सर प्रिंट मीडिया जैसे मुद्रित पुस्तकों, समाचार पत्रो, पत्रिकाओं और अन्य पारम्परिक या एनालॉट मीडिया जैसे फोटोग्राफिक फ़िल्म,ऑडियो टेप या वीडियो टेप के विपरीत होता है।

     डिजिटल मीडिया कोई भी संचार का माध्यम है जो विभिन्न एनकोडेड मशीन,पठनीय डेटा स्वरूपों के साथ काम करता है। लगभग 63 करोड़ स्मार्टफोन यूजर्स के साथ भारत जैसे देश में सरकार का चिंतित होने लाजिमी है।यह समझने की आवश्यकता है कि करोड़ो फेसबुक खातों पर लोग अपने निजी,राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को धड़ल्ले से रख रहे हैं।यूट्यूब चैनलों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है।ऐसे में जब ट्विटर जैसा प्लेटफार्म दुनिया के सबसे ताकतवर शासक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ट्वीट को हाइड कर सकता है तो भारत जैसे देश को परिपक्व होते देखने की जरूरत है।

      केंद्रीय मंत्री चन्द्रशेखर ने कहा है कि डिजिटल मीडिया में विज्ञापनों की ताकत बढ़ी है।विज्ञापन से होने वाली आमदनी और मुद्रीकरण ने पूरे तंत्र में असंतुलन पैदा किया है।छोटे समूहों और डिजिटल सामग्री बनानेवाले लाखों लोगों को इससे नुकसान हो रहा है।आस्ट्रेलिया के पूर्व संचार मंत्री पॉल फ्लेचर ने कहा है कि अभी डिजिटल सामग्री बनाने वालों  का कंटेंट के मुद्रीकरण पर नियंत्रण नहीं है।कंटेट से होने वाली कमाई को लेकर उनकी जरूरतों और बड़ी टेक कम्पनियों के पास जो ताकत है उसे लेकर विषमता और असन्तुलन है।

     इंटरनेट पर पक्षपात और गलत खबरें सही और सटीक समाचारों की तुलना में बहुत तेजी से फैलती है।यह सरकार ही नहीं बल्कि उपभोक्ताओं के लिए भी चुनौती है।आज भारत में 80 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं।यह दुनिया का सबसे बड़ा जमावड़ा है।2025-26 तक हो सकता है कि देश में 100 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़ जाएगा।इंटरनेट भी अब बदल चुका है।भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आधुनिक उपकरण, क्लाउड,डिजिटल इकोनॉमिक जैसे क्षेत्रों के के जरिए भारत में इंटरनेट का विकास होगा।

      इंटरनेट के करोड़ों उपभोक्ताओं के प्रति जबाबदेही किसकी होगी यह बहुत बड़ा सवाल है।भारत सरकार ने 104 यूट्यूब चैनल्स सहित कई वेबसाइट को बैन कर दिया है।सूचना एवं प्रसारण मंत्री

अनुराग ठाकुर ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान कहा है कि देश के खिलाफ मुहिम चलाने वाले और समाज में भ्रम एवं भय फैलाने को लेकर यूट्यूब 104 के साथ ट्विटर के 5 अकाउंट और 6 वेबसाइट के खिलाफ आई टी कानून के तहत कार्रवाई की गई है।

     डेलीहंट,हेलो,यूसी न्यूज, ओपेरा न्यूज,न्यूज डॉग आदि चीनी या विदेशी नियंत्रण वाले डिजिटल मीडिया है।ये भारत के हितों को चोट पहुंचा सकता है।पाठकों की रुचि में भी बदलाव आ रहा है।वे लंबे चौड़े असलेखों को पसंद नहीं करते।खोज,संचार, सोशल नेटवर्किंग और वीडियो जैसे माध्यमों में उनका अधिक समय जा रहा है, लिहाजा विज्ञापन भी ज्यादातर उसी दिशा में बह रहे हैं।

     सरकार की माने तो उसकी चिंता वेब न्यूज पोर्टल,चैनल या यूट्यूब के प्रति ज्यादा है।सरकारी तंत्र का मानना है कि ऐसे चैनल को  बिना किसी पंजीकरण या अनुमति के शुरू किया जा सकता है।ये खतरनाक तरीके से राष्ट्रीय सम्प्रभुता की नुकसान पहुंचा सकते हैं।सोशल मीडिया हमलावर सेना की सबसे संघातिक टुकड़ी है क्योंकि इसमें हमलावर अदृश्य, अराजक और अनियंत्रित है।

       राष्ट्रीय विधि आयोग भारतीय वाणिज्य एवं उद्दोग मंडल जैसी संस्थाओं ने सोशल मीडिया पर प्रभावी नियंत्रण की सलाह दी थी।एसोचैम ने मेट्रो शहर दिल्ली,मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे,बंगलोर में 235 परिवारों पर सफल सर्वेक्षण किया था।करीब 80% प्रतिभागियों ने स्वीकार किया था कि 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की अपेक्षा परिवार के युवा सदस्य सुबह से हीन विभिन्न सोशल मीडिया साइटों पर जुड़े रहते हैं।

      सोशल मीडिया पर नियंत्रण की बात दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रक्षा एवं राजनीतिक अध्धयन के विभागाध्यक्ष प्रो0 हर्ष कुमार सिन्हा के शोधपत्र में किया गया है।यह शोध साल 2018 में नॉन ट्रेशीनल सिक्योरिटी चैलेंजेज नामक पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है।शोध में प्रो0 सिन्हा ने देश-विदेश की तमाम घटनाओं का उल्लेख करते हुए सोशल मीडिया के खतरों के प्रति आगाह किया है।उन्होंने कहा था कि सामाजिक विद्वेष फैलाने में सोशल मीडिया काफी आगे है।इसलिए उन्होंने डिजिटल जहर पर नियंत्रण की सलाह दी थी।उन्हों यह भी कहा है कि मीडिया केवल सूचना और मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि हमलावर सेना की भूमिका अदा कर रहा है।

       साल 2018 के शोधपत्र के आंकड़ों के अनुसार टीवी देखने वाले दर्शकों का ध्यान स्मार्टफोन, टैब की तरफ जा रहा है।नेटफ्लिक्स, यूट्यूब, अमेजॉन जैसे कि विकल्प हैं जो युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं।अब 70 करोड़ लोग टीवी देख रहे हैं।फेसबुक इस्तेमाल में भारत पहले स्थान पर है।भारत में 24 करोड़ से ज्यादा फेसबुक इस्तेमाल करने वाले लोग हैं।आज दुनिया में करीब 250 करोड़ यूजर्स हैं।जबकि वर्ष 2018 में 20 करोड़ यूजर्स थे।

       शोधपत्र में कुछ अहम घटनाओं का जिक्र है।सोशल मीडिया पर 2009 को इस्लामाबाद डेली मेल में छपी इस खबर की हेडलाईन थी रॉ ने भारतीय सेना के पास वेश्याएँ भेजी।भारत के खिलाफ दुष्प्रचार की पाकिस्तान की रणनीति का सबूत 2017 में आई एक फेक न्यूज है।दो मिनट के के इस वीडियो से भारतीय मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश की गई है।2015 में राज्यसभा में एक लिखित जबाब में गृह राज्यमंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी ने बताया था कि देश में नफरत फैलाने के लिए ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप, ईमेल और ब्लॉग के दुरूपयोग के कई कारण सरकार की जानकारी में आये हैं।भागलपुर दंगों के 26 वर्ष बाद पेश हुईं जांच आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि सोशल मीडिया दंगों का नया लॉंच पैड बन रहा है।भारत में आईएस का ट्विटर एकाउंट चलाने वाले मेहंदी मसरूर बिस्वास की गिरफ्तारी के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सरकार अजित डोभाल ने इस विषय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपकर कई उपाय सुझाये थे।

    डिजिटल मीडिया में अफवाह और दुष्प्रचार रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त रेगुलेटर का कानून लेन का सुझाव दिया।केन्द्र सरकार ने सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए गाइडलाइंस बनाई है।

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