आर.के. सिन्हा
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने जिस बेशर्मी से अपने देश के खालिस्तानी आंदोलनकारियों को समर्थन देना शुरू किया है उससे दोनों देशों के संबंध तार-तार जैसे हो गए हैं। भारत-कनाडा संबंधों को मजबूती देने का काम तो भारत से हर साल वहां पर पढ़ने के लिए जाने वाले हजारों-लाखों नौजवान करते रहे हैं। जाहिर है, भारत का आमजन कनाडा के प्रधानमंत्री के रुख से बहुत खिन्न है। भारत ने अपने कुटनीतिक जवाब में कनाडा के नागरिकों के लिए वीजा देने पर रोक लगा दी है। दूसरी ओर जो भारतीय छात्र कनाडा जाकर पढ़ना चाहते थे, वो अब ऐसा करने से स्वयं बच रहे हैं। इसकी वजह से भी दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हुआ है।
विदेश में पढ़ने जाने के लिए मदद करने वाली एक कंसल्टेंट कंपनी का कहना है कि इसी वर्ष हमारे पास 65 ऐसे छात्र आए थे, जो कनाडा पढ़ने जाना चाहते थे लेकिन, अब उन्होंने अपना फैसला बदल लिया है।
इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि भारत से हरेक साल बड़ी संख्या में विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया आदि देशों में क्यों चले जाते हैं? यह सवाल कनाडा में जो भारत को लेकर हो रहा है उस रोशनी में पूछ जाना चाहिए। वहां जो कुछ भी घटित हो रहा है उससे पहले ही भारतीयों के साथ हिंसा के मामले सामने आने के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय अपनी एडवाइजरी जारी कर चुका है।
विदेश मंत्रालय भारत में कनाडा के उच्चायोग से इन घटनाओं को कनाडा के अधिकारियों के साथ उठाने व उनकी सही जांच करवाने के लिए भी कई बार कह चुका है। यह भी सच है कि कनाडा में घृणा अपराधों, सांप्रदायिक हिंसा और भारत विरोधी गतिविधियों की घटनाओं में तो निश्चित रूप से वृद्धि हुई है। भारत के लाख कहने के बावजूद कनाडा सरकार वहां पर जा बसे, या रह रहे भारतीयों को सुरक्षा प्रदान नहीं करवा पा रही है। कनाडा में अब भी हजारों या यूँ कहिये कि लाखों भारतीय नौजवान पढ़ रहे हैं। अब उन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है। उपलब्ध आकड़ों के अनुसार साल 2018-19 के दौरान ही 6.20 लाख विद्यार्थी पढ़ने के लिए देश से बाहर गए थे। ये आंकड़े मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ही जारी किए थे। ये अधिकतर स्नातक की डिग्री लेने के लिए ही कनाडा या किसी अन्य देश का रुख करते हैं। स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के लिए बाहर जाने वाले अपेक्षाकृत कम ही होते हैं। पर मूल बात यह है कि हर साल इन विद्य़ार्थियों के अन्य देशों में जाने के कारण देश की अमूल्य विदेशी मुद्रा भी देश के बाहर चली जाती है। इन लाखों विद्यार्थियों के लिए देश को अरबों रुपया अन्य देशों को देना पड़ता है वह भी विदेशी मुद्रा में।
अगर कोई विद्यार्थी वास्तव में किसी खास शोध आदि के लिए अमेरिका की एमआईटी या कोलोरोडो जैसे विश्वविद्लायों में दाखिला लेता है तो कोई बुराई भी नहीं है। आखिर अमेरिका के कुछ विश्व विद्लाय अपनी श्रेष्ठ फैक्ल्टी और दूसरी सुविधाओं के चलते सच में बहुत बेहतर हैं। यही बात ब्रिटेन के आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे विश्वविद्लायों के संबंध में भी कही जा सकती हैं। इनमें बहुत से अध्यापक नोबेल पुरस्कार विजेता तक हैं। इसलिए इनमें दाखिला लेने में तो कोई बुराई नहीं हैं। लेकिन अगर हमारे बच्चे होटल मैनेजमेंट या एमबीए या सामान्य स्नातक डिग्री जैसे कोर्सज के लिए कनाडा, यूक्रेन और चीन जाएं तो बात गले से नहीं उतरती। सच पूछा जाए जाए तो इसका कोई ठोस कारण भी समझ नहीं आता। फिर यह भी एक तथ्य है कि विदेशों में पढ़ाई के लिए जाने वाले बच्चों को अनेक अवसरों पर घोर कष्ट भी होता है। उन्हें कई बार विदेशी विश्वविद्लाय सब्जबाग दिखा कर अपने पास बुला लेते हैं। जब हमारे बच्चे विदेशों में जाते हैं, तो उन्हें कड़वी हकीकत दिखाई देती है। हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन बच्चों के अभिभावकों ने भी एजुकेशन लोन के नाम पर बहुत मोटा लोन ले लिया होता है जिसे उन्हें दो दशक तक चुकाते रहना पड़ता है ।
इसके साथ ही, कनाडा में मुट्ठी भर खालिस्तानी भारत और हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। दुख इस बात का है कि मित्र देश होने के बावजूद कनाडा सरकार कुछ नहीं कर रही। खालिस्तानियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी पर निकाली परेड में पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी को आपत्तिजनक रूप में दिखाया। बीती 6 जून, को कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में खालिस्तानियों ने 5 किलोमीटर लंबी परेड निकाली। इसमें एक झांकी में इंदिरा गांधी की हत्या का सीन दिखाया गया। झांकी में इंदिरा गांधी को खून से सनी साड़ी पहने दिखाया गया है। उनके हाथ ऊपर हैं। दूसरी तरफ दो शख्स उनकी तरफ बंदूक ताने खड़े हैं। इसके पीछे लिखा है-बदला। कनाडा अपने को एक सभ्य देश होने का दावा करता है। पर वहां अलगाववादियों, चरमपंथियों और हिंसा की वकालत करने वाले खुल कर हिंसा का खेल कर रहे हैं जो पलट कर उन्हीं पर वार कर सकता है, जो इंदिरा जी के पाले हुये भिंडरावाले के चेले ने इंदिरा जी के साथ किया ।
बेशक, कनाडा में जो कुछ हो रहा है उससे भारत आहत है। इस कट्टरपंथ की सार्वभौमिक तौर पर निंदा तो होनी चाहिए। कनाडा लंबे समय से खालिस्तानियों की गतिविधियों का केंद्र बन चुका है। वहां पर मंदिरों में भी तोड़फोड़ की जाती है। कनाडा का ब्रैम्पटन शहर तो भारत विरोधी गतिविधियों का केन्द्र बन चुका है। जुलाई 2022 में कनाडा के रिचमंड हिल इलाके में एक विष्णु मंदिर में महात्मा गांधी की मूर्ति को खंडित कर दिया गया था। सितंबर 2022 में कनाडा में स्वामीनारायण मंदिर को खालिस्तानी तत्वों ने भारत विरोधी भित्ति चित्रों के साथ विकृत कर दिया था। पर वहां की पुलिस की काहिली और निकम्मेपन के कारण दोषी पकड़ में नहीं आते।
जरा याद करें कनिष्क विमान हादसे को। मांट्रियाल से नई दिल्ली आ रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क को 23 जून 1985 को आयरिश हवाई क्षेत्र में उड़ते समय, 9,400 मीटर की ऊंचाई पर, बम से उड़ा दिया गया था और वह अटलांटिक महासागर में गिर गया था। इस आतंकी हमले में 329 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी जिम्मेदारी को निभाने में असफल रहे हैं। वे भारत में किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहे थे। तब ट्रूडो कह रहे थे कि “कनाडा दुनिया में कहीं भी किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा रहेगा।” क्या कनाडा की खुफिया एजेंसिया इतनी घटिया हैं कि उन्हें पता ही नहीं है कि वहां पर खालिस्तानी सक्रिय हैं? अब वक्त की मांग है कि भारतीय अपने बच्चों को कनाडा पढ़ने के लिए भेजना बंद कर दें। अगर इस तरह की पहल सफल हो जाती है तो कनाडा स्वत: घुटनों पर आ जाएगा। वहां के सैकड़ों कॉलेजों पर ताला लग जाएगा और उसकी अर्थव्यवस्था पंगु होने लगेगी।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)