आर.के. सिन्हा
अब सामाजिक, व्यापारिक, संस्थागत जीवन का शायद ही कोई इस तरह का क्षेत्र बचा हो, जिधर महिलाएं नौकरी के लिए न जाती हों। खेत-खलिहानों, बैंकों,सरकारी और निजी दफ्तरों से लेकर घरों में चूल्हा-चौका करके अपने परिवार की आर्थिक मदद करने में आधी दुनिया किसी भी तरह से मर्दों से पीछे नहीं हैं। कहा जा सकता है कि अब देश में करोड़ों महिलाएं कार्यशील हैं। देश में बढ़ती साक्षरता के चलते नौकरीपेशा औरतों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। जाहिर है, उन्हें घरों से निकलकर अपने दफ्तरों और फैक्ट्रियों में तो जाना होता ही है। आपको हजारों औरतें विभिन्न संस्थानों में नाइट ड्यूटी करते हुए भी मिलेंगी। पर अपने दफ्तर या फिर स्कूलों-कालेजों में जाने वाली लड़कियों और महिलाओं को कुछ विक्षिप्त मानसिकता के लोग परेशान करते रहते हैं। वे उनके (महिलाओं) के पीछे पड़ ही जाते हैं। उन्हें वे तरह-तरह से परेशान करते हैं। इस हरकत को अंग्रेजी में कहते हैं ‘स्टॉकिंग’। दिल्ली पुलिस ने हाल ही में एक इस तरह के शख्स को पकड़ा जो एक कार्यशील महिला का लगातार पीछा कर रहा था। यह तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र है। इस तरह के तमाम केस पुलिस के सामने आते ही रहते हैं। किसी महिला का हाथ धोकर पीछा करना यौन उत्पीड़न का एक गंभीर रूप है और भविष्य में होने वाली किसी गंभीर घटना की पहली चेतावनी भी है। बेशक, पीड़िता को चुपचाप सहने के बजाय आगे आना चाहिए और अपने साथ हो रहे अपराध की रिपोर्ट पुलिस को करनी चाहिए ताकि इसे शुरू में ही ख़त्म किया जा सके।
एक बात समझ लें कि किसी सिरफिरे का किसी महिला का पीछा करना प्रारंभिक चरण है; उसका अंतिम इरादा महिला के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार ही हो सकता है। राजधानी दिल्ली के न्यू सीमापुरी इलाके में हजारों मेहनतकश लोग छोटे-छोटे घरों में रहते हैं। यह अधिकतर उत्तर प्रदेश,बिहार, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा से और अनेकों बांगलादेशी हैं। अब बांग्लादेशियों के पास वैसे तो अवैध आधार कार्ड वगैरह सब कुछ है। यहां पर रहने वाली बहुत सारी महिलाएं अपने इलाके में चलने वाली ‘महिला पंचाय़त’ में अपने साथ घरों में होने वाले उत्पीड़न से लेकर घरों के बाहर उनका पीछा करने वालों की शिकायत करने के लिए आती हैं। आगे बढ़ने से पहले बता दें कि इस महिला पंचायत में पीड़ित महिलाओं को उनके कानूनी हकों के बारे में पंचायत में काम करने वाली काउंसलर विस्तार से जानकारी देती हैं और उनकी समस्या का समाधान खोजती हैं। इस महिला पंचायत, जिसका संबंध दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी से है, के प्रबंधक फादर सोलोमन जॉर्ज बताते हैं कि कार्यशील औरतों के पीछे पड़ने के मामले बहुत तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। किसी महिला का पीछा करने वाले शख्स पीड़ित महिला को फोन पर अशलील मैसेज भी भेजते रहते हैं। वह दिन भर और देर रात तक उसे फोन करके परेशान करते हैं। महिला के घर से निकलने पर वह उसे छूने या बात करने की चेष्टा करते हैं। इस कारण से बहुत सारी औरतें नौकरी छोड़ने तक के बारे में सोचने लगती हैं। अनेकों किशोरियां डर के मारे पढाई भी छोड़ देती हैं। दिल्ली में सेंट स्टीफंस कॉलेज के बाद अब हरियाणा के सोनीपत में सेंट स्टीफंस कैम्ब्रिज स्कूल स्थापित करने वाली दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी से जुड़े हुए फादर सोलोमन जॉर्ज कहते हैं कि जो लोग स्टॉकिंग में शामिल होते हैं, वे बहुत मोटी चमड़ी वाले दुष्ट अपराधी होते हैं। सख्ती से मना करने के बाद भी वे बेशर्मी से महिला का पीछा करते रहते हैं। महिला के उन्हें अस्वीकार करने के बाद भी वे बाज नहीं आते। वे अपनी हरकतों को जारी रखते हैं।
बेशक, स्टॉकिंग एक गंभीर अपराध है। इस अपराध से दो-चार होने वाली लड़कियों/ महिलाओं को तुरंत पुलिस में शिकायत करनी चाहिए। यदि वे आगे आकर शिकायत नहीं करेंगी, तो उनका पीछा करने वालों को गलतफहमी होने लगेगी कि वे सचमुच में बहुत ताकतवर हैं। उन्हें लगेगा कि वह जो चाहे कर सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि जब किसी महिला को अपने पीछे पड़े हुए व्यक्ति से दो-चार होना पड़ता है तो वह बुरी तरह से मनोवैज्ञानिक रूप से टूटने लगती है। यह अपने आप में घोर उत्पीड़न है और इससे कम कुछ नहीं। लड़कियाँ पीछा करने वाले से लगातार भयभीत रहती हैं।
याद रख लें कि किसी भी समाज के चरित्र को जानने के लिए आपको यह देख लेना काफी होगा कि वहां पर कितनी महिलाएं कार्यशील हैं। जिस समाज में जितनी अधिक औरतें कार्यशील होंगी वह समाज उतना ही प्रगतिशील माना जाएगा। इसलिए कार्यशील महिलाओं को सुरक्षा देना समाज और सरकार का पहला दायित्व है। अब नौकरियां सुबह दस से शाम पांच बजे तक की बहुत कम रह गई हैं। अब तो दिन-रात दफ्तर चलते हैं। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नौकरियों की बहार आने के बाद हम देख रहे हैं कि बड़ी संख्या में नौकरियां रात के समय की ही होती हैं। इन परिस्थितियों में कार्यशील महिलाओं को सुरक्षा तो देनी ही होगी। यह देखना होगा कि उनका दफ्तर के भीतर किसी तरह से यौन उत्पीड़न न हो। उन्हें कोई फोन करके परेशान न करता हो या फिर उनका कोई पीछा न करता हो। इसमें कोई शक नहीं है कि किसी भी देश और समाज की पहचान इस बात से ही होती है कि वहां पर महिलाएं कितनी आर्थिक रूप से स्वावलंबी हैं। वे स्वावलंबी तो तब ही होंगी जब उन्हें सही ढंग से शिक्षित किया जाएगा और उन्हें रोजगार में पर्याप्त अवसर मिलेंगे। इसके अलावा, उन्हें कार्यस्थल पर बेहतर माहौल और अपने पुरुष साथियों के बराबर वेतन भी मिलेगा। बेशक, जिन दफ्तरों में महिलाएं मुलाजिम होती हैं वहां पर माहौल कुल मिलाकर सकारात्मक ही रहता है। इसलिए किसी दफ्तर का समावेशी होना बहुत जरूरी है। हां, उस वातावरण को कुछ गटर मानसिकता वाले लोग खराब अवश्य करने की कोशिश करते हैं।
चूंकि अब विश्व महिला दिवस (8 मार्च) को आने में कुछ ही दिन शेष बचे हैं, इसलिए सारी बहस कार्यशील औरतों तक ही सिमट कर नहीं रह जानी चाहिए। अब भी अनेक औरतों को घरों में अपने ही पतियों के जुल्मों-सितम का शिकार होना पड़ता है। महिला पंचाय़त में आने वाली औरतों में उन बेबस महिलाओं की संख्या भी खासी रहती है, जो घरेलू हिंसा का लगातार शिकार होती हैं। इनकी व्यथा सुनकर खून के आंसू बहाने का मन करता है। जब देश में औरतों को उनके वाजिब हक दिलवाने की मांग हो तो उन असहाय औरतों को नजरअंदाज न कर दिया जाए जो दिन-रात अपने घरों में काम करने के बाद भी अपने जालिम पतियों के वहशीपन का शिकार होती रहती हैं।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)