मनोज कुमार श्रीवास्तव
सूबे के अंचल कार्यालयों में दाखिल- खारिज के लंबित मामले भ्रष्टाचार की कहानी बयां करने के लिए काफी है।अंचल कार्यालय लूट और भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है।कोई भी काम बिना रिश्वत दिये नहीं हो रहा है।जमीन माफियाओं और भ्रष्टअधिकारियों का नापाक गठजोड़ बना हुआ है।एक तरफ सरकारी और गैरमजरूवा जमीन अफसरों और माफियाओं की मिलिभगत से खुलेआम बिक्री हो रही है, वहीं दूसरी तरफ वास्तविक दखलदारों और रैयतों को दखल खारिज कराने के लिए कार्यालयों का चक्कर कटवाया जा रहा है।
सरकार का कहना है कि किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाना है।जनता का काम लटकाने वाले अफसर और कर्मियों को निलंबित और बर्खास्त किया जायेगा।सरकार की नजर सब पर है।तो क्या इस भ्रष्टाचार की गंगोत्री पर सरकार की नजर नहीं है ? सरकार द्वारा कड़ी कार्रवाई की बात सिर्फ आईवाश है।सब कुछ सरकार के संरक्षण में अंजाम दिया जा रहा है।किसी अधिकारी पर सरकार का कोई लगाम नहीं है।अब अंचल कार्यालय में लूट और पैसा वसूली का नया तरीका इजाद किया गया है।दाखिल-खारिज के मामले पेंडिंग रखने की जगह आवेदन को ही रद्द कर जमीन खरीदारों और रैयतों का दोहन किया जा रहा है।आम लोगों को म्यूटेशन करने में पसीने छूट रहे हैं।मजबूरन आमलोग दलालों के चंगुल में फंसने को विवश हैं।
अंचल में ऐसे कई मामले हैं जिसे ठोस कारण बताए बिना उस वाद को निरस्त कर दिया जाता है।पूरे राज्य में हजारों ऐसे आवेदक हैं जो अपनी जमीन का दाखिल-खारिज के लिए ऑनलाइन आवेदन करने के बाद महीनों से कर्मचारी के कार्यालय का चक्कर लगाते-लगाते परेशान हो गए हैं।इसके बावजूद समय सीमा पर अंचल कार्यालय से जमीन का म्यूटेशन नहीं हो पाता है।
राजस्व कर्मचारी की मनमानी का आलम यह है कि जानबूझकर अपने क्षेत्र के आवेदकों के दाखिल-खारिज के मामले को लंबित रखा जाता है।जब तक आवेदक के द्वारा नजराना नहीं ले लेता है तबतक दाखिल-खारिज का काम आगे नहीं बढ़ाता है।जो लोग नजराना देने में असमर्थ होते हैं वैसे लोगों को कर्मचारी द्वारा कोई न कोई बहाना बनाकर या तो उसके केस को अस्वीकार कर दिया जाता है या उसे अनिश्चत काल के लिए लंबित रखा जाता है।अगर कर्मचारी द्वारा जब कागजात में कोई त्रुटि बताने पर जब आवेदक राजस्व कर्मचारी के कार्यालय में कागजात देखना चाहते हैं तो इसके लिए भी उन्हें मुंशी के माध्यम से नजराना भेट करना होता है। अधिकांश वादों में राजस्व कर्मचारी को चढ़ावा चढ़ाए बिना उसका निष्पादन नहीं किया जाता ऐसे में दाखिल खारिज मामलों के निष्पादन के लिए आवेदक कर्मचारी के हल्का कार्यालय के इधर-उधर चक्कर काट रहे होते हैं लेकिन समय पर उसका म्यूटेशन नहीं हो पाता है।
सरकार द्वारा स्पष्ट निर्देश है कि किसी भी राजस्व कर्मचारी कोई भी सहायक अपना निजी या प्राइवेट व्यक्ति को नहीं रखना है और न सरकारी रिकॉर्ड प्राइवेट मकान में ले जाना है।सरकारी रिकॉर्ड कागजात को सरकारी भवनों, पंचायत भवन अथवा अंचल में रखना है। बावजूद इसके राजस्व कर्मचारी द्वारा मनमानी की जा रही है।राजस्व कर्मचारी द्वारा अवैध कर्मियों द्वारा काम कराया जा रहा है।म्यूटेशन के नाम लूट का धंधा थम नहीं रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता मुकुंद प्रकाश मिश्र द्वारा बताया गया है कि RTI के जरिए बिहार सरकार ने भेजे गए जवाब में भी स्पष्ट किया गया है कि किसी भी राजस्व कर्मी को अवैध कर्मी से सरकारी काम में मदद नहीं ली जानी है।
इन दिनों बिहार के प्रखंड, अंचल कार्यालय सहित अन्य विभागों में कोई भी ऐसा कार्यालय नहीं बचा है जहां भ्रष्टाचार अपना पांव नहीं पसारा हो।चाहे अधिकारी हो या छोटे-बड़े कर्मचारी हो सभी बेखौफ होकर जनता को खुले हाथों से लूट रहे हैं।अगर बात की जाए इन लोगों के खिलाफ कार्यवाही होने की तो साहब यह बिहार है यहां मोटी रकम देकर लोग पदों पर आते हैं और उन पैसों को निकालने के लिए जनता के मेहनत से कमाए गए पैसों को खून कि तरह चूस जाते हैं।बीच में अगर मामला आता भी है तो लीपापोती के लिए अपने ऊपर के अधिकारियों को चढ़ावा देकर बच जाते हैं।
प्रखंड व अंचल कार्यालय के कर्मी डंके की चोट पर लोगों से पैसे लूट रहे हैं।ये लोग इतने बेखौफ हैं कि इन्हें न तो मानवता का ख्याल है और न तो अपने पदों के गरिमा का।ये सरकारी मुलाजिम हैं जो अपने अकड़ और पड़ के नशे में चूर हैं।सरकार रोजाना कुछ न कुछ नीति ला रही है पर पदासीन कर्मचारी सारी नीतियों को धत्ता साबित करते जा रहे हैं।लगता है भ्रष्टाचार उनके नस नस में बस गया है।
बड़ी संख्या में रैयतवारी ने काफी दिनों से जमीन की रसीद नहीं कटवाए हैं।इसकी सबसे बड़ी वजह है कि जमीन को लोगों ने आपस में बांट लिया है लेकिन दस्तावेज में अब भी पुरखों का नाम है।ऐसे में एक दूसरे के प्रति आनाकानी कर राजस्व रसीद नहीं कटाई जा रही है।अंचल में रसीद कटवाने के लिए रैयतधारिओं का जमावड़ा लग रहा है।राजस्व कर्मचारी की मनमानी से लोग परेशान हैं। कहीं कहीं तो राजस्व कर्मचारी कहते हैं कि दाखिल खारिज ऐसे नहीं होगा सीओ से भेंट करने पड़ेगा।सीओ भी खुलकर कहते हैं कि कुछ खर्चा देना होगा नहीं तो म्यूटेशन नहीं होगा जहां जाना है जाइये सब जगह चढ़ावा देना पड़ता है, हमारा कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। भूमि का डिजिटलाइजेशन की सरकारी योजना पर उनके ही कर्मचारी हवा निकल रहे हैं।अधिकारी म्यूटेशन और रसीद काटने के नाम पर मोती रकम के उगाही कर रहे हैं। राजस्व कर्मचारियों एवं अधिकारियों के मिलीभगत से खुलेआम लूट का खेल जारी है।