बिहार की सियासत में कब क्या होगा यह कहना मुश्किल है। एक तरफ केंद्रीय मंत्रीमंडल से आरसीपी सिंह का हटना और उनकी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया जाना। ऊपर से शिक्षा मंत्री विजय चौधरी का बयान कि केंद्रीय मंत्रीमंडल में जदयू शामिल नहीं होगी और बिहार में एनडीए में आल इज वेल। जनाब सच पूछिए तो पच नहीं रही है।
आरसीपी सिंह का संपत्ति सार्वजनिक होने के बाद नीतीश कुमार के खिलाफ अब आग उगलने लगे हैं। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने अपने बयान में यहां तक कह दिया आरसीपी बाबू के बारे में तन से यहां थे मन से वहां थे। आपको एक बात याद दिला दूं कि जदयू का इतिहास रहा है कि अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को हमेशा से फजीहत करके ही हटाया गया है। इन अध्यक्षों में जॉर्ज फर्नान्डिस, शरद यादव और अब उस कड़ी में आरसीपी सिंह भी शामिल हो गए हैं। इन सारे तथ्यों पर गौर करें तो आगे के अध्यक्ष को भी सतर्क हो जाना चाहिए क्योंकि पार्टी की शायद यही परिपाटी रही है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। ऐसे में अब इनका राजद के साथ गठबंधन करने का बातें भी सियासी पारा को बढ़ा दिया है। हलांकि दोनों तरफ से सफाई लगातार दी जा रही है कि सबकुछ बेहतर चल रहा है। महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ राजद के प्रतिरोध मार्च की आंच से लग रहा था कि उसके मन में भी सत्ता का लड्डू फूट रहा है। उसके इस मार्च में कांग्रेस और लेफ्ट भी साथ-साथ प्रतिरोध कर एनडीए के खिलाफ आवाज को बुलंद कर रहा था। सबसे चौंकाने वाली और गौर करने वाली बात ये है कि इस मार्च में एनडीए के खिलाफ आवाज तो बुलंद हुई, मगर एनडीए में सिर्फ निशाने पर नरेंद्र मोदी और भाजपा रही, जबकि उसके साथ चलने वाले नीतीश कुमार पर महागठबंधन ने एक भी कटाक्ष नहीं किया। इससे साफ जाहिर हो जाता है कि जो कयास लगाए जा रहे हैं उसमें कहीं न कहीं कुछ सत्यता जरुर है।
खबर ये भी सुनने में आ रही है कि आरसीपी के समर्थक नेताओं विधायकों, सांसदों की निकटता जरुर होगी, इसलिए नीतीश कुमार के द्वारा सभी से राय मशविरा की जा रही है। इस बात में कितनी सत्यता है इस पर दावा तो नहीं किया जा सकता है, मगर कयास लगाए जा सकते हैं। हलांकि कयास की पुष्टि तब हो जाती है जब मंगलवार को जदयू अपने विधायक और सांसदों के साथ बैठक करने वाली है। वहीं सुनने में यह भी आ रहा है कि राजद भी अंदरखाने में इसको लेकर बैठक कर रही है। सूत्र तो यहां तक कह रहे हैं कि नीतीश कुमार यूपीए का संयोजक बन सकते हैं। साथ ही बिहार की सत्ता बदली तो सिर्फ पार्टियां बदलेंगी नेता वही रह जाएंगे। इस बात में कितनी सच्चाई है इसको लेकर कयासों का दौर जारी है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कहीं न कहीं अंदर आग सुलग रही है तभी इसकी चर्चा चहूंओर है। बात तो जरुर कुछ है। इन सारे तथ्यों को सत्यता में बदलने के लिए थोड़ा इंतजार तो करना ही होगा। अगर जदयू और राजद लोकसभा चुनाव को लेकर साथ आने की तैयारी में है तो भाजपा को भी कमतर आंकना बड़ी भूल होगी। क्योंकि भाजपा वही पार्टी है जो महाराष्ट्रा की ठीक ठाक चलती सरकार को भी पलटने में कामयाब रही है। भाजपा के साथ नीतीश के सबसे करीबी और लंबे समय तक राजदार रहे आरसीपी सिंह को राजनीतिक शतरंज का मुहरा बनाने से भी किसी स्तर पर परहेज नहीं किया जा सकता है।