कश्मीरी हिन्दू आतंकियों के निशाने पर

आलेख

मनोज कुमार श्रीवास्तव

यह चिंता की बात है कि आतंकी फिर एक बार कश्मीरी हिंदुओं को निशाने बनाने में सफल रहे हैं।शोपियां के गांव में सेव के खेतों में काम कर रहे दो कश्मीरी भाइयों पर गोलियां बरसाई जिसमें एक कि मौत हो गई औऱ दूसरा अस्पताल में अपनी जिंदगी की जंग से लड़ रहा है।यह अच्छी बात नहीं है कि रह-रह कर कश्मीर की घाटियों में कश्मीरी हिंदुओं और सिखों को निशाना बनाया जा रहा है।

      यदि इस सिलसिले को रोका नहीं गया तो बचे हुए कश्मीरी हिंदुओं और सिखों को भरोसा दिलाना कठिन होता जाएगा कि वे वहां सुरक्षित हैं।इसकी अनदेखी नहीं कि जा सकती कि कश्मीर में सक्रिय आतंकी गैर कश्मीरियों को भी निशाना बनाने में लगे हुए हैं,उसी तरह पुलिस एवं सुरक्षा बलों के जवानों को भी।यह किसी से छिपा नहीं है कि सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ भी जारी है।

     न केवल उन कारणों की तरह तक जाना,जिनके चलते कश्मीरी युवा अभी भी हथियार उठाकर आतंकी बन रहे हैं बल्कि यह भी देखना होगा कि उन्हें बरगलाने और प्रशिक्षण देने का काम कौन कर रहा है।साथ हीं यह भी प्रयास होना चाहिए कि सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ पूरी तरह रुके। तीन महीने के अंदर 12 लोगों की हत्या हुई है।

      कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति ने आतंकियों द्वारा बढ़ते हमलों को देखते हुए समुदाय के सदस्यों से घाटी छोड़ देने को कहा है।समिति के प्रमुख संजय टिक्कू ने कहा है कि आतंकियों ने साफ कह दिया है कि वे कश्मीर घाटी में सभी कश्मीरी पंडितों को मार देंगे।उन्होंने कहा है कि वे 32 वर्षो से देखते आ रहे हैं।हम कबतक अपनी जान देते रहेंगें, अब बहुत हो गया।

      कश्मीर में शांति बहाली और हर तरफ बह रही राष्ट्रवाद की धारा से बौखलाये आतंकियों ने अपने दुस्साहस को देखते हुए दक्षिणी कश्मीर के शोपियां में अपने बाग में काम कर रहे दो सगे भाइयों पर गोलियां बरसा कर की।फ़ीडम फाइटर्स नामक आतंकी संगठन ने इंटरनेट मीडिया पर बयान जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है।इसके पूर्व स्वतन्त्रता दिवस की रात को बडगाम में आतंकियों ने कश्मीरी हिंदुओं के घर पर ग्रेनेड से हमला किया था जिसमें कर्ण कुमार नामक युवक जख्मी हो गया था।

       एक रिपोर्ट के अनुसार 1990 में 60 हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन हो गए उस समय उनकी संख्या लगभग 5 लाख थी।हालांकि स्टेट बनाने की मजहबी सोंच की वजह से 1990 के अंत तक 95 % कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़ वहां से चले गए।कश्मीर हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था।मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक कश्मीरी पंडित नर्स का साथ आतंकियों ने सामुहिक बलात्कार और उसके बाद उसे मारकर हत्या कर दी इसके अलावे लड़कियों का अपहरण किया गया।

      कश्मीर फाइल्स फ़िल्म के बाद देश के लोग दो गुटों में बंट गए एक जो इस नरसंहार का दोष कांग्रेस को दे रहे हैं तो दूसरे भाजपा को।लेकिन 1990 में न तो कांग्रेस की सरकार थी और न भाजपा की।कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का जिम्मेदार तो कट्टरपंथी मुसलमान थे जो पाकिस्तान से प्रभावित होकर कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम कर रहे थे।कांग्रेस की सरकार में हालात बेकाबू हो गए थे।किसी ने भी उन्हें रोकने या पकड़ने की कोशिश नहीं कि थी।

     तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए मुफ़्ती मोहम्मद सईद को देश का गृहमंत्री बनाये थे। गृहमंत्री बनने के 6 माह बाद उनकी बेटी रुबिया सईद का अपहरण हो गया।अपहरण करने वाले आतंकी यासीन मलिक था।अपहरणकर्ताओं ने रुबिया सईद को रिहा करने के बदले 5 आतंकियों को रिहा करने की मांग रखी थी।गृहमंत्री ने जैसे ही रिहा किया, रुबिया सुरक्षित रिहा हो गई।

    जैसे ही आतंकी रिहा हुए कश्मीर में हिन्दू विरोधीओं के हौसले बुलंद हो गए और कश्मीरी पंडितों पर इस्लामिक आतंकियों और वहां के लोगों पर कहर बरपाना शुरू कर दिया।इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 1990 में बीजेपी केंद्र सरकार की समर्थन वाली पार्टी थी।86 सांसदों के साथ बीजेपी नेशनल फ्रंट का समर्थन दिया था ।इस वाम मोर्चे में सीपीएम,सीपीआई,आरएसपी और फारवर्ड ब्लॉक के सांसद थे

   कश्मीर में जो भी घटनायें घट रही है वो बढ़ती नफरतों की वजह से हो रही है और जब तक माहौल सुधारा नहीं गया तब तक विस्थापित कश्मीरियों की वापसी मुश्किल है।आर्टिकल 370 हटाने के बाद यह दावा किया गया कि कश्मीरी पंडित वापस चले आयंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं कश्मीर में इस साल लक्षित नागरिकों की हत्या की बाढ़ सी आ गयी है जिसके शिकार हिन्दू और मुसलमान दोनों हुए हैं लेकिन कश्मीरी पंडितों के बीच खौफ हो गया है।

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