नफरतों के आखिरी स्टेज पर खड़ी है दुनिया!

आलेख

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

वर्तमान समाज और राजनीति में जो नफरत की आँधी चल रही है वह नयी नहीं है। भारतीय राजनीति में नफरत का बोलबाला है। हर गली,हर गांव,हर मोड़,हर घर में नफरत की आग में जहां जल रहा है और उसके सामने प्यार, मोहब्बत और भाईचारे की राजनीति और संस्कृति लाचार, बेबस नजर आ रही है। नफरत की राजनीति अपनी चरम पर है।गंगा-जमनी तहजीब की कोंख से जन्म लेनेवाले भारतीय भी नफरत का शिकार हो रहे हैं। कहीं कमजोर व्यक्ति, महिला,लड़कियां इस नफरत की शिकार बन रही है तो कहीं कोई मासूम, दलित, पिछड़ा इसका निशाना बना रहे हैं
दरिंदों की इस भीड़ को उकसाने वाले सन्तुष्ट हैं कि भीड़ दूसरों को निशाना बना रही है।मगर, जिस तरह हिटलर के जर्मनी में आम जर्मन सन्तुष्ट थे कि नाजियों की नफरत के निशाने पर कम्युनिस्ट हैं, लोकतंत्र में आस्था रखनेवाले हैं, उदारवादी हैं और फिर यहूदी हैं। मगर हम इनमें से कोई नहीं हैं। इसलिए हम सुरक्षित हैं लेकिन नफरत की इस आग ने जर्मनों को भी नहीं बख्शा, लोग मारे गये। शहर का शहर तबाह होकर बर्बादी की बलिबेदी पर चढ़ गया।
आज भारत अपने इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है।आज खतरे में केवल मुसलमान और दलित ही नहीं है बल्कि खतरे में पूरा भारत है। भारत का संविधान, भारत का लोकतंत्र, भारत का भविष्य जिसे स्वतंत्रता संग्राम के शूरवीरों नें अपने खून से सींचा था और एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की बुनियादी रखी थी। आज इसी गणराज्य की जड़ में नफरत का तेजाब डाला जा रहा है। आज भारत दोराहे पर खड़ा है। यह सच है कि भारत एक सही रास्ता अख्तियार कर नफरत की राजनीति को दूर करने में सफल हो जायेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
नफरत की यह आग अपनी राह में आने वालों के लिए कितनी तबाही फैलायेगा और कितने बेगुनाहों की जान लेगा, कह पाना मुश्किल है। नफ़रत की राजनीति ने आईएस के नाम पर किस तरह लीबिया, इराक और सीरिया को तहस-नहस कर दिया। क्या भारतीयों को समय से पहले ऐसे हीं दौर से गुजरना होगा या इस देश में एक और गांधी को आना होगा। इससे पहले की यह हमारे समाज, हमारी राजनीति और हमारे लोकतंत्र को तबाह वो बर्बाद न कर दे। क्या अहिंसा के इस देश में जनता के सर से पानी ऊंचा होने से पहले होश आएगा और वे नफरत की राजनीति को ठोकर मारकर अहिंसा, प्रेम और भाईचारे के रास्ते को फिर से अपना लेंगें।
वह रास्ता जिसका मार्गदर्शन देश की स्वंतत्रता संग्राम के सेनानियों ने किया था, जिस पर चलकर आज भारत की गिनती दुनिया के ताकतवर देशों में होने लगी है, जिस नफरत के राक्षस को महात्मा गांधी, नेहरू,पटेल,आजद,शास्त्री,सुभाष, राजेन्द्र प्रसाद ने रखी थी।जिस नफरत को महात्मा गांधी ने अपने लहू से शिकस्त दी थी।नफरत की राजनीति न कभी सफल हुई है और न कभी होगी।आज के दौर में भारत में गरीब,अल्पसंख्यक, दलित,महिलाएं, मासूम बच्चे सभी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।किसान अपने हाथों से अपनी जान ले रहे हैं।
देश के कुछ राजनीतिक दल और नेता नफरत की इस आग में राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।वे खुश हैं मि हर मोड़ पर सफलता उनके कदम चुम रही है।प्रेम करने वालों में निराशा और हताशा के माहौल है।क्या नफरत की यह आग भारत को हमेशा-हमेशा के लिए जलाकर राख कर देगी।आज चारों तरफ जाति-नस्ल, धर्म और समुदाय आधारित नफरत का प्रसार हो रहा है।जब नस्ली भेदभाव ही राजनीति का अहम हिस्सा बन जाए तो फिर सामाजिक समरसता के लिए जगह हैं कहाँ बचता है।
समाज के बारे में अध्ययन करने वाले कई विद्वानों का मानना है कि नफरत इंसान के दिल में गहराई से समायी हुई है जबकि उसे इसका अहसास तक नहीं होता।राजनीति शास्त्र का अध्धयन करने वाले एक विद्वान ने कहा है कि नफरत इंसान के स्वभाव का ही एक हिस्सा है और इसकी जड़ें इतनी मजबूत है कि कभी उखाड़ी नहीं जा सकती।अहिंसा और प्रेम के इस देश को अहसास दिल सके कि नफरत उसकी आत्मा नहीं है।भारत की आत्मा प्रेम और स्नेह है।अपनी आत्मा को नुकसान पहुंचाकर भारत खड़ा नहीं रह सकता।भारत को जिंदा रखने के लिए उसकी आत्मा को वापस लौटाना होगा।
प्रेम और मुहब्बत की आत्मा गौतम, नानक, चिश्ती,कबीर और गांधी में निवास करती है।रात कितनी भी काली और लम्बी क्यों न हो रात फिर भी रात है।इस कोंख से सूरज जन्म लेता है और मिनटों में अंधेरे का नामोनिशान मिट देता है।भारत ऐसे ही मोड़ पर खड़ा है जहां उसे एक असर गौतम,नानक,चिश्ती,गांधी का इंतजार है जो नफरत की इस राक्षस की आंखों में आंखें डालकर चुनौती दे सके।

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