- मनोज कुमार श्रीवास्तव
बिहार में जाति जनगणना पर अचानक बवाल मचा है।नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टियां इस जनगणना को लेकर क्रेडिट लेनें में लगी है।लेकिन आम जनता से लेकर विपक्ष के कुछ दल सर्वे पर सवाल उठा रहे हैं।बहरहाल जनगणना के इन आंकड़ों को 2024 के चुनावों में वोट में तब्दील करने की ताकत के आसरे देखा जा रहा है।राजनीतिक दलों का फोकस सीधे तौर पर उनलोगों पर हो जायेगा जिसकी आबादी राज्य में अधिक होगी।2024 के लोकसभा चुनावों के लिए दंगल सजने को हैं और उसके ठीक पहले 5 राज्यों में चुनाव भी है।इस चुनावी माहौल के बीच राजनीति का पूरा फोकस बिहार बन चुका है।
” I- N-D-I-A” गठबंधन में शामिल जदयू और राजद की बिहार सरकार जातिगत जनगणना के आंकड़े लाई है।नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने जनगणना के आंकड़े तो जारी कर दिए लेकिन ये दांव खुद जदयू और राजद के उलटा पड़ता दिखाई दे रहा है।बिहार के लोगों ने आरोप लगा रहे हैं कि आंकड़े गलत हैं।जल्दबाज़ी में सर्वे किया गया है और ये सर्वे फर्जी है।लोगों ने यहाँ तक कहा है कि सर्वे कब हुआ, पता हैं नहीं चला।जनगणना सही तरीके से हुई है या नहीं,इसकी जांच होनी चाहिए।यह सर्वे सिर्फ राजनीति साधने के मकसद से की गई है।लोग सरकार की ओर से जारी इस जाति जनगणना को एक बड़ा घोटाला मां रहे हैं।लोगों का कहना है कि जनगणना में 500 करोड़ रुपया का घोटाला हुआ है। जनगणना में जो पैसा लगाए गए हैं वह घोटाला है।
बिहार सरकार द्वारा जारी जातीय सर्वेक्षण की लहर थमने की नाम ले रही है।चारो तरफ से हर जातियों में विसंगतियां व्याप्त है।उपेन्द्र कुशवाहा ने राज्यपाल को दिए ज्ञापन में बताया है कि राज्य सरकार द्वारा जो जातीय आंकङे प्रकाशित किया गया है वह पूरी तरह से न सिर्फ अव्यवहारिक है और साथ ही लालू-नीतीश का अन्य पिछड़ी,अतिपिछड़ी जश्न के खिलाफ एक गहरी साजिश है।जातीय जनगणना में दर्जनभर जातियों को कमतर करके दिखाया गया है।जबकि जमीनी हालत इससे बेहद अलग है।
जो जातियां पहले से ही कमजोर है उनको आगे की नीतियों में कई तरह का नुकसान उठाना पड़ेगा।जाति गड़ना की रिपोर्ट में बहेलिया,चन्द्रवंशी-कहार, कमकर और माली-मालाकार जश्न की जो संख्या बताई गई है वह इथनोग्राफी की अध्ययन से कम है।इन तीनों जातियों का इथनोग्राफी अध्य्यन भी सामान्य प्रशासन की ओर से ए एन सिन्हा समाज संस्थान पटना द्वारा कराया गया है।
इथनोग्राफी रिपोर्ट के अनुसार बहेलिया जाति की 67,535 है जबकि जाति गणना में इसकी संख्या 8,026 बताई गई है।इसी तरह से कहार की जनसंख्या इथनोग्राफी में 30,32,800 है जबकि गणना में सिर्फ 21,55,644 बताई गई है।वहीं माली की रिपोर्ट में 13,15,465 बताई गई है जबकि गणना में सिर्फ 3,49,205 बताई गई है।रालोजद के नेताओं ने बताया कि लगभग सभी कमजोर जश्न में इस तरह की विसंगतियां है।
सरकार के आंकड़ों को फर्जी बताते हुए उपेन्द्र कुशवाहा कह रहे हैं कि सर्वे के दौरान किसी ने मुझसे मेरी जाति ही नहीं पूछी तो ये किस आधार पर तैयार किया गया।उन्होनें यह भी कहा कि किसी खास जाति को बढ़ाने के लिए ये आंकड़े जल्दबाजी में पेश किये गए हैं।आंखों के मुताबिक राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग की कुल आबादी 36.017%है।पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.13%है यदि दोनों को मिला दिया जाए तो ये संख्या 63.14% हो जाती है।इसके अलावा सामान्य वर्ग की आबादी 15.52% है।सरकार के नए आंकड़े बताते हैं कि राज्य में ब्राह्मण 3.86%,राजपूत 3.86%,यादवों की कुल आबादी का 14% एवं मुस्लिम आबादी 17.07% है।
कुल आबादी का 0.60%कायस्थ समाज को बिहार सरकार के सर्वे में दिखाया गया है जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से दरकिनार करने का साजिश है।कायस्थ समाज इसे फर्जीवाड़ा बताया है।धानुक समाज ने भी जातीय रिपोर्ट में धांधली का आरोप लगाया है।उनका कहना है कि पूरे बिहार में धानुक समाज की आबादी 12%है इसे कम करके दिखाया गया है जो पूरी तफह से धानुक समाज के हिस्से की रोटी छीनकर दूसरों को देने की साजिश रची जा रही है।जातिगत जनगणना में हुई धांधली को लेकर कायस्थ समाज नाराज है।आंकड़ों में कायस्थों की आबादी कम दिखाई गई है।यदि सरकार इस आंकड़ों को सही मानती है तो तत्काल आरक्षण देने की व्यवस्था कर सरकार।कायस्थ समाज एक स्वर में सरकार की नाकामी और जातिगत जनगणना में हेराफेरी का आरोप लगाया है।
सभी लोगों को पता है कि जातीय जनगणना न्यायिक प्रक्रिया में फंस हुआ था।जातीय जनगणना के कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।मात्र 29 दिन में लगभग 14 करोड़ लोगों का जनगणना सम्भव नहीं है क्योंकि जनगणना करने वाले कर्मचारी का एक परिवार का जनगणना करने में कम से कम आधा घण्टा समय लगता है।इस दृष्टिकोण से जातीय सर्वे का वैधानिकता अप्रासंगिक है।ये बातें अभकाम बिहार राज्य के प्रदेश अध्यक्ष राजीवन रंजन सिन्हा ने कहा है।मिशन टू करोड़ चित्रांश अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल कर्ण ,राष्ट्रीय प्रधान सचिव रमाशंकर श्रीवास्तव ने जातीय जनगणना में कायस्थों की संख्या कम दिखाने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए पुनः मुख्यमंत्री से जनगणना कराने की मांग की है।सरकार द्वारा चुनाव को देखते हुए इस तरह की जातिगत जनगणना में धांधली की गई है जो कानूनी तौर पर गलत है।