डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जयंती सह अधिवक्ता दिवस, समाजसेवा तथा देशसेवा के लिए प्रेरणा

आलेख


– मनोज कुमार श्रीवास्तव

स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति और खुद एक बहुत ही प्रतिष्ठित वकील डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की जयंती को चिन्हित करने के लिए 03 दिसम्बर को वकील समुदाय द्वारा भारत मे अधिवक्ता दिवस मनाया जाता है।अपने चट्टान सदृश्य आदर्शों एवं श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों के लिए डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद सदैव प्रेरणा स्त्रोत बने रहेंगे।राजनीति के पदार्पण के पहले वकालत एक तरह की परम्परा रही है। अधिवक्ता की गरिमा वर्तमान भारत में ज्यों की त्यों बनी हुई है।अनेक पेशों का आज आधुनिक बाजारवादी युग में प्रवेश हुआ है पर वकालत की चमक पर कोई पॉलिश अब तक भरी नहीं हुई है।
पूरे देश में बड़ी संख्या में लोग अधिवक्ता के लिए रजिस्टर हो रहे हैं। वकीलों के भीतर मतभिन्नता है परन्तु इतनी विविध मतभिन्नता के उपरांत भी वकीलों की एकता में कोई कमी नहीं है।अधिवक्ता एकता समाज में प्रसिद्ध है, वकील न्याय के साथ अपनी एकता के लिए भी जाने जाते हैं।वकीलों जैसी एकता पाने हेतु अन्य पेशे वकीलों को आदर्श की तरह प्रस्तुत करते हैं।बार एसोसिएशन से वकीलों में एकजुटता बनी हुई है।
डॉ0 राजेंद्र प्रसाद की स्मृति में उनके जन्मदिवस के रूप में प्रत्येक वर्ष 03 दिसम्बर 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में पिता महादेव सहाय एवं माता कमलेश्वरी देवी के आंगन में हुआ था।उनकी शादी 12 वर्ष की उम्र में राजवंशी देवी के साथ हो गई थी। शिक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो वे सभी क्लास में प्रथम श्रेणी से उतीर्ण होते थे।साल 1921 में प्रिंस ऑफ वेल के विरोध में पहली बार जेल गए थे।
समाज सेवा तथा देश की सेवा के लिए प्रेरणा उन्हें डॉन सोसायटी से मिली।यह संस्था उस समय के विद्यार्थियों को उनके जीवन के चरित्र निर्माण करने में सहायता एवं समाजसेवा के लिए प्रेरित करता था उन्हें किताब पढ़ने का शौक बचपन से ही था।राजेन्द्र प्रसाद महात्मा गांधी के समर्पण, साहस और दृढ़ विश्वास से बहुत प्रभावित चक्र1921 में विश्वविद्यालय के सीनेटर के रूप में पड़ को छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
वे एक विद्वान अधिवक्ता थे।भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति हुए।राष्ट्रपति के पद पर 12 वर्षों तक कार्य करने के पश्चात 1962 में अपने अवकाश की घोषणा की।पूरे देश में काफी लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था।उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत सरकार ने 1962 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया था।
वकीलों ने हर युग में मानवता के हितार्थ कार्य किये हैं।स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज के इस युग में भी समतावादी सिद्धान्त और मानवतावादी विचारों के लिए अधिक परिश्रम करना चाहिए जिससे किसी तरह का यह विलक्षण और पवित्र पेश दूषित और कलंकित नहीं हो। भारत की सभी न्याय व्यवस्था अधिवक्ताओं के काम पर टिकी है।सभी न्याय व्यवस्था का भार ई हैं काले कोट के कंधों पर है।अगर अधिवक्ता न हों तो भारत की जनता को न्याय मिलना असम्भव है क्योंकि वकील हैं न्यायालय के अधिकारी हैं।
इन बाजारवादी विचारों के पूर्व वकील आज भी मानवता विचारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत हैं जहां कहीं मानवीय मूल्यों का अतिक्रमण होता है वहाँ अधिवक्ता की उपलब्धता प्रतीत हो जाती है।डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद 1948 से 1950 तक गणतंत्र के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किये।

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