पटना: बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य डॉ. रणबीर नंदन ने बढ़ती गर्मी में पेय जल के संकट की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा है कि भारत में जल का संकट जनजीवन पर गहराता नज़र आ रहा है। इस मामले में पूरे देश भर में नीतीश मॉडल लागू करने से जनता को राहत मिलेगी। डॉ. नंदन ने कहा कि बिहार में जल उपलब्धता की दिशा में कई ऐसे कार्य हुए हैं, जिसने अलग उदाहरण पेश किया है। इसमें गंगा का पानी गया और बोधगया तक पहुंचाने की योजना नीतीश कुमार ने शुरू की। जहां उत्तरी बिहार बाढ़ से प्रभावित होता है, वहीं दक्षिणी बिहार पर सुखार का संकट बना रहता है। गया, बोधगया में पानी के लिए भूगर्भ जल पर ही लोगों की निर्भरता रहती है। ऐसे में नीतीश कुमार ने गया और बोधगया तक गंगा के पानी को पहुंचाने की योजना तैयार की। सरकार के इस कदम से लोगों की भूगर्भीय जल पर निर्भरता समाप्त हो सकती है। इससे लोगों को पानी की समस्या नहीं होगी और वह दिनचर्या के सारे कार्य सहूलियतपूर्वक कर सकेंगे।
उन्होंने कहा कि खाना बनाना, स्नान करना, साफ-सफाई करने के साथ-साथ घर में पूजा-पाठ के लिए भी गंगाजल हमेशा मिल जाएगा। गंगाजल की उपलब्धता के बाद लोगों की भूगर्भीय जल पर निर्भरता समाप्त हो जाएगी। भू-जल स्तर भी मेंटेन रहेगा। लोगों को गंगाजल की आपूर्ति की शुरुआत हो गई है। गंगाजल हथीदह से पाइपलाइन के जरिए नवादा, राजगीर गया और बोधगया आ रहा है। गंगाजल आपूर्ति योजना पर राज्य सरकार की ओर से 4175 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।
डॉ. नंदन ने कहा कि लगातार बढ़ती गर्मी ने पेयजल की समस्या देश के कई इलाकों में ला दी है। साल 2018 में नीति आयोग द्वारा किये गए एक अध्ययन में 122 देशों के जल संकट की सूची में भारत 120वें स्थान पर खड़ा था। यही नहीं जल संकट से जूझ रहे दुनिया के 400 शहरों में से शीर्ष 20 में भारत का चेन्नई, कोलकाता, मुंबई और दिल्ली शामिल है। ऐसे में इस दिशा में जल्दी ही नहीं सोचा गया तो पूरे भारत में यह संकट आ जाएगा।
डॉ. नंदन ने कहा कि भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत जनसंख्या रहती है लेकिन विश्व भर के सभी जलस्रोतों में केवल 4 प्रतिशत जलस्रोत भारत में हैं। इस लिहाज़ से भारत दुनिया के सबसे ज्यादा जल-तनावग्रस्त देशों में से एक है। ऐसे में प्रयास इस स्तर पर होना चाहिए कि पूरे देश के लिए समुचित जल प्रबंधन हो। क्योंकि संक्युत जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार देश के 21 शहर जीरो ग्राउंड वाटर लेवल पर पंहुच सकते हैं। यानी इन शहरों के पास पीने का ख़ुद का पानी भी नहीं होगा। इनमें बंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली और हैदराबाद जैसे शहर शामिल हैं। ऐसे में इस समस्या का निदान राज्य और केंद्र दोनों स्तर की सरकारों को ढूंढ़ना होगा।