लघु विधिक जागरूकता शिविर डुमरांव प्रखंड के नन्दन पंचायत में हुई आयोजित

देश

उच्च न्यायालय पटना एवं बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार के निर्देशानुसार तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकार आनन्द नन्दन सिंह एवं मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सह सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकार देव राज के नेतृत्व में बच्चों को मैत्रीपूर्ण विधिक सेवायें और उनके संरक्षण के लिए विधिक सेवा योजना 2015 के सम्बंध में लघु विधिक जागरूकता शिविर डुमरांव प्रखंड के नन्दन पंचायत में पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव एवं पीएलवी अनिशा भारती द्वारा आयोजित किया गया।मौके पर मुखिया रामजी सिंह, सरपंच ददन सिंह के अलावे अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
शिविर में पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव द्वारा इस योजना की जानकारी देते हुए बताया गया कि बच्चों को मूलभूत अधिकार प्राप्त है जिनमें जीने का अधिकार, विकास का अधिकार, संरक्षण का अधिकार और समाज में भागीदारी का अधिकार शामिल है।उन्हें संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत विधि व्यवसाय की सहायता प्राप्त है।साथ हीं बालश्रम प्रतिषेध अधिनियम 1986,किशोर न्याय बालकों की देखरेख व संरक्षण अधिनियम 2015,बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 एवं पॉक्सो अधिनियम2012 के बारे में जानकारी दी गयी।
बच्चों तथा देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की बालमैत्री प्रक्रिया के तहत उनके सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए उनकी समुचित देखरेख, पुनर्वास, संरक्षण, उपचार एवं विकास सुनिश्चित करना है।प्रत्येक बालक समस्त स्तरों पर सुरक्षा का अधिकार रखता है एवं वह किसी हानि,शोषण, उपेक्षा आदि से ग्रस्त नहीं किया जा सकता।गोपनीयता का सिद्धांत किसी बालक की गोपनीयता विधिक सेवा संस्थानों के समस्त स्तरों पर सुरक्षित की जाएगी।
अधिवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि
बाल अधिकारों का पालन करना व करवाना समाज के प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है।आदतों को जाने,खुले संचय को प्रोत्साहित करें,उन स्थानों पर सीमाएं निर्धारित करें जहां वे जा सकते हैं, जिन लोगों को वे देख सकते हैं और,”मित्र प्रणाली” के महत्व को सुदृढ़ करें।माता-पिता को अपने बच्चों के साथ सुरक्षा कौशल का अभ्यास करना चाहिए।
अध्यापक सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही सीमित न रहें बल्कि बच्चों के सर्वांगीण विकास की जिम्मेदारी लें ताकि बचे हर क्षेत्र में अपना जौहर दिखा सके।स्कूलों में बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ हर विपत्तियों से निपटने में निपुण बनाना चाहिए।सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा जनता है कि उसे कभी भी अजनबियों के साथ नहीं जाना चाहिए।स्कूल शिक्षक और माता-पिता बच्चे के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पैनल अधिवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि माता-पिता बच्चों के पहला गुरु होते हैं और शिक्षक दूसरे।बच्चे के व्यक्तित्व को आकार देने में दोनों का बहुत बड़ा योगदान और जिम्मेदारी है।माता-पिता बच्चे के रॉल मॉडल होते हैं।
ऐसे बालक जिन्होंने कानून के विरुद्ध कोई कृत्य किया है वह धारा 12 विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के अंतर्गत नि:शुल्क विधिक सहायता हेतु पात्र है।हमारे संविधान के निर्माण के प्रति अच्छी तरह जागरूकता से राष्ट्र का विकास राष्ट्र के बच्चों के विकास से ही सम्भव है तथा बच्चों को शोषण से बचना आवश्यक है।भारतीय संविधान बच्चों को देश के नागरिक की तरह अधिकार प्रदान करता है।प्रत्येक बच्चों के व्यक्तित्व का समग्र विकास केवल शिक्षा ही एकमात्र साधन है।
बच्चों से बालश्रम पूरी तरह प्रतिबंधित है।बाल मजदूरी अधिनियम अंतर्गत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से मजदूरी न करवाए जाने एवं उन्हें शिक्षित किये जाने प्रेरित किया गया।बाल मजदूरी, बाल विवाह, साइबर अपराध एवं इंटरनेट का बच्चों पर क्या दुष्परिणाम होता है।नालसा बच्चों की देखभाल और सुरक्षा और सभी स्तरों पर बच्चों के कानूनी विवादों के लिए कानूनी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है।
पीएलवी अनिशा भारती ने बताया कि बच्चों को अपने अधिकार के साथ-साथ समाज व परिवार के प्रति कर्तव्य का भी निर्वहन करना है। उन्हें अपने आस-पास हो रही गतिविधियों पर विशेष ध्यान देना चाहिए और सजगता से कोई भी असमान्य कृत्य की जानकारी सम्बंधित लोगों को देनी चाहिए।बच्चों के लिए देश में विशेष कानून व्यवस्था है उनके कल्याण के लिए सरकार ने कई योजनाएं भी लागू की है।शिक्षा का अधिकार के तहत 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य व निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *