- कई जगहों पर युवा बेरोजगारों को प्रशिक्षित कर ओल्ड चंपारण मीट’ हाउस खुलवाया है
- देश ही नहीं दुनिया के कई देशों तक ओल्ड चंपारण मीट’ हाउस का लजीज़ स्वाद जा पहुंचा है
- कई फिल्मी हस्तियों से हो चुके हैं ओल्ड चंपारण मीट’ हाउस के लिए सम्मानित
- स्वाद को बरकरार रखने के लिए खुद का तेल उत्पादन और मसाला करते हैं तैयार
-मुरली मनोहर श्रीवास्तव
जो जमीं पर होते हैं उनके नाम ही आसमां की बुलंदियों को छूते हैं, जिन्हें दो जून की रोटी के लाले पड़े थे आज हर रोज हजारों लोगों का पेट भरते हैं। ईमानदारी से की गई मेहनत ने बदलते वक्त के साथ खान पान के व्यवसाय में इतना बड़ कद दिया की बिहार की राजधानी से निकली खुश्बू देश के विभिन्न हिस्सो में होते लंदन के रेस्टोरेंट की ‘ओल्ड चंपारण मीट’ या अहुना मीट मल्लिका बन बैठी है। जी हैं, हम बात कर रहे हैं पटना के पॉश इलाके में जन्में गोपाल जी कुशवाहा की। तब किसे पता था कि पटना की गलियों में घूमने वाला बालक, जो अपने घर की माली हालत के आगे लाचार था। अपने सभी भाईयों ने साथ मिलकर सब्जी बेचने का काम किया और आज वही सब्जी बेचने वाले परिवार सभी भाईयों ने अपनी अलग-अलग पहचान कायम कर ली है।
कुछ नया कर गुजरने की कोशिश ने गोपाल जी कुशवाहा को इस कदर स्वावलंबी बनाया की जीविकोपार्जन के लिए ”ओल्ड चंपारण मीट हाउस’ खोल दिया। पहले तो लोगों को आकर्षित कर पाना कठिन प्रतीत होता था, लेकिन हांडी में बनी मीट ने ऐसा लोगों को दीवाना बनाया की आज ओल्ड चंपारण मीट और गोपाल जी कुशवाहा एक सिक्के के दो पहलू हो चुके हैं।
कहते हैं जिस इंसान के अंदर जज्बा और जुनून न हो वो आगे अपने लक्ष्य को कभी पा ही नहीं सकता। हर संसाधनहीन व्यक्ति ही दुनिया में अपना परचम लहराता है। उन्हीं में से एक हुए गोपालजी कुशवाहा। इन्होंने दुकान पर मीट्टी के बरतन में मीट बनाने से लेकर, मसाला पीसने, ग्राहकों के बरचन धोने तक का खुद का काम करने वाले गोपाल जी ने एक नई दुनिया ही कायम कर दी। आज की तारीख में अपने साथ-साथ कई परिवारों के पालनहार बन चुके हैं। सबसे कास बात ये है कि इन्होंने ओल्ड चंपारण मीट की स्मिता को बरकरार रखने के लिए खुद की तेल और मसाले का प्रोडक्शन शुरु कर दिया। पूछने पर बताते हैं कि हर कोई देश दुनिया से मेरे पास कभी कभार पहुंच पाएगा ऐसी स्थिति में हमने मीट मसाला और तेल का प्रोडक्शन शुरु किया ताकि लोगों को आसानी से उपलब्ध हो सके।