– परिचय दास
।। एक ।।
मनुष्य की सबसे अद्भुत कला उसके भीतर की गहराई से उभरती है , जिस प्रकार नदी पहाड़ों से बहती है, शब्द हृदय की कोमल तहों से निकलकर, विचारों की कड़ी और जटिल संरचना में ढलते हैं ! एक समय वह था जब शब्दों का उद्गम कलम और दवात की सम्मिलित साधना से होता था। कलम और दवात, जैसे दो पूरक प्रेमी, मिलकर एक ऐसी सृजनात्मक धारा का संचार करते थे, जो लेखक के मन के भावों को कागज़ पर अमरत्व प्रदान करती थी।
कलम और दवात का सृजनात्मक प्रवाह मानो किसी गहन प्रेमकाव्य का आवाहन है। यह केवल स्याही का विस्तार नहीं है, यह उस अदृश्य तरलता का बहाव है जो विचारों के अन्धकार में घुलकर, आलोक में परिणत होती है , साक्षात् : चित्रगुप्त जी ! कलम, वह सजीव साधन है जो विचारों के अबोध प्रवाह को समझता है, उसे धरती पर लाने का माध्यम बनता है। दूसरी ओर दवात, वह स्त्री है जो अपनी गहराई में स्याही की तरह उर्वरता को संजोए रखती है। इन दोनों का मिलन, एक रहस्यमयी रात्रि में दो आत्माओं के संगम के समान है। यह संयोग, इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड की विराटता में अपनी छोटी-सी जगह बनाता है, लेकिन वही छोटी जगह असीमित संभावनाओं से भरी होती है।
दवात के भीतर छुपी स्याही एक ऐसा यथार्थ है, जिसे समझना मनुष्य की साधना का विषय है। स्याही, जैसे रक्त का एक प्रवाह, संकल्पना और विचार का प्रतीक है। यह केवल एक रंग का बहाव नहीं, बल्कि हर शब्द, हर वाक्य के माध्यम से एक नई रचना का आवाहन है। सृजनशीलता को प्रकट करने के लिए लेखक अपनी कलम के माध्यम से दवात में डूबकर गहराई को छूता है, फिर उठता है, और शब्दों के उस अंतहीन विस्तार की ओर बढ़ता है, जो उसे असीम रचनात्मकता तक ले जाता है।
दवात की गहराई में जैसे पुरातन रागों का वास है, उसमें छुपा असीम सृजनात्मकता का अनंत स्रोत मानो मनुष्य की कल्पनाओं की कोई अनदेखी भूमि है। कलम उस भूमि से उत्पन्न होने वाली हर सोच को खींचता है, और दवात उसे अपनी स्याही से पोषित करती है। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक शब्द वह नीर बनता है, जो प्यास को शांत करता है, अज्ञान को ज्ञान के प्रकाश में परिवर्तित करता है। यह केवल सृजन नहीं, यह एक साधना है, जिसमें विचार और भाव दोनों की पूर्णता निहित होती है।
कलम के प्रत्येक स्पर्श में, प्रत्येक हरकत में, दवात का सामीप्य भासित होता है। जब कलम स्याही से भरकर कागज़ पर उतरती है, तब वह अपने भीतर उस संपूर्ण ब्रह्मांड की गाथा को संजोए होती है। यह स्याही का बहाव नहीं, यह आत्मा का बहाव है। वह लेखक के हृदय की सृजनशीलता, उसकी अदृश्य कल्पनाओं को दृष्टिगत करने का प्रयत्न है। कलम का यह सृजनात्मक संग्राम किसी योद्धा का समर है, जहाँ शब्द जैसे हथियार बनते हैं और दवात की स्याही उसका रक्त।
दवात के भीतर जो स्याही है, वह समय की गहराइयों में उतरने वाला एक गूढ़ रहस्य है। यह सृजनात्मकता का प्रतीक है जो क्षणिक है, परंतु उस क्षण में असीमित संभावनाओं का समावेश है। जिस प्रकार नदी का प्रवाह एक दिशा में बहता है, उसी प्रकार स्याही का प्रवाह विचारों के उस प्रवाह को कागज़ पर उतारता है। लेकिन इस प्रवाह में रचनात्मकता का वह स्पर्श है, जो हर एक व्यक्ति की अलग पहचान बनाता है। प्रत्येक लेखक के लिए, प्रत्येक पाठक के लिए, यह सृजन की अनुभूति अलग होती है, क्योंकि प्रत्येक का हृदय अलग लय में धड़कता है।
कलम और दवात का यह सजीव संबंध, वह स्पर्श, वह प्रेरणा, यह अनन्त रहस्य का वह क्षण है, जो एक अमर कृति को जन्म देने की क्षमता रखता है। यह केवल शब्दों का संकलन नहीं है, यह हृदय का आवेग है, यह मनुष्य के भीतर की गहराई से उभरता एक तरल प्रेम है। कलम का कागज़ पर चलना, दवात की स्याही का उस पर बिखरना, यह केवल एक भौतिक प्रक्रिया नहीं, यह एक आध्यात्मिक यात्रा है।
।। दो ।।
सृजन का यह कृत्य मात्र बौद्धिक अभिव्यक्ति से कहीं अधिक है। यह आत्मा की यात्रा का वह बिंदु है, जहाँ विचारों की असंख्य धाराएँ एक रूपाकार धारण करती हैं और कागज़ पर चिरकालिकता का आधार बनाती हैं। कागज़ पर स्याही का यह बहाव समय के निर्बाध प्रवाह को स्थिर करने का प्रयास है। शब्दों के माध्यम से यह मानो उस क्षण को पकड़ने की कोशिश है, जो कभी पकड़ा नहीं जा सकता। कलम के स्पर्श में वह गूढ़ता है, जो संकल्पनाओं को अभिव्यक्ति के शिखर पर ले जाती है।
कलम और दवात के इस मिलन में एक अद्भुत श्रद्धा निहित है। यह किसी देवता की उपासना से कम नहीं। जब कलम कागज़ पर पहली बार उतरती है, तब मानो वह एक पूजारी के समान एक नई सृष्टि की संरचना करती है। स्याही का वह पहला बूँद, वह पवित्र जल के समान है, जो नए सृजन का आरंभ करता है। हर बूँद में, हर धारा में, जीवन का एक स्पंदन है, एक चेतना का स्पर्श है। यह चेतना मात्र विचारों की अभिव्यक्ति नहीं है, यह मानवता का गीत है, वह गीत जो मनुष्य के आदिम स्वर को अनंत समय तक गूंजाता रहता है।
कलम, मात्र एक उपकरण नहीं, वह कवि की आत्मा का विस्तार है। वह उसकी सोच, उसके भाव, उसकी कल्पना का सजीव स्वरूप है। कलम का कार्य केवल शब्दों को आकार देना नहीं है, बल्कि उसे एक अर्थ प्रदान करना है, उसे एक दिशा देना है। यह एक प्रकार की अलौकिक ऊर्जा का प्रवाह है, जो दवात से निकलकर कागज़ पर फैलती है। जब कलम अपने इस यात्रा पर होती है, तो मानो एक दुनिया से दूसरी दुनिया की ओर बढ़ती है। वह एक नई भाषा का आवाहन करती है, एक नई कहानी का निर्माण करती है।
दवात की गहराई में, छुपी हुई स्याही, किसी शांत सरोवर के समान है, जिसमें स्मृतियों और कल्पनाओं का भंडार समाया होता है। जैसे किसी पुराने बाग़ीचे में नदियों का संगम होता है, उसी प्रकार दवात के भीतर की स्याही और कलम का स्पर्श, कल्पनाओं को नई ऊँचाई प्रदान करता है। यह एक प्रकार का रहस्योद्घाटन है, एक गूढ़ रहस्य की खोज है, जिसमें रचनात्मकता की सभी सीमाओं को पार करने की क्षमता होती है।
कलम-दवात का यह संबंध उस अनकही कहानी को व्यक्त करता है, जिसे कोई शब्द व्यक्त नहीं कर सकते। यह मनुष्य के भीतर की गहराई को, उसकी अनुभूतियों को, उसकी भावनाओं को उजागर करने का एक माध्यम है। कलम और दवात का यह संगम अनंत प्रेरणाओं का स्रोत है, जो अनवरत बहती रहती है।
इस बहने में जो सृजनात्मकता है, वह एक प्रकार का समर्पण है, एक प्रकार का त्याग है। इस त्याग में केवल आत्मसंतोष नहीं, बल्कि मानवता की सेवा की भावना भी निहित है। प्रत्येक लेखक, प्रत्येक कवि, अपनी रचना के माध्यम से केवल अपने विचारों को नहीं, बल्कि उस सामूहिक चेतना को अभिव्यक्त करता है, जो सम्पूर्ण मानवता की है। कलम का यह नमन, दवात की यह साधना, यह किसी अलौकिक प्रक्रिया से कम नहीं।
कलम-दवात के इस सजीव संगम में, वह अनवरत प्रवाह है, जो हर क्षण नये विचारों को जन्म देता है। यह प्रवाह असीम है, अनंत है, और यही इसकी सच्ची सृजनात्मकता है।
।। तीन।।
वंदे वाणी विनायकौ। वाणी, शब्दों की अनन्त यात्रा का उद्गम है और विनायक, सृजनात्मकता के मार्ग का उद् घाटक। कलम और दवात के प्रतीक में यह अनूठा संगम साकार होता है, जो उस परम शक्ति की अभिव्यक्ति है, जिससे प्रत्येक सृजनात्मक कृति का जन्म होता है। जब कलम दवात में डूबकर कागज पर अपने स्वरुप को बिखेरती है, तब यह मानो शब्दों का एक दिव्य अनुष्ठान है, जिसमें वाणी की अधिष्ठात्री देवी का आह्वान और विनायकत्व का प्राकट्य होता है।
कलम और दवात का यह सरल, किन्तु अत्यंत प्रभावकारी संयोजन मात्र लेखन का साधन नहीं, अपितु एक गूढ़ दार्शनिक संवाद है। कलम का स्याही में डूबना और फिर धीरे-धीरे कागज पर उतरना, यह केवल भौतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि सृजन का एक आध्यात्मिक यात्रा-पथ है। यहाँ सृजन की आत्मा निहित होती है, जो जीवन के हर क्षण में छिपे अर्थों को उजागर करती है। वाणी की देवी, जिनका प्रत्येक शब्द जीवन की जीवंतता में संजीवनी का संचार करता है, कलम और दवात के माध्यम से अपने अभिन्न रूप में प्रवाहित होती हैं।
‘वंदे वाणी विनायकौ’ का उच्चारण मात्र एक वंदन नहीं, अपितु सृजन के मूल तत्त्वों की आराधना है। वाणी, शब्द की वह शक्ति है, जो प्रत्येक विचार को भाषा में ढालने का सामर्थ्य रखती है। वाणी के बिना विचार निर्जीव हैं और विनायक की कृपा के बिना सृजन की गहनता को साधा नहीं जा सकता। कलम दवात के माध्यम से यह दोनों शक्तियाँ जब एक साथ संयोग करती हैं, तब सृजन की वह धारा प्रवाहित होती है, जो जीवन के मर्म को अभिव्यक्त करने का सामर्थ्य रखती है।
कलम का दवात में डूबना समर्पण का प्रतीक है। जब यह दवात की स्याही को अपने भीतर समेटती है, तब यह मानो जीवन के विविध रंगों को समाहित कर लेती है। दवात का अर्थ है वह कुंड, जो जीवन के अनुभवों, भावनाओं, विचारों और कल्पनाओं की स्याही से भरा होता है। यह जीवन के हर उस अनुभव का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे लेखक अपनी आत्मा में अनुभव करता है। दवात वह स्रोत है, जिसमें भावनाएँ, स्मृतियाँ, विचार, और संवेदनाएँ एकत्र होती हैं। और कलम का दवात में डूबना इस संग्रह को आकार देने का प्रारम्भ है।
कलम और दवात का यह संबंध मात्र एक संवाद नहीं, अपितु एक अर्चना का रूप है। जब कलम कागज पर लिखती है, तो वह केवल शब्दों का आकार नहीं देती, बल्कि वह हर शब्द के माध्यम से जीवन का एक नया रूप रचती है। यह उस सृजनात्मकता की शक्ति है, जो ‘ वाणी व विनायक में निहित है। वाणी की शक्ति और विनायक की अनुकम्पा के बिना यह सृजन अधूरा है। वाणी वह माध्यम है, जो शब्दों को एक नया जीवन देती है, और विनायक की कृपा उस जीवन को गहनता और संजीवता से भर देती है।
कलम से निकले शब्द मात्र संकेत नहीं होते, वे उस अनुभव के प्रतीक होते हैं, जो लेखक ने अपने भीतर संवेदनाओं के रूप में जिया होता है। हर शब्द के पीछे एक गूढ़ अर्थ छिपा होता है, जो पाठक के मनोमस्तिष्क में एक विशेष अनुभूति को जन्म देता है। यह अनुभूति पाठक के भीतर एक नई चेतना का संचार करती है। जब वाणी और विनायक एकरूपीकरण प्राप्त होता है, तब प्रत्येक शब्द सजीव हो उठता है। यह शब्द मात्र अपने बाह्य रूप में सीमित नहीं रहते, वे अपने भीतर एक ऐसी ऊर्जा को धारण करते हैं, जो पाठक के मन में एक नई दृष्टि का संचार करती है।
वाणी और विनायक के इस संयोग में शब्दों का महत्व अद्वितीय हो जाता है। शब्द, जीवन का प्रतिबिम्ब हैं, वे उस प्रत्येक अनुभूति को दर्शाते हैं, जो मानव मन में उठती है। प्रत्येक शब्द का चयन, उसका अर्थ, उसकी ध्वनि, उसके भाव—सब कुछ मिलकर एक संजीवित अनुभूति का निर्माण करते हैं। यह अनुभूति, उस रहस्य को उजागर करती है, जो जीवन की हर छोटी-बड़ी घटनाओं में निहित होता है। कलम-दवात के इस संयोग में जो सृजनात्मकता उत्पन्न होती है, वह जीवन के अर्थों को समझने और उनके गूढ़ तत्त्वों को उजागर करने का माध्यम बनती है।
यह भी सत्य है कि प्रत्येक शब्द का अर्थ तब तक अधूरा रहता है, जब तक वह वाक्य का अंग नहीं बनता। वाक्य, शब्दों का वह क्रम है, जो विचार को संपूर्णता प्रदान करता है। वाक्य में शब्दों का मिलन, विचारों का एक क्रमबद्ध संचार है। इस प्रकार कलम-दवात के माध्यम से उत्पन्न प्रत्येक वाक्य उस गूढ़ संवाद का हिस्सा बन जाता है, जो लेखक और पाठक के बीच अदृश्य रूप से चल रहा होता है। वाक्य, उस सम्प्रेषण की प्रक्रिया का सार है, जिसमें सृजनात्मकता का मूल तत्व निहित होता है। वाणी की दिव्यता और विनायक की कृपा से, यह वाक्य पाठक को जीवन के उन गूढ़ तथ्यों का अनुभव कराते हैं, जो सामान्य दृष्टि से अदृश्य रहते हैं।
कलम और दवात का यह सृजनात्मक प्रवाह न केवल शब्दों का, बल्कि सम्पूर्ण जीवन का एक प्रतिबिम्ब है। यह जीवन की वह धारा है, जो हमें उन रहस्यमयी अर्थों तक ले जाती है, जो केवल भाषा के माध्यम से ही संभव है। भाषा, वाणी की वह देन है, जो जीवन के अनगिनत पहलुओं को प्रकट करने में सहायक होती है। जब हम ‘वंदे वाणी विनायकौ’ का स्मरण करते हैं, तब यह केवल वाणी और विनायक की वंदना नहीं, बल्कि उस सृजनात्मकता का आह्वान है, जो हमारे भीतर एक नई चेतना का संचार करती है।
कलम-दवात के माध्यम से उत्पन्न सृजनात्मकता वाणी की दिव्यता और विनायकत्व का प्रतिरूप है। कलम का दवात में डूबना और फिर कागज पर शब्दों का रूप ग्रहण करना, यह एक पवित्र क्रिया है।
।। चार।।
मानव हृदय की समस्त ऊर्जाएँ, उसके गहरे भाव और कल्पनाएँ कलम और दवात के इस संगम में ढलती हैं। इस अचेतन प्रक्रिया का रहस्य यह है कि जैसे ही लेखक कलम उठाता है, वह अपनी चेतना को उस कालातीत स्रोत से जोड़ता है, जो प्रत्येक विचार और प्रत्येक भावना का मूल है। दवात की स्याही और कलम का संपर्क, उस आत्मिक धरातल पर एक संवाद स्थापित करता है, जहाँ हर शब्द अपने आप में सजीव हो उठता है। यह केवल कागज़ पर लिखे हुए प्रतीकों का समुच्चय नहीं है, बल्कि जीवन की उन अनसुनी ध्वनियों का अवतरण है, जिन्हें भाषा में रूपांतरित कर पाने की क्षमता मानवता को अनोखी दिव्यता प्रदान करती है।
यह सोचने का विषय है कि जब कलम स्याही में डूबती है तो क्या वह स्वयं को किसी अन्य, अनजानी शक्ति में विलीन नहीं कर देती? यह केवल कलम और स्याही का बाह्य संपर्क नहीं, यह लेखक और पाठक के बीच आत्मा का एक पुल है। यह वह धारा है, जो एक चेतना से दूसरी चेतना तक बहती है और उन्हें जोड़ती है। इस संपर्क में, लेखक का व्यक्तित्व कहीं विलीन हो जाता है, वह अपने अस्तित्व को सृजन के आनंद में समर्पित कर देता है। कलम का यह साधनारूप, उसकी व्यक्तिगत सीमाओं को तोड़कर, उसे सार्वभौमिकता की ओर ले जाता है।
कलम का दवात में डूबना एक प्रतीक है, मानो वह सृष्टि की मूलधारा से जुड़कर अपने विचारों को पवित्र कर रही हो। यह प्रक्रिया उस अनंत ऊर्जा के साथ एकाकार होने का प्रयास है, जो सभी सृजन के केंद्र में स्थित है। कलम और दवात का यह मिलन जीवन के आदिम सत्य और उसकी मर्मस्पर्शी व्याख्या का माध्यम बनता है। शब्दों का यह प्रवाह केवल तथ्यों की अभिव्यक्ति नहीं है, यह जीवन की असीम सम्भावनाओं का उद् घाटन है। प्रत्येक विचार, जो इस प्रवाह से निकलता है, एक आत्मा के प्रकाश का अंश होता है, जिसमें ब्रह्मांड का संपूर्ण ज्ञान और उसकी गहनता समाहित होती है।
दवात की स्याही में बसी हुई प्रत्येक बूँद, सृष्टि के संपूर्ण सौंदर्य और दर्द का संगम है। यह स्याही मानो प्रकृति के उन गूढ़ रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए है, जिन्हें लेखक अपने शब्दों में प्रकट करने का प्रयास करता है। यह स्याही केवल रंग नहीं, यह वह तत्व है जो हर विचार को रूप और आकार देता है। जैसे ही कलम इस स्याही से भरती है, वह एक ऐसी शक्ति से युक्त हो जाती है, जो पाठक के हृदय में संजीवनी का संचार कर देती है। यह सृजन का वह क्षण है, जिसमें लेखक और पाठक दोनों ही अपनी निजी सीमाओं को लांघकर, उस अनंत धारा में बहने लगते हैं जो सृजन की आत्मा है।
कलम और दवात का यह संबंध अनंत काल से मानवता की सेवा में संलग्न है। यह विचार और भावनाओं का वह मूक संवाद है, जो समय की सीमाओं से परे जाकर विभिन्न पीढ़ियों को जोड़ता है। यह संवाद एक ऐसा अनुभव है, जो किसी युग विशेष का नहीं, बल्कि समस्त युगों का है। इस संबंध में वह निस्सीमता है, जो इसे सजीव बनाती है । कलम जब दवात की स्याही में डूबकर लिखती है तो मानो वह अपने आप में इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के सागर को सहेजती है। प्रत्येक बूँद में अतीत की अनकही कहानियाँ, वर्तमान की संवेदनाएँ और भविष्य की संभावनाएँ समाहित होती हैं।
कलम के इस सजीव प्रवाह में वह अनिर्वचनीय ऊर्जा है, जो शब्दों को जीवन देती है। यह वह जादुई शक्ति है, जो शब्दों को मात्र प्रतीकों से जीवंत अस्तित्व में बदल देती है। जब यह स्याही कागज़ पर उतरती है, तो एक नई दुनिया का सृजन होता है, जिसमें भावनाओं की गहराई, विचारों की ऊँचाई और कल्पना की अनंतता सभी मिलती हैं। यह सृजन का वह जादू है, जो पाठक को लेखक के अनुभवों में डुबो देता है, उसे एक ऐसी यात्रा पर ले जाता है जहाँ शब्द और अर्थ के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है। यह वह क्षण है, जिसमें लेखक और पाठक दोनों ही एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं और उनके बीच एक अनकहा संवाद स्थापित होता है।
इस सृजनात्मक प्रक्रिया में दवात, मात्र एक पात्र नहीं, वह उस स्त्री की तरह है, जो अपनी गहराई में जीवन को संजोए रहती है। जैसे किसी स्त्री का हृदय प्रेम और वात्सल्य का अक्षय स्रोत है, वैसे ही दवात की गहराई में स्याही, जो प्रत्येक शब्द को जीवन का आशीर्वाद प्रदान करती है। यह स्याही लेखक के विचारों को रूप, गंध, और स्पर्श देती है, उसे सजीव बनाती है। यह केवल रंग का बहाव नहीं, यह लेखक की आत्मा का विस्तार है, जो कागज़ पर आकार लेकर पाठक के मन को छूता है।
कलम का यह कर्तव्य, सृजन के उस पुनीत कार्य को निभाना है, जो जीवन के प्रत्येक पक्ष को आलोकित करता है। यह केवल भाषा का खेल नहीं, यह जीवन के उन गूढ़ रहस्यों को उजागर करने का प्रयास है, जो हर व्यक्ति के अनुभव में होते हैं, परंतु उन्हें शब्दों में ढालने का साहस बहुत कम में होता है। कलम का कागज़ पर चलना उस मौन का उल्लंघन है, जिसे भाषा की सीमा मान लिया गया था। यह उस मौन का उद्घाटन है, जो मानवता की सबसे अनमोल धरोहर है। यह एक ऐसा संवाद है, जो आत्मा की गहराई से निकलकर आत्मा तक पहुँचता है और अनंत तक गूँजता रहता है।
यह अकारण नहीं है कि लेखक, कवि और विचारक इस साधारण प्रतीत होने वाले कलम और दवात को अपने जीवन की सबसे मूल्यवान संपत्ति मानते हैं। इन दोनों के बीच का यह पवित्र मिलन उस रचनात्मक ऊर्जा को जन्म देता है, जो सभी महान कृतियों का आधार है। कलम और दवात का यह संबंध जैसे किसी नृत्य की ताल है, जो अपने प्रत्यक्ष रूप में तो स्थिर प्रतीत होती है, परंतु भीतर की लय में एक अनंत गतिशीलता है। यह लय वह चेतना है, जो हर शब्द, हर वाक्य, हर पंक्ति में अनुगूँजित होती है।
कलम और दवात के इस मिलन का यह प्रतीकात्मक अर्थ है कि सृजन मात्र बाहरी रूप से नहीं, बल्कि आंतरिक गहराई से आता है। यह उस मन की आवाज़ है, जो कभी बाहर प्रकट नहीं होती। यह उस शांति की खोज है, जो शब्दों में रहकर भी अनकही रह जाती है। कलम और दवात के इस सजीव संबंध में वही अनंतता है, वही अमरता है, जो सभी सृजनात्मक कार्यों का मूल स्रोत है। यह सृजनात्मकता का बहाव, वह अमर धारा है जो न केवल साहित्य, बल्कि समस्त कला और मानवता की धरोहर बन जाती है।
कलम-दवात के इस प्रवाह में वह सजीवता है, जो समय की सीमा को पार करके, हर युग में नये-नये रूपों में प्रकट होती रहती है। यह वह अमर प्रेम है, जो भाषा, संस्कृति, और समाज की सीमाओं से परे जाकर, एक सार्वभौमिक संवाद स्थापित करता है। जब तक मानवता के भीतर सृजन की यह अग्नि जलती रहेगी, तब तक कलम और दवात का यह अटूट संबंध बना रहेगा। यह संबंध एक अनवरत सृजन की यात्रा का प्रतीक है, जो हर विचार, हर भावना, हर स्मृति को अपने भीतर समेटे हुए, अनंत की ओर बढ़ता है।
।। पाँच ।।
मानव हृदय की अपार गहराई में बसने वाले भाव और कल्पनाएँ, विचारों की अंतहीन सरिताएँ, जब कागज़ पर उतरने का प्रयत्न करती हैं, तब वह एक अनोखी प्रक्रिया होती है – मानो आकाश से अमृत बूँद-बूँद धरती पर गिर रही हो। यह प्रक्रिया अत्यंत पावन है। कलम और दवात का मिलन मानो शब्दों के आकाश और अर्थों की धरती का अभिसार है, जो एक सजीव धारा बनाकर कागज़ पर प्रवाहित होता है। यह सृजनात्मकता का वह पल है, जहाँ शब्द, अर्थ, वाक्य, सम्प्रेषण और संचार, सभी एक-दूसरे में विलीन होकर एक अनोखी यात्रा पर निकलते हैं।
कलम और दवात – ये दोनों मात्र साधन नहीं, बल्कि सृजन की जड़ें हैं, जो विचारों को प्रकट करने की शक्ति रखते हैं। जिस प्रकार सागर की लहरें अपने भीतर छुपी गहराइयों को किनारों तक लाती हैं, उसी प्रकार कलम और दवात की स्याही, आत्मा की असीम गहराइयों से अनकहे शब्दों को बाहर लाती है। कलम जब दवात की स्याही में डूबती है, तब वह केवल एक स्पर्श नहीं, बल्कि एक अदृश्य संवाद है। यह संवाद उस अज्ञेय शक्ति से है जो सृजन के मूल में स्थित है। कलम और दवात का यह संबंध मानो शब्दों के अनंत ब्रह्मांड का स्रोत है, जहाँ विचारों का संचार अपनी स्वतंत्र यात्रा पर निकल पड़ता है।
स्याही की हर बूँद अपने आप में एक रहस्य है, एक गूढ़ भाषा, जो शब्दों में ढलकर एक नई पहचान प्राप्त करती है। इस पहचान में शब्द केवल माध्यम नहीं हैं, बल्कि एक सम्पूर्ण जीवंतता का परिचायक हैं। हर शब्द के भीतर एक आत्मा होती है, एक गूँज होती है, जो उसे उसके अर्थ से जोड़ती है। शब्द का यह अर्थ केवल बाह्य नहीं है, यह उस अदृश्य शक्ति का प्रतिरूप है, जो उसे एक पहचान देती है। जब एक शब्द स्याही के माध्यम से कागज़ पर उतरता है, तो वह मात्र ध्वनि नहीं होता, वह एक जीवंत अनुभूति होती है। यह अनुभूति उस अनुभव का भाग बन जाती है, जिसे पाठक पढ़ते ही अपने अंदर महसूस करता है।
वास्तव में, कलम-दवात का यह संबंध उस सम्प्रेषण का उद्गम है, जो मनुष्य की आत्मा को भाषा में ढालता है। सम्प्रेषण केवल शब्दों के आदान-प्रदान का साधन नहीं, यह एक चेतना का प्रसार है। यह एक ऐसी गूढ़ प्रक्रिया है, जिसमें प्रत्येक शब्द एक वाहक की तरह व्यवहार करता है, वह वाहक जो अपने साथ विचारों और भावनाओं का भार उठाए चलता है। सम्प्रेषण की इस धारा में संचार की शक्ति निहित होती है, जो सजीवता को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। कलम का दवात में डूबना एक ऐसे संचार का प्रतीक है, जहाँ विचारों की एक अदृश्य यात्रा आरंभ होती है।
वाक्य का गठन, विचारों की उस धारणा का प्रतीक है, जहाँ शब्दों का मिलन अर्थों को सजीव बनाता है। वाक्य, शब्दों के समूह में वह पुल है, जो पाठक और लेखक के बीच की दूरी को समाप्त करता है। वाक्य की इस शक्ति में एक अद्भुत आकर्षण है, जो भाषा को एक नई पहचान देता है। यह आकर्षण उस अनकही भाषा का प्रतिरूप है, जो केवल भावनाओं में ही अनुभव किया जा सकता है। जब कलम से वाक्य कागज़ पर उतरते हैं तो वह एक प्रकार का चमत्कार है, एक प्रकार का सौंदर्य है, जो भाषा के मूल में स्थित है।
कलम-दवात का यह अद्वितीय मिलन शब्द, अर्थ, वाक्य, सम्प्रेषण और संचार को एक नई ऊँचाई प्रदान करता है। यह केवल स्याही का प्रवाह नहीं, बल्कि एक आत्मिक प्रवाह है।
।। छ: ।।
जब हम लेखन के साधनों पर विचार करते हैं, तब एक अद्भुत यात्रा का अनुभव होता है—एक यात्रा, जो कागज और कलम से प्रारंभ होकर आधुनिक गजटों तक विस्तारित होती है। प्राचीन काल में, जब हाथों में एक कलम होती थी और सामने एक दवात, तब मानो सृजन की एक पावन धारा प्रवाहित होती थी। कलम और दवात का यह संबंध एक जीवन्त संवाद था, जिसमें शब्द मात्र ध्वनि या संकेत न होकर, आत्मा की गहराइयों से उभरी अभिव्यक्तियाँ थे। कलम का स्याही में डूबना, और फिर धीरे-धीरे कागज़ पर अपना स्वरूप बिखेरना, यह एक दिव्य अनुभव था। सृजनात्मकता की यह प्रक्रिया जैसे एक अनुष्ठान का रूप ले लेती थी, जिसमें लेखक और उसकी रचना के बीच एक आत्मिक संपर्क स्थापित होता था।
आज समय ने एक लम्बी छलांग लगाई है। लैपटॉप, मोबाइल, टैब और अन्य गजट लेखन के माध्यम बन गए हैं। यह उपकरण, जिनके भीतर हजारों पन्नों का भंडार समाहित हो सकता है, एक नवीन युग की अभिव्यक्ति का प्रतीक बन चुके हैं। किन्तु प्रश्न यह है कि क्या इन यंत्रों के माध्यम से सृजनात्मकता की वह सहजता, वह दिव्यता, जो कलम-दवात के प्रयोग में निहित थी, बनाए रखी जा सकती है? क्या यह यंत्र शब्दों को उसी प्रकार अर्थवान बना सकते हैं, जैसे एक सजीव कलम का दवात के साथ संबंध उन्हें देता था?
यह कहना उचित है कि सृजन का आधार माध्यम में नहीं, विचार में निहित होता है। यदि लेखक के हृदय में सृजनात्मकता का स्रोत प्रबल है तो वह किसी भी माध्यम से प्रवाहित हो सकती है। किन्तु यह भी सत्य है कि माध्यम का प्रभाव लेखक की मानसिकता और भावनाओं पर पड़ता है। जब हम कलम से लिखते हैं तो हमारी गति धीमी होती है, हम सोचने का अधिक अवसर पाते हैं, शब्द और अर्थों को गहराई से महसूस कर पाते हैं। कलम और कागज के इस संबंध में एक प्रकार की रुकावट होती है, जो हमें स्वयं से जोड़ने में सहायक होती है। इस रुकावट में ही सृजन की वह गहनता है, जो शब्दों को एक स्थायित्व प्रदान करती है।
वहीं, दूसरी ओर, आधुनिक यंत्रों की तीव्रता, उनकी सहजता हमें विचारों के प्रवाह में बिना रुकावट के ले जाती है। लैपटॉप या टैब पर टाइप करते समय विचारों की गति तेज हो जाती है, शब्द अपने आप एक लय में प्रकट होते हैं। इसमें सृजनात्मकता का एक अलग रूप उभरता है, एक प्रकार का प्रवाहमय अनुशासन। यह उपकरण उस लय को जन्म देते हैं, जो निरंतरता और सहजता को प्रोत्साहित करती है। किन्तु इसमें वह ठहराव और गहराई नहीं, जो कलम से लिखते समय होती थी। यह सृजन के लिए एक सजीव चुनौती बनकर सामने आता है—क्या यह सम्भव है कि लेखक इन उपकरणों का प्रयोग करते हुए भी अपने विचारों में वह गहराई उत्पन्न कर सके, जो कलम से लिखते समय प्राप्त होती थी?
लैपटॉप और मोबाइल जैसे उपकरणों में यह सुविधा है कि वे विचारों को संकलित करने, उन्हें व्यवस्थित करने और उनकी संपादना करने में सहायक होते हैं। किन्तु यह केवल तकनीकी सहायता है। सृजनात्मकता के वास्तविक क्षण में, लेखक के मन में वह अद्वितीय संवेदना होनी चाहिए, जो किसी भी माध्यम में विचारों को जीवंत बना सके। इन उपकरणों का प्रयोग करते समय लेखक को एक विशिष्ट संतुलन साधना होता है—विचारों की सहजता के साथ-साथ गहराई का भी ध्यान रखना होता है। यह संतुलन लेखक की सृजनात्मकता को न केवल बढ़ाता है, बल्कि उसे एक नई दिशा भी प्रदान करता है।
कलम और दवात की उस पुरातन प्रक्रिया का एक विशेष गुण यह था कि वह हमें जीवन के साथ गहरे से जोड़ती थी। कलम से लिखना, जीवन के उन अदृश्य धागों को महसूस करने का एक साधन था, जो हमें प्रकृति और समाज से जोड़ते थे। इस लेखन में एक आत्मीयता थी, एक स्वाभाविकता थी। आज, लैपटॉप या मोबाइल से लिखते समय वह आत्मीयता कम हो जाती है, क्योंकि हम सीधे-सीधे जीवन की उस सहजता से कट जाते हैं। हम तकनीकी उपकरणों के माध्यम से लिखते हैं, जो हमारे और हमारे विचारों के बीच एक अदृश्य दीवार बना देते हैं। इस दीवार को पार करना लेखक का एक नया संघर्ष बन गया है।
यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि कलम-दवात और आधुनिक गजट के बीच का यह अंतर, उस परिवर्तन का भी प्रतीक है, जो सृजन के स्वरूप में हो रहा है। पहले, लेखन में एक प्रकार की गम्भीरता और गंभीरता होती थी, किन्तु आज उसमें सहजता और प्रवाह का महत्व अधिक हो गया है। कलम से लिखना, जीवन के प्रति एक अर्चना का भाव था, परन्तु आधुनिक उपकरणों के माध्यम से लेखन में वह तत्व अधिक प्रमुख हो गया है, जो विचारों को तीव्रता से व्यक्त कर सके।
इस बदलाव का एक और पक्ष यह है कि लैपटॉप, मोबाइल, और टैब जैसे उपकरण हमें विचारों को साझा करने की असीम संभावनाएँ प्रदान करते हैं। इन माध्यमों के माध्यम से, विचार विश्वव्यापी बन जाते हैं। अब एक लेखक अपने विचारों को लाखों लोगों तक पहुँचाने की क्षमता रखता है। सोशल मीडिया, ब्लॉग्स, और ई-बुक्स के माध्यम से सृजनात्मकता की एक नयी परिधि उभर रही है। इसमें वह स्वच्छंदता है, जो कलम और दवात के माध्यम से सम्भव न थी। यह यंत्र उस संवाद को अधिक गतिशील बना देते हैं, जो लेखन के माध्यम से शुरू होता है। किन्तु क्या इस संवाद में वही गहराई और आत्मीयता है, जो कलम और दवात के माध्यम से सम्भव थी?
यहाँ यह स्वीकार करना आवश्यक है कि हर माध्यम की अपनी विशेषताएँ हैं। कलम और दवात के साथ जुड़ी हुई स्मृतियाँ, उनकी संजीवता, उनकी आत्मीयता को आधुनिक यंत्र पुनःस्थापित नहीं कर सकते। किन्तु लैपटॉप और मोबाइल जैसे उपकरण उस सम्प्रेषण और संचार की नई धाराएँ भी खोलते हैं, जो समय के साथ-साथ बढ़ती जाएंगी। लेखक का यह कार्य है कि वह इन उपकरणों का सही प्रयोग कर सके और अपनी सृजनात्मकता को नए आयाम दे सके।
कलम-दवात की सृजनात्मकता, लैपटॉप, मोबाइल और टैब जैसे उपकरणों की आधुनिकता में भी समाहित हो सकती है। सृजनात्मकता के इस प्रवाह में एक अनोखा संतुलन साधने की आवश्यकता होती है। यह संतुलन हमें यह सिखाता है कि सृजन का माध्यम चाहे जो भी हो, उसकी आत्मा वह गहनता और संवेदना है, जो लेखक के भीतर से उत्पन्न होती है।