-मनोज कुमार श्रीवास्तव
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका अपने इतिहास में पहली बार दिवालिया हो गया है।पिछले 74 साल में सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है।ये अपना कर्ज नहीं चुका पाया है।इसे कर्ज चुकाने के लिए 30 दिन का समय मिला था जो समय पर कर्ज नहीं चुका पाया।कोरोना महामारी,ऊर्जा की बढ़ती कीमतों और लोगों को खुश करने के लिए टैक्स में छूट से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई है।
श्रीलंका साल 1948 को ब्रिटेन से अलग होकर स्वतन्त्र देश के रूप में स्थापित हुआ था।लेकिन स्वतन्त्रता के बाद आज आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।उसकी आर्थिक स्थिति सबसे ज्यादा खराब हो गई।उसे घटते विदेशी मुद्रा भंडार की कमी से निपटने के लिए लगभग चार अरब डॉलर की जरूरत है।
श्रीलंका में महंगाई, बिजली कटौती, खाने-पीने की वस्तुओं की जबरदस्त किल्लत से लोगों की हालत काफी खराब हो गई है, लोग बेहाल हैं।सबसे ज्यादा किल्लत ईंधन की हो गई है।वहाँ के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे संसद को सम्बोधित करते हुए कहा कि श्रीलंका अब दिवालिया हो चुका है और इससे फिलहाल निजात पाना मुश्किल है।अभी यह संकट 2023 तक जारी रहेगा।
श्रीलंका के प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने यह भी कहा है कि देश जिन समस्याओं का मुकाबला कर रहा है उसमें पहली मुद्दा ईंधन संकट है।इसके अलावे भोजन की भी उपलब्धता नही हो पा रही है।उन्होंने यह भी कहा है कि हमारे देश को किसी न किसी समय इस संकट का सामना तो करना हीं था।हाल के वैश्विक संकटों के कारण यह स्थिति और ज्यादा विकट हो गई है
विक्रमसिंघे ने यह भी कहा है कि ये स्थिति सिर्फ हमारे देश की नहीं है बल्कि यह अन्य देशों को भी प्रभावित कर रहा है।इस वैश्विक संकट से भारत और इंडोनेशिया भी प्रभावित है।उन्होंने संसद में यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ बेलआउट(राहत) पैकेज पर समझौता के बाद उनका देश भारत,चीन और जापान जैसे मित्र देशों के साथ एक दानदाता सम्मेलन आयोजन करेगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार श्रीलंका में 80 % जनता महंगाई और खाने-पीने की चीजों की किल्लत के कारण,भोजन दोनों समय नहीं कर पा रही है।भूख से तड़पने के लिए मजबूर हैं।वहाँ अभी पेट्रोल-डीजल की उपलब्धता नहीं के बराबर है।
मुद्रा भण्डार की कमी से निपटने के लिए अभी 4 अरब डॉलर की सख्त जरूरत है।प्रधानमंत्री का कहना है कि देश आर्थिक मंदी का शिकार हो गया है यहां खाद्य, ईंधन और दवाओं की किल्लत अभी बनी रहेगी।अगस्त में श्रीलंका आईएमएफ से राहत सम्बन्धी पैकेज के लिए बातचीत करेगा।
प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने यह भी कहा है कि हम एक दिवालिया देश की स्थिति में हैं।ऐसे में हमें आईएमएफ को कर्ज चुकाने के एक अलग टिकाऊ योजना पेश करनी होगी।क्योंकि उस योजना से आईएमएफ के सन्तुष्ट होने के बाद हैं आर्थिक मदद मिलेगी।
श्रीलंका पर मार्च 2022 तक कुल 21.6 लाख करोड़ रुपया के कर्ज का बोझ बढ़कर हो गया है।प्रधानमंत्री ने कहा है कि 2021 के अंत में सरकार का कुल बोझ 17.5 ट्रिलियन रुपया था जो मार्च 2022 तक बढ़कर 21.6 ट्रिलियन हो गया है।देश आर्थिक मंदी में चल गया है।बड़े नाजुक दौर से देश गुजर रहा है। विदेशी मुद्रा की कमी कई सालों से चल रही है और देश का विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो चुका है।
आर्थिक बदहाली के कारण देश के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है।देश में पिछले कई दिनों से बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं।इन प्रदर्शनों में शामिल लोग राष्ट्रपति गोटाबापा राजपक्षे और उनके परिवार के खिलाफ नारे लगाते हुए देखे गए।उनकी मांग है कि सत्ता पर काबिज राजपक्षे परिवार सत्ता छोड़े। बीबीसी वर्ल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के गवर्नर पी.नन्दलाल वीरसिंघे से पूछा गया कि उनका देश दिवालिया हो चुका है तो उनका जबाब था ,”हमारी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है।हमने पहले ही कहा था कि जबतक कर्ज को रिस्ट्रक्चर नहीं किया जाता तो आप इसे प्रीएक्टिव डिफाल्ट कह सकते हैं।”
किसी देश को दिवालिया तब घोषित किया जाता है जब वहां की सरकार दूसरे देशों या अंतराष्ट्रीय संगठनों से किया गया उधार या उसकी क़िस्त समय पर नहीं चुका पाती ।ये किसी भी देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है।