पंचक किसे कहते हैं, पंचक कब और क्यो लगते हैं तथा उनका फल क्या होता है.?

धर्म ज्योतिष

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक माह में पांच ऐसे दिन आते हैं जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। ऐसी भी मान्यता या धारणा है कि इन दिनों में मरने वाले व्यक्ति परिवार या स्थान के अन्य पांच लोगों को भी साथ ले जाते हैं। आओ जानते हैं पंचक के पांच रहस्य।

पंचक क्या है और क्यों और कब लगते हैं :-
पांच नक्षत्र के समूह को पंचक कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पंचक काल कहलाता है। इस तरह चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पंचकों को जन्म देता है। यही पंचक कहलाता है।

प्रमाण:-

धनिष्ठार्द्धोत्तरं पश्च ऋक्षेष्वेषु त्यजेद् बुधः।
याम्यदिग्गमनं शय्या पूरणं गेहगोपनम् ॥
स्तम्भोच्छ्रायं प्रेतदाहं तृणकाष्ठादि संग्रहम् ।
भवेत् पञ्चगुणं चात्र जातं लब्धं मृतं मतम् ॥
(बृहदहोड़ाचक्र- श्लोक-23, 24)

अर्थात :- धनिष्ठा का उत्तरार्ध, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती ये पञ्चक नक्षत्र हैं। इसमें स्तम्भ गाड़ना, प्रेतदाह, तृणकाष्ठ संग्रह, दक्षिण दिशा की यात्रा, चारपाई तथा घर का छाना वर्जित है। क्योंकि शास्त्रकारों ने पञ्चक का पाँचगुणा फल माना है। जैसे :– एक शव का दाह करने पर पांच शव का दाह करना पड़ता है। इसी तरह वर्णित प्रत्येक कार्य का पंचगुणिन फल होता है॥

पंचक के प्रकार जानिए :-

1.रविवार को पड़ने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है।
2.सोमवार को पड़ने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है।
3.मंगलवार को पड़ने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है।
4.शुक्रवार को पड़ने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है।
5.शनिवार को पड़ने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है।
6.इसके अलावा बुधवार और गुरुवार को पड़ने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है। इन दो दिनों में पड़ने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं।

पंचक के नक्षत्रों का प्रभाव:-

  1. धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
  2. शतभिषा नक्षत्र में कलह होने की संभावना रहती है।
  3. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में रोग बढ़ने की संभावना रहती है।
  4. उतरा भाद्रपद में धन के रूप में दंड होता है।
  5. रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना रहती है।

पंचक में नहीं करते हैं ये पांच कार्य :-

अग्नि-चौरभयं रोगो राजपीडा धनक्षतिः।

संग्रहे तृण-काष्ठानां कृते वस्वादि-पंचके॥’
(- मुहूर्त-चिंतामणि)

अर्थात:- पंचक में तिनकों और काष्ठों के संग्रह से अग्निभय, चोरभय, रोगभय, राजभय एवं धनहानि संभव है।
और,,,,
1.लकड़ी एकत्र करना या खरीदना,

  1. मकान पर छत डलवाना,
  2. शव जलाना,
  3. पलंग या चारपाई बनवाना और दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना।

जिस प्रकार ज्योतिष शास्त्र में उक्त कार्य पंचक काल मे वर्जित किये गए हैं। उसी प्रकार यदि आपातकाल पड़ता है अर्थात अत्यंत आवश्यक उक्त कार्य आन पड़े तो ज्योतिष शास्त्र उसका समाधान भी निकालता है। ↓

समाधान :- यदि लकड़ी खरीदना अनिवार्य हो तो पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम का हवन कराएं। यदि मकान पर छत डलवाना अनिवार्य हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करें। यदि पंचक काल में शव दाह करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पांच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी आवश्य जलाएं। इसी तरह यदि पंचक काल में पलंग या चारपाई लाना जरूरी हो तो पंचक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करें। अंत में यह कि यदि पंचक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढ़ाकर यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। ऐसा करने से पंचक दोष दूर हो जाता है।

पंचक में मौत का समाधान :-

गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में या स्थानीय पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है। आइये जानते हैं पंचक में मृत्यु का किस पर और क्या असर पड़ता है –

मृत्यु पर पंचक के लक्षण :-

‘धनिष्ठ पंचकं ग्रामे शद्भिषा कुलपंचकम्।
पूर्वाभाद्रपदा रथ्याः चोत्तरा गृहपंचकम्।
रेवती ग्रामबाह्यं च एतत् पंचक लक्षणम्॥’

अर्थात :- शास्त्रों के अनुसार धनिष्ठा से रेवती पर्यंत इन पांचों नक्षत्रों की क्रमशः पांच श्रेणियां हैं- १. ग्रामपंचक, २. कुलपंचक, ३. रथ्यापंचक, ४. गृहपंचक एवं ५. ग्रामबाह्य पंचक।

विद्वानों के अनुसार :-

१. धनिष्ठा (ग्रामपंचक) में जन्म-मरण हो, तो उस गांव-नगर में पांच और जन्म-मरण होता है।
२. शतभिषा (कुलपंचक) में जन्म-मरण हो तो उसी कुल में जन्म-मरण होता है।
३. पूर्वा भा०(रथ्यापंचक) में जन्म-मरण हो तो उसी मुहल्ले-टोले में जन्म-मरण होता है।
४. उत्तरा भा०(गृहपंचक) में जन्म-मरण हो तो उसी घर में जन्म-मरण होता है।
५. और रेवती (ग्रामबाह्य) में जन्म-मरण हो तो दूसरे गांव-नगर में पांच बच्चों का जन्म एवं पांच लोगों की मृत्यु संभव है।

ध्यान देंगे,,,,
मान्यतानुसार किसी नक्षत्र में किसी एक के जन्म से घर आदि में पांच बच्चों का जन्म तथा किसी एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर पांच लोगों की मृत्यु होती है। मरने का कोई समय नहीं होता। ऐसे में पांच लोगों का मरना कुछ हद तक संभव है, परंतु उत्तरा भाद्रपदा को गृहपंचक माना गया है और प्रश्न है कि किसी घर की पांच औरतें गर्भवती होंगी तभी तो पांच बच्चों का जन्म संभव है।

पंचक में जन्म-मरण और पांच का सूचक है। जन्म खुशी है और गृह आदि में विभक्त इन नक्षत्रों के तथाकथित फल पांच गृहादि में होने वाले हैं, तो स्पष्ट है कि वहां विभिन्न प्रकार की खुशियां आ सकती हैं। पांच मृत्युओं का अभिप्राय देखें तो पांच गृहादि में रोग, कष्ट, दुःख आदि का आगम हो सकता है। कारण व्यथा, दुःख, भय, लज्जा, रोग, शोक, अपमान तथा मरण- मृत्यु के ये आठ भेद हैं। इसका मतलब यह कि जरूरी नहीं कि पांच की मृत्यु ही हो पांच को किसी प्रकार का कोई रोग, शोक या कष्ट हो सकता है।

पंचक का उपाय :-

‘प्रेतस्य दाहं यमदिग्गमं त्यजेत् शय्या-वितानं गृह-गोपनादि च।’ (मुहूर्त-चिंतामणि)

पंचक में मरने वाले व्यक्ति की शांति के लिए गरुड़ पुराण में उपाय भी सुझाए गए हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य विद्वान पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि विधि अनुसार यह कार्य किया जाए तो संकट टल जाता है। दरअसल, पंडित के कहे अनुसार शव के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।

दूसरा यह कि गरुड़ पुराण अनुसार अगर पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसमें कुछ सावधानियां बरतना चाहिए। सबसे पहले तो दाह-संस्कार संबंधित नक्षत्र के मंत्र से आहुति देकर नक्षत्र के मध्यकाल में किया जा सकता है। नियमपूर्वक दी गई आहुति पुण्यफल प्रदान करती हैं। साथ ही अगर संभव हो दाह संस्कार तीर्थस्थल में किया जाए तो उत्तम गति मिलती है।

-आचार्य मोहित पांडेय, लखनऊ

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