23 दिसम्बरः राष्ट्रीय किसान दिवसःअन्नदाता (किसान)सुखी तो देश सुखीः चौधरी चरण सिंह

आलेख

         –       मनोज कुमार श्रीवास्तव

किसान दिवस भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की याद में प्रति वर्ष मनाया जाता है।इनका जन्म 23 दिसम्बर1902 को मेरठ के हापुड़ में हुआ था।इन्हें किसानों के सबसे बड़ा मसीहा के तौर पर भी जाना जाता है।साल 2001 में भारत सरकार इनके सम्मान में हर साल 23 दिसंबर को किसान दिवस मनाने का फैसला लिया। चौधरी चरण सिंह को भारतीय किसानों की स्थिति में सुधार लाने का श्रेय दिया जाता है।खुद किसान परिवार से होने के कारण वे किसानों की समस्या और स्थिति से अच्छी तरह से वाकिफ थे इसलिए उन्होंने किसानों के लिए सुधार कार्य किये थे।

       उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं केंद्र में वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने गांवों और किसानों को प्राथमिकता में रखकर बजट बनाया था।उनका मानना था कि खेती के केन्द्र में हैं किसान इसलिए उसके साथ कृतज्ञता से पेश आना चाहिए और उसके श्रम का प्रतिफल अवश्य मिलना चाहिए।उनका कहना था कि भारत का सम्पूर्ण विकास तभी होगा जब किसान,मजदूर, गरीब सभी खुशहाल होंगे।1950 के दशक में क्रांतिकारी भूमि सुधार कानूनों का मसौदा तैयार किया और 1959 में सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की समाजवादी और सामूहिक भूमि राजनीति का विरोध किया।1967 में कांग्रेस से अलग हो गए और यूपी के के पहले गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।

     चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में हीं चरण सिंह को सौंप दिया था।वे हमेशा किसानों,पिछड़ों और गरीबों की राजनीति की।वे जातिवाद को गुलामी की जड़ मानते थे और कहते थे कि जातिप्रथा के रहते बराबरी, सम्पन्नता और राष्ट्र की सुरक्षा नहीं हो सकती ।किसान न हो टी हमारा अस्तित्व नहीं रह पाएगा।किसान खेतों में मेहनत कर जो फसल उपजाते हैं उन्हीं से हमारा पेट भरता है।

        आजादी के बाद चरण सिंह पूर्णतः किसानों के लिए लड़ने लगे।इनके मेहनत का हीं फल था कि 1952 में “जमींदारी उन्मूलन विधेयक “पारित हो सका था।इस विधेयक ने सदियों से खेतों में खून-पसीना बहाने वाले किसानों को जीने का मौका दिया।दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चरण सिंह यूपी के 27,000 पटवारियों के त्यागपत्र स्वीकार कर “लेखपाल” पद का सृजन कर नई भर्ती कर किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति दिलाई साथ हीं प्रशासनिक धाक भी जमाई।यूपी के किसान उन्हें अपना मसीहा मानते थे।किसानों में सम्मान होने के कारण उन्हें किसी भी चुनाव में हार का मुंह नहीं देखना पड़ा।

       राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसानों को देश का सरताज माना था।आजादी के बाद ऐसे नेता कम हीं देखने को मिले जिन्होंने किसानों के विकास के लिए निष्पक्ष रूप से कम किया।चरण सिंह की नीति किसानों एवं गरीबों को ऊपर उठाने की थी।वे हमेशा साबित करने की कोशिश किया। बगैर किसानों को खुशहाल किये देश,प्रदेश का विकास नहीं हो सकता।किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल दिया।

      ज्यादा उपज देकर भी देश का किसान बदहाल है।खाद,उन्नत बीज से किसान ने उपज तो बढ़ा ली है लेकिन अपनी पैदावार को खपाने के लिए साधन का अभाव है। पहले महाराष्ट्र से किसानों की आत्महत्या की खबरें सुर्खियों में रहती थी अब देश के हर कोने से ऐसी मनहूस खबरे आती हैं। बिहार और यूपी के किसान खेती छोड़ दिल्ली, मुम्बई का रुख कर रहे हैं तो इसके लिए सीधे तौर पर सरकार जिम्मेदार है।हमने उदारवाद की राह पर चलकर स्वदेशी बड़े,मझोले और छोटे-छोटे उद्दोग धंधों का गला घोंट दिया।

     खेती सिर्फ घाटे का सौदा रह गई है।बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने हमारे बाजार पर कब्जा कर खेतों पर नियंत्रण शुरू कर दिया है।सरकार की आंखों में कृषि क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी खटक रही है।वैसे देखा जाय तो आज के हालात के लिए हमारी योजनायें जिम्मेदार हैं।हमने विकास के नेहरू-राजीव-मनमोहन सिंह मॉडल तो अपनाया लेकिन उसमें चरण सिंह के किसान मॉडल को शामिल करना भूल गए।

       23 दिसम्बर1978 को किसान ट्रस्ट भी बनाया ताकि देश में किसानों के मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके।1967 तक कांग्रेस के साथ जुड़े रहे।1967-1977 तक भारतीय लोकदल से जुड़े रहे।1977-1980 के बीच जनता पार्टी एवं 1980-1987 के दौरान लोकदल से जुड़े रहे।

        चरण सिंह का मानना था कि देश में जो चीजें आसानी से बनायी जा सकती है उन्हें विदेशों से मंगाना या उनमें विदेशी हस्तक्षेप देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगा।वे देश को एक वैकल्पिक अर्थनीति, दर्शन और विचार दिया।लघु व कुटीर उद्दोगों कामगारों, बुनकरों और दस्तकारों की बात करते थे।इसके उलट हम अंतराष्ट्रीय बाजार विशेषकर अमेरिका के दबाव में आते चले गये।आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत पर राज कर रही है।रही सही कमर चीन ने पूरी कर दी है।

    वे चाहते थे कि किसान देश का मालिक बने यानी ऐसी अर्थनीति बनाई जाए जिसमें कृषि सबसे ऊपर हो।वे 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री रहे।29 मई 1987 को दिल्ली में दुनिया को अलविदा कह गये।उनके याद में एक स्मारक जो राजघाट पर बनाया गया जिसे “किसान घाट” कहा जाता है।वे पूरे देश में किसानों के उत्थान और कृषि के विकास की दिशा में उनके काम के लिए “चैम्पियन ऑफ इंडियाज पीजेंट्स “की उपाधि दी गई।इस दिन देश में किसानों  और उनके काम का जश्न मनाते है यह भारत के कृषि सुधारों में पूर्व प्रधानमंत्री के योगदान का प्रतीक है।इस दिवस को मनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य है कि कृषि क्षेत्र की नवीनतम सिखों के साथ समाज के किसानों को सशक्त बनाने का विचार देता है।

 

 

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