– प्रो.नीतू सिन्हा
बसंत पंचमी जीवन और प्रकृति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। बसंत पंचमी का पर्व हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोग भी मनाते हैं और देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। बसंत ऋतू आते ही जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगतीं हैं। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने की पंचमी तिथि पर देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा भी होती है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है। पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्य ग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। लेकिन बसंत पंचमी में विशेष तौर पर विद्या की देवी सरस्वती की पूजा का विधान है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी से बसंत ऋतू प्रारम्भ होती है। बसंत पंचमी पर माता सरस्वती को पीले फूल अर्पित किए जाते हैं। मंदिरों के साथ साथ स्कूलों, कॉलेजों और सभी शैक्षणिक संस्थानों में मां सरस्वती की पूजा की जाती है। छात्र समेत सभी लोग विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा करते हैं और माता से शिक्षा का आशिर्वाद प्राप्त करते हैं। बसंत पंचमी होली के पर्व के आगमन का भी प्रतिक है।
ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। देवी सरस्वती विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
वसंत पंचमी का पर्व उत्तर और दक्षिण भारत में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। झारखंड, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा की जाती है, जबकि पंजाब में बसंत पंचमी को फसल उत्सव के रूप में मनाते हैं। बसंत पंचमी पर लोग पीले कपड़े, पीले फूल और पीली मिठाई का उपयोग सरस्वती पूजा में करते हैं।
बसंत पंचमी से जुड़ी एक लोककथा के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य की रचना की। अपनी सर्जना से वह संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता था। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा थी। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।
ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है कि प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेध है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और इस तरह भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा होने लगी।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नई उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है।
(इंटर कॉलेज, डुमरांव)