‘मिशन मोड में पर्यटन का विकास’ किया जा रहा हैः PM

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दिल्लीः   भारत में हमें टूरिज्म सेक्टर को नई ऊंचाई देने के लिए Out of The Box सोचना होगा और Long Term Planning करके चलना होगा। जब भी कोई टूरिस्ट डेस्टिनेशन को विकसित करने की बात आती है तो कुछ बातें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, जैसे उस स्थान का Potential क्या है?  Ease of Travel के लिए वहां की Infrastructural Need क्या है, उसे कैसे पूरा करेंगे? इस पूरे टूरिस्ट डेस्टिनेशन को  प्रमोशन के लिए हम और क्या-क्या नए तरीके अपना सकते हैं। इन सारे सवालों का जवाब आपको भविष्य का रोडमैप बनाने में बहुत मदद करेगा। अब जैसे हमारे देश में टूरिज्म का पोटेंशियल बहुत ज्यादा है। कोस्टल टूरिज्म, Beach टूरिज्म, Mangrove टूरिज्म, हिमालयन टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, वाइल्डलाइफ टूरिज्म, Eco टूरिज्म, हेरीटेज टूरिज्म, स्पीरिचुअल टूरिज्म, वेडिंग डेस्टिनेशन, कॉन्फ्रेंसस के द्वारा टूरिज्म, स्पोर्टस के द्वारा टूरिज्म ऐसे अनेक क्षेत्र हैं। अब देखिए रामायण  सर्किट, बुद्ध सर्किट, कृष्णा सर्किट, नार्थ ईस्ट सर्किट, गांधी सर्किट, सब हमारे महान गुरू परंपरा हुई उनके सारे तीर्थ क्षेत्र पूरा पंजाब भरा पड़ा है। हमें इन सभी को ध्यान में रखते हुए मिलकर के काम करना ही है। इस वर्ष के बजट में देश में कंपीटिटिव स्पीरिट से, चैलेंज रूट से देश के कुछ टूरिस्ट डेस्टिनेशन्स को डेवलपमेंट के लिए select करने की बात कही गई है। ये चैलेंज हर स्टेकहोल्डर को साथ मिलकर प्रयास करने के लिए प्रेरित करेगा। बजट में टूरिस्ट डेस्टिनेशन्स इसके एक holistic development पर भी फोकस किया गया है। इसके लिए अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स को हम कैसे एंगेज कर सकते हैं, इस पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए।

अब आज का भारत इस स्थिति को बदल रहा है। जब यात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ती हैं, तो कैसे यात्रियों में आकर्षण बढ़ता है, उनकी संख्या में भारी वृद्धि होती है और ये भी हम देश में देख रहे हैं। जब वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निमाण नहीं हुआ था, तो उस समय साल में 70-80 लाख के आसपास ही लोग मंदिर के दर्शन के लिए आते थे। काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निमाण होने के बाद पिछले साल वाराणसी जाने वाले लोगों की संख्या 7 करोड़ को पार कर गई है। इसी तरह जब केदारघाटी में पुनर्निमाण का काम नहीं हुआ था, तो वहां भी सालाना 4-5 लाख लोग ही दर्शन के लिए आते थे। लेकिन पिछले साल 15 लाख से ज्यादा श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन के लिए गए। अगर मेरा गुजरात का पुराना अनुभव है, वहां का भी अनुभव आपसे शेयर करता हूं। गुजरात में पावागढ़ करके एक तीर्थ क्षेत्र है, बड़ौदा के पास। जब वहां का  पुनर्निमाण नहीं हुआ था, पुरानी हालत थी, तो मुश्किल से 2 हजार, 5 हजार, 3 हजार इतनी संख्या में लोग आते थे लेकिन वहां जीर्णोद्धार हुआ, कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर बना, सुविधाएं बनी तो उस पावागढ़ मंदिर के पुनर्निमाण के बाद, नव निर्माण के बाद करीब-करीब 80 हजार लोग वहां औसतन आते हैं। यानि सुविधाएं बढ़ीं तो इसका सीधा प्रभाव, यात्रियों  की संख्या पर पड़ा, टूरिज्म को बढ़ाने के लिए उसके surrounding जो चीजें होती हैं वो भी बढ़ने लग गई हैं। और ज्यादा संख्या में लोगों के आने का अर्थ है, स्थानीय स्तर पर कमाई के ज्यादा अवसर, रोजगार-स्वरोजगार के ज्यादा मौके। अब देखिए दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा- स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का भी उदाहरण दूंगा। ये प्रतिमा बनने के बाद एक साल के भीतर ही 27 लाख लोग उसे  देखने के लिए पहुंचे। ये दिखाता है कि भारत के विभिन्न स्थलों में अगर Civic Amenities बढ़ाई जाएं, वहां डिजिटल कनेक्टिविटी अच्छी हो, होटल-हॉस्पिटल अच्छे हों, गंदगी का नामो-निशान ना हो, बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर हो, तो भारत के टूरिज्म सेक्टर में कई गुना वृद्धि हो सकती है।

ये वो समय है जब हमारे गांव भी टूरिज्म का केंद्र बन रहे हैं। बेहतर होते इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण हमारे दूर-सुदूर के गांव, अब टूरिज्म के मैप पर आ रहे हैं। केंद्र सरकार ने बॉर्डर किनारे पर बसे जो  गांव हैं वहां वाइब्रेंट बार्डर विलेज योजना शुरू की है। ऐसे में होम स्टे, छोटे होटल, छोटे रेस्टोरेंट हो ऐसे अनेक बिजनेस के लिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा सपोर्ट करने का काम हम सबको मिलकर के करना है।

आप बेहतर सोल्युशंस के साथ सामने आएंगे। और मैं एक और बात कहना चाहता हूं जैसे टूरिज्म के लिए मान लीजिए हर राज्य एक या दो बहुत ही अच्छे टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर जोर लगाता है, एक शुरूआत कैसे कर सकते हैं। हम तय करें कि स्कूल से बच्चे जो टूरिस्ट के रूप में निकलते हैं, हर स्कूल टूरिस्ट करते ही हैं, यात्रा के लिए निकलते ही हैं 2 दिन, 3 दिन के कार्यक्रम बनाते हैं। तो आप तय कर सकते हैं के भई फलाने डेस्टिनेशन में शुरू में हर दिन 100 स्टूडेंट्स आएंगे, फिर per day 200 आएंगे, फिर per day 300 आएंगे, फिर per day 1000 आएंगे। अलग-अलग स्कूल के आए वो खर्चा करते ही हैं। यहां जो लोग हैं, उनको लगेगा कि इतनी बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं चलो ये व्यवस्था खड़ी करो, ये दुकान खड़ी करो, पानी की व्यवस्था करो, अपने आप शुरू हो जाएगा। अगर मान लीजिए हमारे सभी राज्य तय करें कि नार्थ-ईस्ट के अष्ट लक्ष्मी हमारे 8 राज्य हैं। हम हर वर्ष 8 यूनिवर्सिटी हर राज्य में तय करें और हर यूनिवर्सिटी नार्थ-ईस्ट के एक राज्य में 5 दिन, 7 दिन टूर करेगी, दूसरी यूनिवर्सिटी दूसरे राज्य में टूर करेगी, तीसरी यूनिवर्सिटी तीसरे राज्य में टूर करेगी। आप देखिए आपके राज्य में 8 यूनिवर्सिटी ऐसी होगी जहां के हमारे युवकों को नार्थ-ईस्ट के 8 राज्यों का पूरा अता-पता होगा।

2024 में अगर हमारे यहां से शादियों के लिए वेडिंग डेस्टिनेशन होगा तो तमिलनाडु में होगा और तमिल पद्धति से हम शादी करवाएंगे। घर में 2 बच्चें हैं तो कोई सोचेगा कि एक हम असमिया पद्धति से शादी करवाना चाहते हैं, दूसरे कि हम पंजाबी पद्धति से शादी करवाना चाहते हैं। दुनिया के इतने देशों को हम टारगेट करेंगे। हम वहां की एम्बेसी को लिटरेचर भेजेंगे, वहां की एम्बेसी को हम कहेंगे कि देखिए आप टूरिस्टों के लिए मदद चाहते हैं तो हम ये-ये मदद करते हैं। हमें पूरी व्यवस्था हमारे जो टूर ऑपरेटर्स हैं उनसे भी मेरा आग्रह है कि आपको नए सिरे से सोचना होगा हमें हमारी एप्स, हमारी डिजिटल कनेक्टिविटी इन सबको बहुत आधुनिक बनाना होगा और हमारा कोई टूरिस्ट डेस्टिनेशन ऐसा नहीं होना चाहिए जिसकी एप्स यूएन की सभी languages में न हो और भारत की सभी languages में न हो। अगर हम सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी में हमारी वेबसाइट बना देंगे तो संभव नहीं होगा। इतना ही नहीं हमारे टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर साइनेजिज सभी भाषाओं के होने चाहिए। अगर तमिल का कोई सामान्य परिवार आया है, बस लेकर के चला है और वहां पर उसको तमिल में अगर साइनेजिज मिल जाते हैं तो वह बड़ी आसानी से पहुँच जाता है। छोटी-छोटी चीजें हैं जी, हम एक बार अगर इसके महात्मय को समझेंगे तो हम अवश्य रूप से टूरिज्म को वैज्ञानिक तरीके से आगे बढ़ा सकते हैं।

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