राजमाता कर्णावती का राखी व हुमायूँ द्वारा रक्षा के झूठ..!

आलेख


✒ समता कुमार (सुनील)
चित्तौड़गढ की रानी द्वारा हुमायूं को राखी भेजने की कथा का तथ्यात्मक विश्लेषण :
“गर्म रक्त चमड़ी की गन्ध याद रखना हिंदुओं..!!”
राखी का ऐतिहासिक झूठ : सन् 1535 दिल्ली का शासक है बाबर का बेटा हुमायूँ..! …. उसके सामने देश में दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं — पहला अफगान शेर खाँ और दूसरा गुजरात का शासक बहादुरशाह… पर तीन वर्ष पूर्व सन 1532 में चुनार दुर्ग पर घेरा डालने के समय शेर खाँ ने हुमायूँ का अधिपत्य स्वीकार कर लिया है और अपने बेटे को एक सेना के साथ उसकी सेवा में दे चुका है।
अफीम का नशेड़ी हुमायूँ शेर खाँ की ओर से निश्चिन्त हो गया , हाँ पश्चिम से बहादुर शाह का बढ़ता दबाव उसे कभी कभी विचलित करता रहा..!
हुमायूँ के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष यह था कि वह घोर नशेड़ी था। इसी नशे के कारण ही वह पिछले तीन वर्षों से दिल्ली में ही पड़ा हुआ है और उधर बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाता चला जा रहा है। वह मालवा को जीत चुका है और मेवाड़ भी उसके अधीन है। पर अब दरबारी अमीर, सामन्त और उलेमा हुमायूँ को चैन से बैठने नहीं दे रहे। बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति से सब भयभीत हैं। आखिर हुमायूँ उठता है और मालवा की ओर बढ़ता है।
इस समय बहादुरशाह चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाले हुए है। चित्तौड़ में किशोर राणा विक्रमादित्य के नाम पर “राजमाता कर्णावती” शासन कर रहीं हैं। उनके लिए यह विकट घड़ी है। सात वर्ष पूर्व “खानवा के युद्ध” में महाराणा सांगा के साथ अनेक योद्धा सरदार वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। रानी के पास कुछ है, तो विक्रमादित्य और उदयसिंह के रुप में दो अबोध बालक और एक राजपूतनी का अदम्य साहस। सैन्य बल में चित्तौड़ बहादुर शाह के समक्ष खड़ा भी नहीं हो सकता, पर साहसी राजपूतों ने बहादुर शाह के समक्ष शीश झुकाने से इनकार कर दिया है।
इधर बहादुर शाह से उलझने को निकला हुमायूँ अब चित्तौड़ की ओर मुड़ गया है। अभी वह सारंगपुर में है तभी उसे बहादुर शाह का सन्देश मिलता है, जिसमें उसने लिखा है– “चित्तौड़ के विरुद्ध मेरा यह अभियान विशुद्ध जेहाद है। जबतक मैं काफिरों के विरुद्ध जेहाद पर हूँ, तबतक मुझ पर हमला गैर-इस्लामिक है। अतः हुमायूँ को चाहिए कि वह अपना अभियान रोक दे।”
हुमायूँ का बहादुर शाह से कितना भी बैर हो पर दोनों का मजहब एक है, सो हुमायूँ ने बहादुर शाह के जेहाद का समर्थन किया है। अब वह सारंगपुर में ही डेरा जमा के बैठ गया है, आगे नहीं बढ़ रहा।
इधर चित्तौड़ की राजमाता ने कुछ राजपूत नरेशों से सहायता मांगी है। पड़ोसी राजपूत नरेश सहायता के लिए आगे आये हैं, पर वे जानते हैं कि बहादुरशाह को हराना अब सम्भव नहीं। पराजय निश्चित है, सो सबसे आवश्यक है चित्तौड़ के भविष्य को सुरक्षित करना। इसी लिए रात के अंधेरे में बालक युवराज उदयसिंह को पन्ना धाय के साथ गुप्त मार्ग से निकाल कर बूंदी पहुँचा दिया जाता है।
अब राजपूतों के पास एकमात्र विकल्प है वह युद्ध, जो पूरे विश्व में केवल वही करते हैं। शाका और जौहर…!!
आठ मार्च 1535, राजपूतों ने अपना अद्भुत जौहर दिखाने की ठान ली है। सूर्योदय के साथ किले का द्वार खुलता है। पूरी राजपूत सेना माथे पर केसरिया पगड़ी बांधे निकली है। आज सूर्य भी रुक कर उनका शौर्य देखना चाहता है, आज हवाएं उन अतुल्य स्वाभिमानी योद्धाओं के चरण छूना चाहती हैं, आज धरा अपने वीर पुत्रों को कलेजे से लिपटा लेना चाहती है, आज इतिहास स्वयं पर गर्व करना चाहता है, आज भारत स्वयं के भारत होने पर गर्व करना चाहता है।
इधर मृत्यु का आलिंगन करने निकले वीर राजपूत बहादुरशाह की सेना पर विद्युतगति से तलवार भाँज रहे हैं, और उधर किले के अंदर महारानी कर्णावती के पीछे असंख्य देवियाँ मुह में गंगाजल और तुलसी पत्र लिए अग्निकुंड में समा रही हैं। यह जौहर है। वह जौहर जो केवल राजपूत देवियाँ जानती हैं। वह जौहर जिसके कारण भारत अब भी भारत है।
किले के बाहर गर्म रक्त की गंध फैल गयी है और किले के अंदर अग्नि में समाहित होती क्षत्राणियों की देहों की….!
पूरा वायुमंडल बसा उठा है और घृणा से नाक सिकोड़ कर खड़ी प्रकृति जैसे चीख-चीख कर कह रही है- “भारत की आने वाली पीढ़ियों ! इस दिन को याद रखना, और याद रखना इस गन्ध को। जीवित जलती अपनी माताओं के देह की गंध जब तक तुम्हें याद रहेगी, तुम्हारी सभ्यता जियेगी। जिस दिन यह गन्ध भूल जाओगे तुम्हें फारस होने में दस वर्ष भी नहीं लगेंगे…”
दो घण्टे तक चले युद्ध में स्वयं से चार गुने शत्रुओं को मार कर राजपूतों ने वीरगति पा ली है, और अंदर किले में असंख्य देवियों ने अपनी राख से भारत के मस्तक पर स्वाभिमान का टीका लगाया है। युद्ध समाप्त हो चुका था। राजपूतों ने अपनी सभ्यता दिखा दी, अब बहादुरशाह अपनी सभ्यता दिखायेगा।
अगले तीन दिनों तक बहादुर शाह की सेना चित्तौड़ दुर्ग को लुटती रही। किले के अंदर असैनिक कार्य करने वाले लुहार, कुम्हार, पशुपालक, व्यवसायी इत्यादि पकड़-पकड़ कर काटे गए। उनकी स्त्रियों को लूटा गया। उनके बच्चों को भाले की नोक पर टांग कर खेल खेला गया। चित्तौड़ को तहस नहस कर दिया गया।
और उधर सारंगपुर में बैठा बाबर का बेटा “हुमायूँ” इस जेहाद को चुपचाप देखता रहा, खुश होता रहा।
युग बीत गए पर भारत की धरती “राजमाता कर्णावती” के जलते शरीर की गंध नहीं भूली। फिर कुछ विदेशी टुकड़े पर पलना वाले गद्दार इतिहासकारों और वामपंथी लेखकों ने इस गन्ध को भुलाने के लिए भाई-चारा का झूठी एक कपोल कथा गढ़ी- “राजमाता कर्णावती ने हुमायूँ के पास राखी भेज कर सहायता मांगी थी।”
अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मुँह में तुलसी दल ले कर अग्निकुंड में उतर जाने वाली देवियाँ अपने पति के हत्यारे के बेटे से सहायता कभी नहीं मांगती..!!
अत: हे पार्थ..! राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना..!!

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