छात्राओं को दी गईं जानकारी संविधान की प्रस्तावना, मौलिक कर्तव्य एवं शिक्षा के अधिकार

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डुमरांव (बक्सर)ः महारानी उषारानी बालिका उच्च विद्यालय डुमरांव में भारतीय संविधान के तहत प्रस्तावना,मौलिक कर्तव्यों और शिक्षा के अधिकार विषय पर जिला विधिक सेवा प्राधिकार बक्सर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष आनन्द नन्दन सिंह,अवर न्यायाधीश सह सचिव देवेश कुमार के निर्देशन पर पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव एवं पीएलवी अनिशा भारती द्वारा आयोजित किया गया। मौके पर प्रधानाध्यापिका फरहत अफशां,मीरा कुमार मीरा,रवि प्रभात,कल्पना श्रीवास्तव, सुनील कुमार, राजलक्ष्मी शर्मा, विशाल कुमार, जितेन्द्र मिश्रा, अजय कुमार, अजय कुमार सिंह, श्रीराम आदि उपस्थित रहे।
पैनल अधिवक्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि प्रस्तावना को संविधान का परिचय-पत्र कहा जाता है।प्रस्तावना,भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करती है और लोगों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देती है।प्रस्तावना को सबसे पहले अमेरिकी संविधान में शामिल किया गया था इसके बाद कई देशों ने इसे अपनाया है।संविधान विशेषज्ञ नाना पालकीवाला ने संविधान की प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र कहा है।
प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है और इसे अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।संविधान की प्रस्तावना खूबसूरत शब्दों की भूमिका से बनी हुई है।इसमें बुनियादी आदेश,उद्देश्य और दार्शनिक भारत के संविधान की अवधारणा शामिल है। साल 1976 में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधन किया गया था जिसमें तीन शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था।
पैनल अधिवक्ता ने कहा कि मौलिक कर्तव्य नागरिकों में देश प्रेम की भावना बढ़ाने के साथ ही राष्ट्रीय विचारों को सृजित करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।मौलिक कर्तव्यों को राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण माना जाता है।मौलिक कर्तव्य, मौलिक अधिकारों का एक अभिन्न अंग है।इसकी आवश्यकता 1975-76 के आंतरिक आपातकाल के दौरान महसूस की गई थी।
1976 के 42 वें संशोधन अधिनियम 2002 के तहत इस सूची में 11 वां मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया था।अनुच्छेद 51 ए के तहत प्रत्येक भारतीय नागरिकों द्वारा पालन किये जाने वाले 11 मौलिक कर्तव्यों की चर्चा की गई है।यह अवधारणा पूर्व सोवियत संघ के संविधान से लिया गया है।
भारतीय संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 45 और 39 एफ में राज्य द्वारा वित्तपोषित शिक्षा का प्रावधान किया गया है।1993 में उन्नीकृष्णन जेपी बनाम आंध्रप्रदेश व अन्य राज्यों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय के साथ शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार बताया था।
इसके बाद तपस मजूमदार समिति द्वारा 1999 में अनुच्छेद 21ए को शामिल करने की अनुशंसा की वहीं 2002 में 86 वें संशोधन के साथ शिक्षा का अधिकार को भारतीय संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकार के रूप में जोड़ा गया।भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 ए के शामिल होने के बाद 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा मौलिक अधिकार बन गई।वहीं इसने शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का प्रावधान किया।
मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि साल 2009 का शिक्षा का अधिनियम 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा प्रदान करता है साथ ही यह स्कूल न जाने वाले बच्चों के लिए एक उपर्युक्त आयु से सम्बंधित कक्षा में भर्ती करने का प्रावधान भी करता है।इस अधिनियम के तहत केंद्र और राज्य के बीच जिम्मेदारियों को लेकर भी जानकारी दी गई।इन चीजों पर लगाता है रोक-शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन, बिना मान्यता प्राप्त विद्यालय, बच्चों के प्रवेश के लिए स्क्रीनिंग प्रक्रिया, प्रति व्यक्ति शुल्क तथा मानसिक और शारिरिक उत्पीड़न।

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