मनोज बाजपेयी की 100वीं फिल्म ‘भैया जी’

मनोरंजन

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता मनोज बाजपेयी ने ‘भैया जी’ के साथ अपने करियर की 100वीं पूरी कर ली है. वैसे, मोनज बाजपेयी की 100वीं फिल्म इससे और बेहतर हो सकती थी. खैर, फिल्म देखने के बाद इतना तो जरूर कह सकता हूं कि अभिनेता के अभिनय में कोई कमी नजर नहीं आई. अपूर्व सिंह कार्की के निर्देशन में बनी इस फिल्म में मनोज बाजपेयी एक ऐसी शख्स की भूमिका में हैं, जो किसी बाहुबली से कम नहीं है और लोग उन्हें ‘भैया जी’ के नाम से जानते हैं. फिल्म में उनके साथ एक्ट्रेस जोया हुसैन भी मुख्य भूमिका में हैं, और पर्दे पर मनोज के साथ उनकी केमिस्ट्री काफी जम भी रही है.

कहानी शुरू करने से पहले जरूरी है कि हम आपको रामचरण त्रिपाठी ‘भैया जी’ के बारे में पहले बता दें. दरअसल, ये मनोज बाजपेयी के लिए पहली बार ऐसा था कि उन्होंने इस तरह का किरदार निभाया, जिसमें वह एक बाहुबली की तरह नजर आते हैं. एक शक्तिशाली इंसान, जिसका नाम पूरे देशभर में फैला है. पहले मनोज आपको पर्दे पर एक्शन फाइट सीन करते भी दिखेंगे. उनका एक छोटा सा परिवार है, जिसमें उनकी छोटी मां (सौतेली मां) और एक छोटा भाई वेदांत (सौतेला भाई) है, जिसे वह अपनी जान से बढ़कर प्यार करते हैं.

फिल्म में जोया हुसैन ‘भैया जी’ की गर्लफ्रेंड की भूमिका में हैं, और फिल्म की शुरुआत दोनों की शादी की तैयारियों से ही होती है. दरअसल, दोनों 10 सालों से एक दूसरे के करीब थे और काफी उम्र हो जाने के बाद दोनों शादी करने का फैसला लेते हैं. फिल्म की कहानी बिहार से शुरू होती है और दिल्ली में खत्म. भैया जी के भाई वेदांत की दिल्ली में हत्या हो जाती है और हत्या करने वाला कोई और नहीं बल्कि दिल्ली का बाहुबली का बेटा होता है.

खैर, इस हत्या के मामले को पुलिस सड़क दुर्घटना में तब्दील कर देती है और इस केस को जल्द से जल्द रफा दफा करने की कोशिश करती है, लेकिन जब भैया जी को को पता चलता है कि उनके भाई की मौत सड़क दुर्घटना से नहीं, बल्कि उसकी हत्या की गई है. तब भैया जी अपना विक्राल रूप दिखाते हैं. अब भैया जी कैसे अपने भाई की मौत का बदला लेते हैं, ये जानने के लिए आपको सिनेमाघर जाकर पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी.

फिल्म की कहानी वैसे कमजोर नजर आती है, जिसमें आपको कुछ नया देखने को नहीं मिलेगा. 90 के दशक में आई कई ऐसी फिल्में थीं, जो बदले की आग पर बनी थी और इससे आपको भी कुछ वैसा ही महसूस होगा. फिल्म का फर्स्ट हाफ तो आपको सीट से हिलने भी नहीं देगा, जहां थोड़ी बहुत सस्पेंस के साथ-साथ एक्शन का डोज भी मिलेगा, लेकिन सेकंड हाफ आते-आते आप थक जाएंगे, क्योंकि सेकंड हाफ में फिल्म की कहानी काफी स्लो मोड में चली जाती है. हो सकता है सेकंड हाफ में आप फिल्म जल्दी खत्म होने का भी इंतजार करें.

अभिनय की बात करें, तो सारे किरदार आपका दिल जीत लेंगे. इस फिल्म के लिए मनोज बाजपेयी के साथ-साथ सारे कलाकरों ने अपने-अपने किरदार के साथ इंसाफ करते नजर आते हैं, लेकिन कहीं न कहीं निर्देशन में थोड़ी कमी जरूर दिखाई देती है. जिस तरह भैया जी को एक दमदार इंसान की तरह पेश किया गया, फिल्म में उस तरह उस किरदार के साथ इंसाफ नहीं किया गया. फिल्म के बीच में भैया जी को इधर-उधर भागना पड़ रहा है. फिल्म का विलेन उन्हें मारने के लिए खोज रहा है. एक भैया जी को एक आम आदमी के रूप में दिखाया जाता तो ये बात थोड़ी हजम भी हो जाती.

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