डॉ. आरके सिन्हा: देश के एकमात्र कायस्थ नेता जिन्होंने स्वजातीय वोटों का पुरे देश में नहीं होने दिया विभाजन, नरेंद्र मोदी की प्रचंड जीत के लिए लगा दिया जी जान और किया पटना, मुंबई, पुणे,बंगलौर समेत देश भर मे धुंआधार चुनाव प्रचार

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डॉ. सुरेन्द्र सागर, पटना (बिहार)-
देश मे सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव मे बिहार समेत कई राज्यों मे कई सीटों पर भाजपा और उसके सहयोगी  दल एनडीए के उम्मीदवारों को वोट विभाजन के कारण हार का मुंह देखना पड़ा और नरेंद्र मोदी के चल रहे लहर मे भी एनडीए  के परम्परागत वोटों के ध्रुवीकरण नहीं होने वजह  से भाजपा ही नहीं बल्कि एनडीए के कई बड़े दिग्गज चुनाव हार गए.भाजपा के कई राज्यों के बड़े नेताओं के साथ ही एनडीए से संबद्ध पार्टियों के प्रमुख नेता भी अपने कोर वोटरों के साथ साथ स्वजातीय वोटों का विभाजन होने से नहीं रोक सके. बावजूद इसके भारतीय जनता पार्टी की स्थापना से जुड़े बिहार भाजपा के एक बड़े नेता डॉ. आरके सिन्हा का अपने स्वजातीय वोटरों पर पकड़ का जलवा बरकरार रहा. पटना साहिब सहित बिहार और देश के कई राज्यों मे डॉ. आरके सिन्हा ने चुनाव प्रचार किया और कायस्थ समाज का एकमुश्त वोट भाजपा और एनडीए के प्रत्याशियों को दिलवा कर बिहार समेत देश की कई सीटें जिताकर नरेंद्र मोदी की झोली मे डाल दी. एक तरफ जहां काराकाट संसदीय सीट पर भोजपुरी फिल्मो के सुपरस्टार पवन सिंह के चुनाव लड़ने के बाद भाजपा के कोर वोटर माने जाने वाले राजपूत समाज भी एनडीए का साथ छोड़ स्वजातीय पवन सिंह के साथ चले गए वहीं एनडीए मे शामिल होकर राष्ट्रीय लोक मोर्चा के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे पार्टी के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा भी स्वजातीय वोटों को अपने पक्ष मे करने मे पूरी तरह फेल हो गए. उपेंद्र कुशवाहा को कुशवाहा जाति के लोगों ने काराकाट मे वोट नहीं दिया और एनडीए मे रहने और नरेंद्र मोदी लहर में भी वे चुनाव हार गए. कुशवाहा जाति का अपने आपको नेता मानने वाले उपेंद्र कुशवाहा काराकाट मे ही नहीं बल्कि आरा, बक्सर. सासाराम, औरंगाबाद, पाटलिपुत्र,जहानाबाद समेत कई सीटों पर कुशवाहा का वोट भाजपा और एनडीए को ट्रांसफर कराने मे सफल नहीं हो सके. पवन सिंह को भाजपा द्वारा ही खड़ा करने और उपेंद्र कुशवाहा को हराने की साजिश का सन्देश पुरे शाहाबाद में एनडीए का सूपड़ा साफ कर दिया जबकि मगध के औरंगाबाद, जहानाबाद और पाटलिपुत्र जैसी सीटें भी भाजपा और एनडीए हार गई. पूरा शाहाबाद साफ हो गया. एक गलत बयान की वजह से बक्सर मे मिथिलेश तिवारी  को ब्राम्हणो ने वोट नहीं दिया और वे भाजपा के टिकट पर लड़ने के बावजूद नरेंद्र मोदी लहर मे भी चुनाव हार गए तो उधर आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने की अफवाह मे भाजपा के वोटर्स शिवेश राम को वोट नहीं दे सके और वहाँ कांग्रेस की जीत हो गई.
बावजूद इसके भाजपा के संस्थापक सदस्य और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. आरके सिन्हा की वजह से कायस्थ समाज ने चुनाव मे बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और देश की सभी संसदीय सीटों पर जमकर भाजपा और एनडीए उम्मीदवारों के पक्ष मे मतदान किया. कायस्थ समाज के वोटर्स कहीं अपने संसदीय क्षेत्र के उम्मीदवार  के व्यवहार से नाराज भी थे तो डॉ. आरके सिन्हा ने उनको समझाया की उम्मीदवार को मत देखिये ऊपर नरेंद्र मोदी को देखिये और भाजपा और एनडीए उम्मीदवारों को एकमुश्त वोट देकर उन्हें जिताइये और दिल्ली मे नरेन्द्र मोदी को प्रचंड जीत के साथ तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाइये.सब सीट पर नरेंद्र मोदी ही चुनाव लड़ रहे हैं.इसका व्यापक असर हुआ और देश भर मे कायस्थ समाज ने एनडीए को वोट दिया.पटना और दिल्ली मे अधिकाधिक चुनाव प्रचार के साथ साथ डॉ. आरके सिन्हा ने उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़,उड़ीसा,महाराष्ट्र,तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों मे भी सघन चुनाव प्रचार किया और  समाज के पांच प्रतिशत वोट मे विभाजन नहीं होने दिया. देश के सभी संसदीय क्षेत्र के शहरी इलाकों मे कायस्थ समाज का निर्णयक वोट बैंक हैं और डॉ. आरके सिन्हा ने इस वोट बैंक को नरेंद्र मोदी की प्रचंड जीत मे तब्दील करा दिया. नतीजा हुआ कि जहाँ एनडीए के बड़े बड़े नेता अपने स्वजातीय वोट बैंक को  विभाजन  होने से बचा नहीं पाए वही भाजपा के संस्थापक सदस्य, बिहार भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. आरके सिन्हा ने अपने स्वजातीय वोटों को टूटने नहीं दिया और पुरे देश मे एकमुश्त वोट दिलवाकर साबित कर दिया कि भारत मे कायस्थ समाज का सबसे बड़ा नेता वहीं हैँ और देश का कायस्थ समाज उनके नेतृत्व मे ही आस्था जताते हुए देश के विकास मे अपनी भूमिका निभाना चाहता हैं. यही कारण हैं कि अब देर किये बिना बिहार और देश का कायस्थ समाज अपने सर्वमान्य नेता डॉ. आरके सिन्हा को भाजपा के भीतर बड़ी भूमिका मे देखने को बेताब हैं.

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